इन दिनों उत्तरकाशी जिले में आशीष नाम की बड़ी चर्चा है, बड़े आशीष की बात कई बार हो गयी इस बार उत्तरकाशी को जो इस वाले आशीष का स्नेह मिला वो उनकी बिदाई पर झलक पड़ा।
गिरीश गैरोला ।
कहावत है कि देवभूमि उत्तराखंड के लोग बेहतर शिक्षा के लिए शहरों और महानगरों में पलायन कर रहे है, आरोप लगते है कि स्कूलों में शिक्षक नही है और अस्पतालों में डॉक्टर नही। इसके बावजूद भी सिक्के का दूसरा पहलू भी है।
सरकारी स्कूल के ही कुछ शिक्षक अपने कार्यकाल के ऐसा पैमाना तय कर गए है कि ऐनी वालो के लिए नजीर बन जाय। ऐसी ही एक नाजिर बन गए उत्तरकाशी जिले के जीआईसी भंकोली के शिक्षक आशीष डंगवाल। आशीष विगत तीन वर्षों से आपदाग्रस्त संगमचट्टी के भंकोली में तैनात थे इन तीन वर्षों में आशीष ने न सिर्फ छात्रों से बल्कि स्थानीय लोगो से भी प्यार प्रेम और अपनेपन का वो रिश्ता बनाया कि उनके जाते ही पूरा गाँव शिसकने लगा। भंकोली जैसे दूरस्थ पैदल मार्ग पर बने स्कूल में अक्सर कम ही लोग ड्यूटी करना पसंद करते है। रुद्रप्रयाग निवासी आशीष ने जो किया उसको लेकर टीचरो को लेकर लोगो के नजरिये को फिर से परिभाषित करने की जरूरत महसूस होने लगी है। आशीष को प्रवक्ता पैड पर टिहरी जनपद में तैनाती मिली है। विदाई के गमगीन माहौल में आशीष ने क्या कहा आप भी पढ़िए।
मेरी प्यारी #केलसु #घाटी, आपके प्यार, आपके लगाव ,आपके सम्मान, आपके अपनेपन के आगे, मेरे हर एक शब्द फीके हैं । सरकारी आदेश के सामने मेरी मजबूरी थी मुझे यहां से जाना पड़ा ,मुझे इस बात का बहुत दुख है ! आपके साथ बिताए 3 वर्ष मेरे लिए अविस्मरणीय हैं। #भंकोली, #नौगांव , #अगोडा, #दंदालका,#शेकू, #गजोली,#ढासड़ा,के समस्त माताओं, बहनों, बुजुर्गों, युवाओं ने जो स्नेह बीते वर्षों में मुझे दिया मैं जन्मजन्मांतर के लिए आपका ऋणी हो गया हूँ। मेरे पास आपको देने के लिये कुछ नहीं है ,लेकिन एक वायदा है आपसे की केलसु घाटी हमेशा के लिए अब मेरा दूसरा घर रहेगा ,आपका ये बेटा लौट कर आएगा। आप सब लोगों का तहेदिन से शुक्रियादा । मेरे प्यारे बच्चों हमेशा मुस्कुराते रहना। आप लोगों की बहुत याद आएगी। 🙏🏻🙏🏻