सेना, सीमा पार दुश्मन से तो बीआरओ जूझ रही आपदा से – चीन सीमा पर उत्तराखंड का यह सबसे लंबा बैली ब्रिज

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जोशीमठ राजमार्ग  पर चीन सीमा को जोड़ने के लिए रैणी गांव के निकट बनाया गया बैली ब्रिज शुक्रवार को आवाजाही के लिए खोल दिया गया। इसके साथ ही सीमावर्ती 13 गांवों का भी अन्य क्षेत्रों से संपर्क जुड़ गया। सात फरवरी को आई आपदा में यहां ऋषिगंगा पर बना पुल बह गया था।

भारत-चीन सीमा को जोड़ने के लिए रैणी में जिस जगह पुल बना था, वहां दोबारा पुल बनाना संभव नहीं हो पाया। इस पर यहां से करीब डेढ़ सौ मीटर दूरी पर एप्रोच रोड बनाकर नई जगह बैली ब्रिज का निर्माण किया गया। 30 टन भार क्षमता का यह पुल 200 फीट लंबा है।

देश भर कि सीमा पर रात दिन भारतीय सेना के जवान तैनात रहते है तो उनके लिए साजो सामान हथियार राशन इत्यादि उपलब्ध करने के लिए सीमा सडक संगठन को भी आपदा जैसे दुश्मन से जूझना पड़ता है | देखा जाय तो यह काम सीमा पर तैनात जवान के काम से कसी भी सूरत से कम नहीं | बॉर्डर पर चीन और पाकिस्तान की तरफ मुह किये जवानों की निगाहे सीमा पार दुश्मन की हर गतिविधि पर टिकी रहती है, वही बीआरओ के जवानों को भी कड़ी ठिठुरती शर्दी और तेज गर्मी में सडक और अन्य निर्माण कार्य में जुटे रहना होता है | bro के जवानों को तो ये भी नहीं मालूम होता है कि आपदा कब और किधर से कितने वेग से आ सकती है उन्हें तो बस तेज रफ़्तार से आपदा से जूझते हुए फिर से जन जीवन सामान्य करने में जुट जाना सिखाया जाता है – सीमा पर दुर्गम स्थानों पर ड्यूटी पर तैनात इन जवानों को कई बार घर वालो से बात चीत के लिए भी कई दिनों का इन्तजार करना पड़ता है| सबसे बड़ी बात ये ही कि इनके शौर्यकी कहानी को मौके पर देख कर सम्मान देने वाला फिलहाल कोई नहीं है | शिवालिक प्रोजेक्ट के चीफ आशु सिंह राठोर ने बताया कि समय समय पर बॉर्डर तक वे खुद जाकर अपने जवानों का मनोबल बढ़ाने का काम करते है

निर्माणदायी संस्था सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने शुक्रवार सुबह टेस्टिंग के बाद इस पुल को वाहनों के लिए खोल दिया गया। सबसे पहले बीआरओ के वाहनों को इससे गुजारा गया, उसके बाद स्थानीय वाहनों की आवाजाही शुरू की गई। इससे रैणी, लाता, सूकी, भलगांव, तोलमा, सुरांईथोटा समेत 13 गांवों के निवासियों ने भी राहत की सांस ली। आपदा के बाद से ये गांव अलग-थलग पड़ गए थे।

बीआरओ की शिवालिक परियोजना के मुख्य अभियंता आशु सिंह राठौर ने बताया कि यहां पर पुल का निर्माण किसी चुनौती से कम नहीं था। इसके लिए जम्मू कश्मीर, लददाख समेत अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों से मशीनें मंगवाई गई। भारी-भरकम मशीनों को सेना के हेलीकाप्टर से पहुंचाया गया। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड का यह सबसे लंबा बैली ब्रिज है।

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