किसने दे दी गंगा का सीना चीरने की अनुमति।
सिंचाई विभाग के किये हाथ खड़े।
विभाग में मचा हड़कंप।
किसकी नौकरी लेगा गंगा का क्रोध
गिरीश गैरोला
जिस गंगा की अविरलता और प्रदूषण मुक्ति के लिए स्वामी सानंद उर्फ जी डी अग्रवाल ने अपने प्राणों की आहुति दे दी उसी गंगा को एनएचएआई डीसीएल के ठेकेदार नियम कानूनों की अनदेखी कर मनमानी करने में लगे हुए है। गौरतलब है कि स्वामी सानंद उर्फ प्रोफेसर जी डी अग्रवाल के आंदोलन के बाद ही 600 मेगावाट को लोहरीनाग पाला और पाला मनेरी की जल विधुत परियोजना उस वक्त बंद हो गयो थी जब इसका 70% कार्य पूर्ण हो चुका था।
उसी गंगा नदी पर उन्ही नियम कानूनों को जेब मे रखकर एनएचएआई डीसीएल के अधिकारी न सिर्फ गंगा की अविरलता में बाधक बन रहे है बल्कि इसको प्रदूषित करने में भी कोई कोर कसर नही छोड़ रहे है।
यहाँ तो विकास की परिभाषा भी अपने अनुसार गढ़ी जा रही है।
भले ही गंगोत्री धाम की सुरक्षा खतरे में पड़ जाय, नदी में जमी गाद से नगर को बहने का खतरा हो, नदी के पास स्कूल अथवा अस्पताल निर्माण होना हो एनजीटी और गंगा के साथ जुड़े कड़े प्राविधान के चलते अनुमति नही मिल सकती किन्तु मोटे ठेकेदारों को निर्माण कार्य मे रोड़ी बजरी पास में ही उपलब्ध कराने के लिए नियमो को ताक पर रख दिया जाता है और अधिकारी एक दूसरे के पाले में जिम्मेदारी की गेंद उछालते दिखाई देते है। आखिर गंगा में जेसीबी उतार कर इसका रुख मोड़ने की अनुमति किसने दी?
गंगोत्री राजमार्ग पर बड़ेथि चुंगी के पास सड़क चौड़ीकरण में लगी संस्था ने गंगा नदी में बड़ी मशीन उतारकर नदी का रुख बदल कर दूसरी तरफ कर दिया जबकि इसके लिए किसी से भी अनुमति नही ली।
सवाल ये है कि गंगा में कूड़ा डालने को लेकर शहरी विकास मंत्रालय पालिका के अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर सकता है तो गंगा में सड़क चौड़ीकरण का सैकड़ो ट्रक मलवा डालने और जेसीबी मशीन से गंगा का सीना चीरने के लिए चुप्पी क्यों?
उत्तरकाशी वन प्रभाग के डीएफओ संदीप कुमार ने बताया कि पूर्व में गंगोत्री राजमार्ग पर सड़क चौड़ीकरण कार्य मे लगी संस्था द्वारा नालूपानी इलाके में बिना डंपिंग ज़ोन बनाये सड़क कटिंग का मलवा गंगा में उड़ेल दिया गया। वन विभाग ने इनका चालान कर सूचना उच्च अधिकारियों को भेज दी।
वन अधिनियम में संबंधित अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही का प्राविधान है किन्तु ये फ़ाइल अभी भी शासन में दबी पड़ी है। हालांकि गंगा में कूड़ा डालने को लेकर पालिका के अधिकारी पर कड़ी कार्यवाही की संस्तुति की जा चुकी है।
गंगोत्री राजमार्ग पर चुंगी बड़ेथी के पास भी सड़क कटिंग का मलवा गंगा में डालने के साथ ही जेसीबी मशीन से गंगा का सीना चीरते हुए इसका प्रवाह बदल दिया गया जिसके लिए कोई अनुमति नही ली गयी।
इस बीच मीडिया में शोर मचने के बाद निर्माण दायी कंपनी ने दावा किया था कि उसने सिंचाई विभाग से अनुमति ली थी जिसे अब सिंचाई विभाग के अधिकारी ने नकार दिया है। विभाग के अधिशाषी अभियंता जीपी सिलवाल ने बताया कि वे खुद जब गंगा नदी को चैनलाइज करते है तो डीएम से अनुमति लेते है तो ठेकेदार को कैसे अपने स्तर से अनुमति दे सकते है। उ होने बताया कि गंगोत्री धाम की सुरक्षा खतरे में होने के बाद भी वहां से रोड़ी बजरी हटाने की अनुमति आज तक नही मिल सकी है।
इसी तरह आपदा के दौरान या आपदा से पूर्व यदि गंगा में बढ़े हुए गाद के स्तर को कम करने की अनुमति समय पर मिल जाय तो नगर के तटीय इलाकों को बाढ़ से बचाया जा सकता था । इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए जब अनुमति नही मिली तो इस ठेकेदार को तत्काल किसने नदी में छेड़ छाड़ की अनुमति दे दी।
अब जब अधिकारियों के पास इसका ठोस जबाब नही तो एक दूसरे के पाले में गेंद फेंकने का दौर जारी है।
पूरी रिपोर्ट इस लिंक पर देखिए
https://youtu.be/BWvtvTX8MAs
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