ब्रह्मा कपाल – जहा भोलेनाथ को ब्रह्महत्या के पाप से मिली थी मुक्ति – कोरोना के चलते श्राद्ध पक्ष मे भी सन्नाटा

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कोरोना संकट का असर ब्रह्मा कपाल तीर्थ पर,श्राद्ध पक्ष में भू बैकुंठधाम बदरीनाथ स्थित धार्मिक कर्मकांड ,पिंड दान,और तर्पंन स्थल ब्रह्मा कपाल में पसरा सन्नाटा,

छेत्र के तीर्थ पुरोहितों की आजीविका कोरोना संकट के चलते हुई ठप,गिनती के तीर्थ यात्री कर रहे अपने पुरखो के लिए पिंड दान और तर्पण

संजय कुँवर बदरीनाथ धाम
श्राद्ध पक्ष शुरू हा गए है, वही पितरों और अपने वंशजो के मोक्ष की प्राप्ति हेतु पिंडदान के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध भले ही (गया ) हो लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां पर पिंडदान का पुण्य गया से आठ गुणा अधिक फलदायी बताया गया है।

कोरोना संकट का असर इस तीर्थ पर पड़ने से यहाँ सीमित संख्या में ही तीर्थ यात्री पिंड दान के लिए यहाँ पहुँच रहे है,
जी हाँ उतराखंड के चार धामों में एक प्रमुख श्री बदरीनाथ धाम में स्थित धार्मिक स्थल ब्रह्माकपाल के बारे में देव स्थानम बोर्ड बदरीनाथ के धर्मा धिकारी आचार्य भुवन चन्द्र उनियाल बताते है कि यहां पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को नरक लोक से मुक्ति मिल जाती है।और वो किसी भी योनि में नही भटकते है,
स्कंद पुराण में ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुणा अधिक फलदायी पितर कारक तीर्थ कहा गया है। यही वह तीर्थ है जहां पर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए शिव जी को भी आना पड़ा था।
इसबार कोरोना संकट के चलते बदरीनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों को भी मुश्किले झेलनी पड़ रही है,पितृ पक्ष शुरू हो चुके है लेकिन कोरोना संकट के चलते बदरी पूरी स्थित ब्रहम कपाल तीर्थ स्थल में खामोशी छाई है,कोरोना की मार के चलते ब्रहम कपाल में पिंड दान और तर्पण करने आने वाले श्रधालुओ की आमद कम हो गयी है,पिछले वर्षो में पितर पक्ष शुरू होते ही बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्म कपाल में पितर तर्पण करने के लिए तीर्थयात्रियों के साथ ही स्थानीय श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने रहती थी। जा अब कोरोना संकट के चलते बहुत कम हो गई है,
बताया जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय जब तीन देवों में एक ब्रह्मा मां सरस्वती के रुप पर मोहित हो गए तो भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मा के तीन सिरों में से एक को त्रिशूल के काट दिया तो सिर त्रिशूल पर ही चिपक गया।
ब्रह्मा की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए तो बदरीनाथ से पांच सौ मीटर की दूरी पर त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर जमीन पर गिर गया तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के रुप में प्रसिद्ध हुआ।
यही नहीं जब महाभारत के युद्ध में पांडवों ने युद्ध में अपने सगे बंधु-बांधवों को मार कर विजय प्राप्त की थी तब उन पर गौत्र हत्या का पाप लगा था। गौत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने भी इसी स्थान पर अपने पितरों को तर्पण दिया था।

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