करोड़ो के फर्जी निर्माण कार्य कागजो मे दिखाने के आरोप झेलने वाली उत्तरकाशी जिला पंचायत के घोटाले की जांच को अचानक उच्च न्यायलय से स्थगन मिला तो आम लोगो का माथा ठनका| इसके तुरंत बाद सरकार ने घोटने की जांच को वापस लेने का फैसला लिया तो जनता के बीच से कई तरह की क्रिया प्रतिकृया सामने आने लगी | कोई कहता लोकतन्त्र से विश्वास उठ गया कोई बोला पैसे मे बड़ी शक्ति है, कोई राजनैतिक जैक की बात करने लगा तो किसी का सिस्टम से विश्वास ही उठ गया | ज़ीरो टोलरेंस सरकार की भी खूब किरकिरी हुई | मामले की तह मे गए तो नयी कहानी सामने आयी | उत्तराखंड मे कड़ी परीक्षा पास करने वाले अधिकारियों के अधूरे ज्ञान के चलते न सिर्फ त्रिवेन्द्र सरकार की उच्च न्यायलय मे किरकिरी हुई बल्कि सरकारी बाबुओ के नालेज पर जनता की सोच मे भी बदलाव आया | बड़ा सवाल ये की जिला पंचायत की जांच से पहले क्या सरकार अपने अधीन काम कर रहे बड़े बाबुओ के इस अधूरे ज्ञान को लेकर कोई जबाब तलब करेगी?
गिरीश गैरोला
सरकारी सेवा मे आने के लिए न्यूनतम शैक्षिक अर्हता और कड़ी प्रतियोगिता के बाद बने अधिकारियों को अपने ही विभाग की कार्य प्रणाली का ज्ञान न हो तो किसकी कमी काही जा सकती है |
ताजा मामला उत्तरकाशी की विवादित जिला पंचायत का है जहा पर करोड़ो के निर्माण कार्य सिर्फ कागजो मे ही कराये जाने के आरोप लगाए गए थे |
उत्तरकाशी जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह के शिकायती पत्र पर सीएम कार्यलय ने सीधे आयुक्त गढ़वाल को शिकायत पर कार्यवाही के निर्देश दे दिये | सीएम कार्यालय सहित आयुक्त कार्यालय मे कुर्सी पर बैठे जानकार अधिकारियों ने बिना एक्ट पढे ही सीएम कार्यालय के आदेश को सर माथे पर लगाते हुए डीएम उत्तरकाशी को जांच के निर्देश दे डाले | आदेश मिलते ही उत्तरकाशी के डीएम मयूर दीक्षित ने जिला पंचायत के सभी दस्तावेज़ अपने कब्जे मे लेते हुए सीडीओ और ट्रेजरी अधिकारी को जांच अधिकारी नियुक्त करते हुए जांच सुरू कर दी| इस बीच दर्जनो ग्राम प्रधानो ने जिला पंचायत द्वारा गाव मे कराये गए कार्यो को फर्जी बताते हुए अपनी शिकायत डीएम उत्तरकाशी के कार्यालय को भेज दी |
जांच अपने अंजाम तक पहुचने वाली ही थी कि जिला पंचायत अध्यक्ष पूरे मामले को लेकर उच्च न्यायलय मे चले गए | जहा इस बात का खुलासा हुआ कि सरकार के मातहत काम करने वाले अधिकारियों मे जानकरियों के अभाव के चलते ही उच्च न्यायलय मे सरकार की किरकिरी हुई और जिला पंचायत को जांच मे स्थगन आदेश मिल गया | कोर्ट मे जबाब देने के लिए सरकारी बाबुओ के पास अब कुछ नहीं था, लिहाजा राज्य सरकार को अपनी जांच वापस लेनी पड़ी और फिर से उत्तरप्रदेश क्षेत्र पंचायत जिला पंचायत { प्रमुख उप प्रमुख अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को हटाये जाने } जांच नियमवाली 1997 { उत्तराखंड मे भी लागू } नियम 3 को रटने के बाद शिकायत के लिए दिये गए प्रविधानों के अनुरूप ही शिकायत भेजने कि प्रक्रिया दुबारा चलायी गयी | अब शिकायत को सचिव उत्तराखंड पंचायती राज के कार्यालय को प्रेषित की गयी जहा से डीएम उत्तरकाशी को जांच अधिकारी बनाते हुए 15 दिनो मे जांच पूरी कर अपनी संस्तुति सहित शासन को भेजने कि प्रक्रिया सुरू हुई | इस पूरी प्रक्रिया मे जिन जानकार अधिकारियों कि अज्ञानता के चलते त्रिवेन्द्र सरकार कि किरकिरी हुई उन्हे भी एक बार नियम और अधिनियम पढ़ने कि नसीहत तो जरूर दी ही जानी चाहिए| साथ ही समय समय पर इन अधिकारियों के ज्ञान की परीक्षा लिए जाने का भी प्रविधान किया जाना चाहिए |