उत्तरकाशी- बिना नाखून पंजे के डॉक्टर्स की टीम को – पावर गेम से दबाने का आरोप – कोरो ना जीत पर माला पहनने को गर्दन की सफाई अभी से?

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मैं बड़ा मेरा काम बड़ा, आखिर कौन बड़ा?

कोरोना महामारी के बीच जहां पूरा देश टीम भावना से जुड़ा हुआ है और जनता भी पुष्प वर्षा के साथ फ्रंट में लड़ रहे वॉरियर्स की पूरी टीम को हर मौके पर सम्मान देने में लगी है वही उत्तरकाशी जिले में कोरोना वार के नंबर गेम में पावर गेम हावी होता दिखाई दे रहा है। बजट और व्यवस्थाओं लेकर सीएमओ परेशान दिखाई देते हैं वही सीएमएस लेवल के डॉक्टर शिव kuriyal को राजस्व अधिकारी मेडिकल प्रिसक्रिप्शन देकर उनकी डिग्री पर ही सवाल खड़े करने लगे है । मेडिकल डिजास्टर के इस दौर में डॉक्टर्स और जिला प्रशासन के बिगड़ते संबंध क्या संदेश दे रहे हैं। दरअसल कोरोना के अदृश्य खतरे से निपटने की पूरी जिम्मेदारी डॉक्टर्स की टीम पर है जिसकी हालात उस शेर की तरह है जिसके नाखून और पंजे निकाल कर मैदान में भेज दिया गया है। बजट की बात हो या मरीज पर निर्णय लेने की बात हर बार उन्हें कलेक्ट्रेट की तरफ देखना पड रहा है, इतना ही जब कभी भी हो जीत के जश्न पर फूल माला पहनने के लिए दूसरी गर्दन खड़ी दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

पूरे देश में कोरोना के खिलाफ जंग के मैदान में आमने-सामने उतरे कोरोना वारियर्स को जनता से मिलते सम्मान  की बात  कुछ छोटे जिलों में बड़े बाबूओ को नागवार गुजरने लगी है लिहाजा हुकूमत की पावर   दिखा कर सेवा करने वालों को दरकिनार करने की कोशिश की जा जानें लगी  है । दरअसल करीब 100 साल के अंतराल में होने वाली इस तरह की महामारी से निपटने का कोई पुराना अनुभव मौजूद न होने की वजह से फील्ड में मिल रहे अनुभव और स्थानीय स्तर पर  ही एक्सपर्ट के विवेक से निर्णय लिए जा रहे है ।

हादसों और  आपदाओं से जूझ रहे उत्तरकाशी जिले  में देवी आपदाओं की तर्ज पर ही  कोरोना से जूझने की व्यवस्थाओं को अंजाम दिया जा रहा है , जबकि कोरोना एक मेडिकल डिजास्टर है जिसमें मेडिकल से जुड़े  तकनीकी जानकारों को ही निर्णय लेने की छूट दी जानी चाहिए , लेकिन क्या धरातल पर ऐसा हो रहा है?   बाहरी व्यक्ति के  जि ले में प्रवेश के साथ ही संभावित संदिग्ध के साथ कौन सा परीक्षण और कौन सा उपचार किया जाना है इसका अंतिम फैसला डॉक्टर्स की टीम को ही करने की इजाजत होनी चाहिए या राजस्व अधिकारी को? 

  ऐसे में  कई बार हालात हास्यास्पद बनने लगे हैं  दरअसल कोरो ना  वार में  आमने-सामने खड़े डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी सफाई कर्मी, और मीडिया कर्मियों  को समाज में अलग-अलग स्थानों पर पुष्प वर्षा और  पुष्प हार से सम्मानित किया जा रहा है जो   कुछ लोगो   को हजम नहीं हो रहा है लिहाजा हुकूमत के साथ पावर गेम  का प्रयोग कर पूरी मेहनत का श्रेय खुद लेने के लिए न सिर्फ बजट पर कुंडली मारी जा रही है बल्कि तकनीकी रूप से सक्षम डॉक्टर्स के फैसले भी  रद्दी की टोकरी में डाल दिया जा रहा है।  हालात यह हैं कि जिला अस्पताल में  मैक्सिमम एक्सपोज  हो रहे डॉक्टर्स के पास न तो पर्याप्त मास्क है , न सर ढकने का और ना ही पी पी किट। उत्तरकाशी जिले में इसी विवाद के चलते प्रशासन और मेडिकल  से जुड़े लोगों में तनातनी साफ तौर पर महसूस की जा सकती है ।

उत्तरकाशी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ शिव प्रसाद कुढ़ियाल  ने बताया कि उत्तरकाशी जिले के बॉर्डर पर जैसे ही उनकी गाड़ी पहुंची तो वहां मौजूद राजस्व विभाग के कर्मचारियों ने उन्हें मुख्यालय से 40 किमी दूर चिन्यालीसौड़ में ही 14 दिन क्वॉरेंटाइन करने का फरमान सुना दिया,  जबकि डॉक्टर साहब की गाड़ी चला रहे वाहन चालक को ऐसे ही छोड़ दिया।  किस  को  गाइडलाइंस के अनुसार आवश्यक सेवा मानते हुए छूट दी गई है और किसे नहीं यह तो साफ लिखा गया है तो फिर क्या लोगों के स्वास्थ्य की चिंता के बजाएं मौका मिलने पर पावर गेम दिखाने की कोशिश की जा रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने परिजन मरीज को लेकर डॉक्टर के क्लीनिक में खड़ा रहने की सजा ऐसे दी जा रही है, देख लो हम भी कुछ है?

