उत्तराखंडी बोली सिखाने वाले शिक्षकों को सम्मान।

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शिक्षक दिवस पर हर वर्ष की तरह उत्तराखंडी , ग्रीष्म क़ालीन गढ़वाली, कुमाऊँनी बोली भाषा के शिक्षको को किया गया सम्मान ।
कंस्टिटयुशन क्लब स्पीकर हाँल रफ़ी मार्ग नई दिल्ली , बैनर -उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच ,उत्तराखंड एकता मंच एवं सहयोगी ड़ी०पी०एम०आई॰ द्वारा उत्तराखंडी लोक भाषा शिक्षण विगत 5 वर्ष से ग्रीष्म क़ालीन 12 मई से 04 अगस्त तक सत्र कक्षाए की गयी शुरुआती कक्षाए संस्थान dpmi न्यू अशोक नगर से की गयी थी लेकिन इस सत्र दिल्ली एन सी आर में 28 से अधिक अलग अलग संस्थानो में पढ़ाया गया और अगले सत्र लगभग 50-70 संस्थानो की उम्मीद की जा रही है।

हरीश असवाल नई दिल्ली।


ड़ीपीएमआई एवं हिमालय न्यूज़ निदेशक डॉ विनोद बछेटि व उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच के संचालक दिनेश ध्यानी द्वारा 4 साल पूर्वांत में प्रथम संस्थान Dpmi में गढ़वाली कुमाऊँनी की कक्षाए की गयी थी जिसमें दिल्ली , फ़रीदाबाद, नोएड़ा से छात्र/छात्रा इसी संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने आते थे और संख्या नाम मात्र होती थी जिसमें लोक भाषा बोलने सिखने में हिचकिचाते थे लेकिन आज का परिणाम आम प्रवासी के साथ अन्य समाज भी उत्तराखंडी लोक भाषा में रुचि दिखाते है

इस सत्र -में 28 से 32 अलग अलग शिक्षण संस्थान चलाए गए जिसमें 135 शिक्षकों को सम्मानित किया मेहमान में उत्तराखंड के गढ़रतन लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी , प्रसिद लोक गायक हीरा सिंह राणा , उत्तराखंडी भाजपा कार्यालय सचिव महेंद्र पांडे , हिंदी एबम संस्कृति अकादमी सचिव डॉ जीत राम भट्ट , ड़ीपीएमआई॰ निदेशिका पूनम बछेटि ,
एबम साहित्यकार, लेखक, समाजसेवी द्वारा
भव्य सम्मान आयोजन किया और कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ विनोद बछेटि द्वारा समस्त उपस्थित लोगों का धन्यवाद किया और आगे इसी तरह सहयोग करने की अपील की ।


गढ़वाली कमाऊँनी भाषा कब और किस लिये पढ़ाई जा रही है यह प्रश्न भी लोगो के मन में आता है आपको बता दे की जब उत्तराखंड लोक भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने और उत्तराखंडी अकादमी बनाने के प्रयास किया गया था , जब गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ज्ञापन दिया गया तो उनकी तरफ़ से जवाब आया था की जब आपको या आपके बच्चों को ही अपनी लोक भाषा नहीं आती है या घर पर प्रयोग नहीं किया जाता है तो आप किस लिये संविधान की आठवीं अनुसूची में लोक भाषा को शामिल करेंगे जब से इसी बात को लेकर समझ आ गयी और उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच, एबम ड़ीपीएमआई द्वारा इस तरह शिक्षण संस्थान का शुभारम्भ किया गया जिसमें अपनी संस्कृति, अपनी बोली भाषा , अपनी पहचान के वास्ता किया गया ।

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