भारत -चीन बॉर्डर पर नीलांग घाटी की तरफ जाते हुए भैरो घाटी से तीन किमी दूर गरतांग गली है। कठोर चट्टान को काट कर लोहे की रॉड चट्टान में फंसा कर चलने लायक मार्ग बनाया गया है। आज भले ही यकीन न ही किँतु ये सच है कि 1962 के चीन युद्ध से पहले सीमा पर स्थित गाँव नीलांग और जाडुंग के ग्रामीण तिब्बत कर साथ व्यपार करने के लिए इसी मार्ग का उपयोग करते थे। भारतीय सेना के जवान भी इसी मार्ग से चलकर बॉर्डर तक पहुँचते थे और पूरा साजो सामान रसद भी इसी मार्ग पर घोडे खच्चरों की मदद से पहुचाई जाती थी।
1962 के चीन युद्ध के बाद इस मार्ग को बंद कर दिया गया। अब सेना के जवान सड़क मार्ग का उपयोग करते है किंतु आज भी साहसिक पर्यटन से जुड़े टूरिस्ट इस ऐतिहासिक गरतांग गली को देखने उत्तरकाशी आते है। उत्तरकाशी 92 किमी दूर भैरो घाटी है ओर यहाँ से तीन किमी दूर ये गरतांग गली है। वर्षो से उपयोग नही होने से इतिहास बन चुका ये पुल उस वक्त के इंजीनियरिंग कौसल को दिखाता है कि किसे इतनी ऊंचाई वाली कठोर चट्टान पर सुराख कर लोहे की रॉड फंसाई गयी होंगी।
निश्चित ही एक दर्शनीय स्थल। रिपोर्ट देखिए