खैर डॉक्टर शिव कुडियाल को 3 दिनों तक जिला अस्पताल क्वॉरेंटाइन में रखा गया इस दौरान उनका भोजन बनाने वाले कुक को भी क्वॉरेंटाइन के लिए भेज दिया गया । डॉक्टर शिव कुरियाल ने बताया कि सैंपल रिपोर्ट नेगेटिव आने तक उन्होंने सिर्फ  मैगी खा कर काम चलाया है।

स्वास्थ्य को लेकर सजग और पुराना महामारी के लिए चिंतित महानगरों में तो पुलिस और अन्य विभाग के वे लोग उन लोगों को भी अपने घर जाने की इजाजत नहीं है, जो सीधे पब्लिक या बाहरी लोगों के संपर्क में आ रहे हैं,।  तो क्या ऐसा उत्तरकाशी में भी हो रहा है?  जो लोग भोजन पैकेट बांट रहे हैं , अथवा बाहर से  आने वाले लोगों की  जांच कर रहे हैं या सैनिटाइज कर रहे हैं , क्या वह भी क्वॉरेंटाइन में जा रहे हैं यदि नहीं तो सिर्फ डॉक्टर्स पर ही यह नियम क्यों कैसे?  नियम का पालन करने में कोई हर्ज नहीं है  किंतु किसी  पावर गेम को साधने  के लिए नियमों की आड़ लेना क्या  उचित है ? 
बताते चलें उत्तरकाशी जिला अस्पताल में डॉक्टर शिव कुरियाल सबसे वरिष्ठ डॉक्टर हैं और  उन्होंने सीएमएस का पद सिर्फ इस लिए छोड़ दिया क्यों कि बार-बार मरीजों को छोड़कर उन्हें डीएम की मीटिंग में जाना पड़ता था , उनके पास रेडियोलॉजी और सीटी स्कैन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का दायित्व भी है। इसलिए उन्होंने अपने अधीनस्थ दूसरे डॉक्टर के लिए  सीएमएस का पद छोड़ दिया। डॉ कुड़ियाल  ने बताया उन्हें बैक पेन के चलते एक्सपर्ट डॉक्टर ने रेस्ट करने की सलाह दी थी किंतु उन्होंने देश भर में चल रहे करो ना वार में अपना योगदान देने के लिए अस्पताल आना ज्यादा बेहतर समझा किंतु यहां आने के बाद न तो उन्हें पर्याप्त मास्क   दिए जा रहे हैं न सर ढकने के लिए और न पी पी किट,  उन्हें एक मास्क  को 3 से 4 दिन तक प्रयोग करना पड़ रहा है। जिला अस्पताल की स्थिति को इससे बेहतर और कैसे समझा जा सकता है जब विदेश में रहने वाली एक बेटी को उत्तरकाशी जिला अस्पताल वार रूम में ड्यूटी दे रहे अपने  चीफ फार्मासिस्ट पिता को मास्क देने के लिए डीएम उत्तरकाशी से निवेदन करना पड़ा। जो खबरों की सुर्खियां भी बनी थी

लिंक देखे खबर का

https://etvbharat.com/hindi/uttarakhand/state/uttarkashi/hotel-traders-have-demanded-an-economic-package-from-the-tourism-minister/uttarakhand20200420193952071


देश भर में बड़ी तादाद में  लोग  महामारी से निपटने के लिए दान दे रहे हैं उसके बावजूद भी जिले में डॉक्टर्स को ही पूरे किट नहीं दी जा रहा है । अस्पतालों को बजट के लिए बार-बार डीएम ऑफिस का रुख करना पड़ रहा है। बाहरी जिले से आने वाले लोगों का स्वाब टेस्ट कर 3 दिन के भीतर आने वाली रिपोर्ट से मरीज के संक्रमण का पता चल जाता है किंतु सैंपल टेस्ट का खर्च बचाने के लिए ही लोगों को 14 दिन तक क्वॉरेंटाइन करवाया जा रहा है। इसके लिए जिला अस्पताल , आयुर्वेदिक अस्पताल  पंचकर्म के साथ गढ़वाल मंडल विकास निगम को भी उपयोग में लाया जा रहा है।अफसोस है कि दान वीरों का दान उन डॉक्टर्स के लिए मास्क का नहीं खरीद पा रहा पीपी किट नहीं खरीद पा रहा है और सबसे बड़ी बात कि बाहर से आने वाले लोगों का स्वाब टेस्ट का खर्च बचाने के लिए उन्हें 14 दिल क्वॉरेंटाइन कराया जा रहा है।
डॉक्टर शिव ने बताया की कोरोना वायरस एक  मेडिकल डिजास्टर है,  लिहाजा मरीज के साथ किस तरह का व्यवहार और किस तरीके से इलाज किया जाना चाहिए इसकी लिए सीएमओ और वरिष्ठ डॉक्टरों को अनुमन्य किया जाना चाहिए। बाहर से आने वाले लोगों का स्वाब टेस्ट कर जितनी जल्दी हो सके संक्रमण का पता लगाए जाने का प्रयास किया जाना चाहिए साथ ही उन्हें अपने अनुभव के आधार पर बजट का उपयोग करने की छूट होनी चाहिए तभी कोरोना वार पर जिले की रणनीति को लेकर किसी को शाबाशी अथवा जिम्मेेदार बनााया जा सकता है।

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