द्रोपदी की तरह इनकी भी लाज बचाओ द्वारिकाधीश

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संस्थान को लीकेज द्वार से कब मिलेगी मुक्ति।

लाखो लीटर स्वच्छ जल की नालियों में हो रही बर्बादी।
सार्वजनिक टंकियों में गायब होती टोंटी।
गिरीश गैरोला।
जल संस्थान उत्तरकाशी अपने  वीप होल्स बंद नही कर पा रहा है। गाड़ गदेरों से आ रहे पानी को पीने योग्य बनाने में लग रहे करोड़ो रु पेयजल लीकेज के रूप में सड़कों और नालियों में बह रहा है वही जरूरतमंद पीने के पानी को तरस रहे है।
आने वाले समय मे पानी की संभावित किल्लत को देखते हुए वैज्ञानिक परेसान है और लोगो को पानी की बूंद बूंद बचाने की अपील कर रहे है जिसके बाद टॉयलेट शीट में गिरने वाले पानी तक को सिस्टर्न में रेत की बोटल रखकर पानी की बचत का संकल्प खुद जल विभाग ने लिया था। किंतु धरातल पर विभाग की लाइन में इतने छिद्र है कि एक को भरो तो दूसरा  उभर का सामने आ जाता है ।
ये हाल तो रास्ट्रीय राजमार्ग का है जहाँ 24 घंटे आम लोगो के साथ नेता, मंत्री और अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है। इसमें गली कूचों में भी हो रही जल बर्बादी को भी जोड़ दिया जाय तो आंकड़े चौकाने वाले हो सकते है।
अभी कुछ दिन पूर्व गंगोत्री राजमार्ग पर तेखला के पास फब्बारे का रूप लेती पानी की लीकेज विभाग ने  बंद करी ही थी कि उसके पास 50 कदम पर दूसरा जोड़ उखड़ गया। हालांकि इस बार ये पानी फब्बारे के रूप में नही बिखर रहा ये इस पर पहले दिन से ही टाट का बोरा डालकर ढक दिया है। अब पानी सड़क पर तो नही बिखरा किन्तु नाली में तो वर्बाद हो ही रहा है। यही हाल सार्वजनिक पीने के पानी की टंकियों के है टंकी की टोंटी टूट गयी है तो  पानी भले ही  बर्बाद होता रहे पर नई टोंटी लगाने में दिलचस्पी दिखाई नही देती। अब देश के नागरिकों की आदत सुधरने तक विभाग को टोंटियां तो लगानी ही पड़ेंगी।
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