चुनाव से पूर्व ही आयुष्मान भारत योजना बनी मजाक

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राजधानी देहरादून में आयुष्मान भारत की उखड़ती सांस।

गंगा की लाज भी बचाओ कृष्णा।
गिरीश गैरोला।
पीएम मोदी की देश की जनता को स्वास्थ सौगात आयुष्मान भारत एक चिरंजीवी होने के आशीर्वाद से कम नही है किंतु योजना के पहले चरण में ही इस पर सवाल उठने लगे है।  अब इस योजना से लाभ लेने वाले निजी अस्पतालों को ही जब योजना और उससे मिलने वाली पेमेंट पर ही भरोसा नही है तो मरीजो की हालत क्या होगी और क्या होगा उस उम्मीद का जो उनके परिजनों ने पीएम की इस महत्वाकांक्षी योजना से लगा रखी है।
लोक सभा चुनाव 2019 से पूर्व स्वास्थ को लेकर केंद्र की बीजेपी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत पर राजधानी देहरादून में ही ग्रहण लग रहा है। दुर्गम पहाड़ी इलाको में डॉक्टर के न चढ़ने के बाद लाचार स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने में इस योजना से लोगो को बड़ी उम्मीद जगी थी।
योजना में कहा गया है कि बीमार होने पर लिस्टेड रोगों में ग्रस्त होने पर सरकारी अथवा निजी अस्पताल के मरीज को एक वर्ष में 5 लाख रु तक का निशुल्क उपचार दिया जाएगा जिसमे दवा भी सामिल होगी शर्त यह थी कि मरीज सरकारी अस्पताल से रेफर होना चाहिए और फिर किसी भी अस्पताल में भर्ती होना चाहिए।
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उत्तरकाशी के गंगेश्वर प्रसाद भट्ट की तबियत खराब होने पर जिला अस्पताल उत्तरकाशी में भर्ती कराया गया जहाँ से उन्हें हायर सेंटर रेफर किया गया तो।परिजन उन्हें aiims ऋषिकेश में ले गए । चार पांच  दिन आईसीयू में और फिर चार दिन वार्ड में रखने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गयी और घर जाने को कहा गया जबकि परिजनों द्वारा विनती की गयीं कि पहाड़ो का मौसम सांस संबंधी बीमारी के लिए उचित नही है लिहाजा कुछ दिन वार्ड में ही रहने दिया जाय किन्तु वार्ड खाली न होने और मरीजो की बढ़ती तादाद का हवाला देकर उन्हें  वापस उत्तरकाशी भेज दिया गया।
उत्तरकाशी आने के एक दिन बाद ही फिर सांस उखाडने की शिकायत पर जिला अस्पताल उत्तरकाशी भर्ती किया गया तो उन्होंने फिर हायर सेंटर रेफर कर दिया। परिजन फिर मरीज को लेकर aiims, हिमालयन इंस्टिट्यूशन
जॉली ग्रांट ले गए पर कही भी आईसीयू खाली नही मिला देहरादून का रुख किया तो दून अस्पताल में भी बेड नसीब नही हुआ। बाद में  कृष्णा मेडिकल सेंटर मेंं खोजबीन के बाद आईसीयू मिल तो गया किन्तु मरीज को भर्ती करने के  बाद बाहर से महंगी दवा मंगाई जाने लगी।
मरीज के पुत्र विकास भट्ट ने बताया कि अस्पताल प्रशासन से आयुष्मान भारत कार्ड का हवाला देकर निशुल्क दवा देने की बात की गई तो उनकी दलील कुछ यूं थी कि मरीज की जल्दी रिकवरी के लिए अच्छी कंपनी की दवा को बाहर से मंगाया जा रहा है और जो भी दवा बाहर से मंगाई जा रही है उसका कोई बिल उनके द्वारा नही दिया जाएगा। इतना ही नही आयुष्मान भारत योजना का मजाक उड़ाते हुए परिजनों से चार दिन बाद आईसीयू और इसी तरह चार दिन बाद वार्ड से बाहर करने की भी नसीहत दी गयी।
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सवाल ये है कि आम लोगो के बीच इस लोक लुभावनी योजना आयुष्मान भारत से  लाभ लेने वाले निजी स्वास्थ केंद्र ही इसका मजाक बनाने में लगे है तो ऐसे में ये योजना कितनी दूर तक गरीब मरीजो का साथ दे पाएगी।
उत्तरकाशी जिला अस्पताल में कार्यरत आरोग्य मित्र श्री बिष्ट ने बताया कि राजधानी देहरादून में dr आकाश से इस संबंध में बात की जाय।
मरीज के परिजन विकास भट्ट ने बताया कि dr आकाश ने भी ये स्वीकार किया कि  निजी असप्ताल को भी मरीज को भर्ती होने के बाद निशुल्क दवा दी जानी चाहिए पर निशुल्क क्यों दवा नही दी जा रही है  इस पर कोई ठोस जबाब वे भी नही दे सके।
ऐसे में महाभारत में द्रोपदी की लाज बचाने वाले कृष्णा से गंगा के मायके गंगोत्री से गंगेश्वर की  जिंदगी बचाने की परिजन विनती कर रहे है।
गंगेश्वर एक पैर से विकलांग है और शिशु मंदिर में नौकरी कर किसी तरह से अपने परिवार की गुजर बसर कर रहे है। आयुष्मान योजना से उनके परिजनों को उम्मीद बंधी थी जिसे निजी अस्पताल तोड़ने में लगे है।
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