सीबीआई के तोते से राम राम बोलेंगे हरक ? – हरदा के साथ हरक को भी पड़ेगा फरक।

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राजनीति अपने और परायों में देश काल परिस्थिति के अनुसार अलग अलग ढंग से काम करती है कभी साथ खड़े दिख कर तो कभी साथ छोड़कर। उत्तराखंड राज्य में दबंग विधायक चैंपियन से ची बुलवाने के बाद हरक के कड़क सुर को मंद करने का समय पार्टी ने तय कर लिया है।

गिरीश गैरोला

देहरादून। विधायकों की खरीद-फरोख्त के स्टिंग मामले में सीबीआइ द्वारा रिपोर्ट दर्ज कर लिए जाने से कांग्रेस के साथ ही प्रदेश की भाजपा सरकार भी परेशानी में घिरती नजर आ रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के अलावा सीबीआइ ने हरक सिंह रावत के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज की है। हरक सिंह रावत पूर्व में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार में मंत्री थे और भाजपा में आने के बाद मार्च 2017 में उन्हें त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली मौजूदा भाजपा सरकार में भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के खिलाफ सीबीआइ के रिपोर्ट दर्ज करने से भाजपा पसोपेश में है।


सियासी गलियारों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि भाजपा हरक सिंह रावत को मंत्रिमंडल से हटाने जैसा कड़ा कदम उठा सकती है। हालांकि फिलहाल प्रदेश सरकार और भाजपा संगठन इस पर किसी तरह की टिप्पणी से बच रहे हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार हरीश रावत के राजनैतिक जीवन में दुश्वारियों की शुरुआत वर्ष 2014 में तब हुई, जब उन्हें विजय बहुगुणा के स्थान पर कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया। उस वक्त प्रदेश कांग्रेस में तीन बड़े क्षत्रप हरीश रावत, सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा थे। सतपाल महाराज को पार्टी का यह फैसला पसंद नहीं आया और वह वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दामन झटक भाजपा में शामिल हो गए। अब रावत क्योंकि विजय बहुगुणा को हटाकर मुख्यमंत्री बने, तो लाजिमी तौर पर उनके बीच भी दूरियां बढ़ गई। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पांचों सीटें भाजपा के हाथों गंवा बैठी और यहीं से हरीश रावत की मुश्किलें शुरू हुईं। इसके बाद कांग्रेस में अंदर ही अंदर असंतोष गहराता रहा, जिसकी परिणति मार्च 2016 में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान पार्टी में बिखराव के रूप में सामने आई। 18 मार्च 2016 को पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व तत्कालीन कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत समेत कुल नौ विधायक पाला बदल कर कांग्रेस से भाजपा में चले गए। कांग्रेस में हुई इस बड़ी टूट से रावत सरकार संकट में घिर गई और इसके कुछ दिन बाद ही हरीश रावत का वह स्टिंग सामने आया, जिसमें उन्हें सरकार बचाने के लिए विधायकों की खरीद फरोख्त के लिए बातचीत करते दिखाया गया। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा, लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश पर लगभग सवा महीने बाद सरकार की बहाली हो गई। हाईकोर्ट के निर्देश पर 10 मई को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हुआ, जिसमें सरकार तो बच गई लेकिन कांग्रेस की एक और विधायक ने भाजपा का दामन थाम लिया। रावत की मुश्किलें वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले और ज्यादा बढ़ गई, क्योंकि तब उनकी सरकार के एक और कैबिनेट मंत्री व दो बार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य भी भाजपा में शामिल हो गए। हालांकि, इसके बाद उत्तराखंड में हरीश रावत ही कांग्रेस के एकमात्र बड़े नेता रह गए लेकिन पार्टी को इससे भारी नुकसान हुआ।

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