उत्तरकाशी।
पर्यावरण संतुलन के साथ ऊर्जा और जल संरक्षण के लिए भारत के साथ पूरे विश्व के वैज्ञानिक चिंतित है, लिहाजा देश राज्य की सीमा लांघ कर तकनीकी ज्ञान के आदान प्रदान के साथ इसे जन जागरूकता से जोड़ने की पहल सुरु हो चुकी है, आज बैज्ञानिक भी मानने लगे है कि भारत मे पुरानी जीवन पद्धति शुद्ध रूप से पर्यावरण संतुलन पर आधारित थी। इसी कड़ी में उत्तरकाशी में भी एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें परसम्परिक अनुभवों के साथ आधुनिक तकनीकी पर चर्चा हुई।
आधुनिक तकनीकी विकसित होने के बाद पारंपरिक घराट बंद होने के साथ ही घराट से जुड़ा रोजगार भी समाप्त हो गया। चक्की और मिल के पीसे आटे से पनपे नए रोगों से जूझने के बाद लोग फिर वापस घराट की दुनिया मे लौटने को उत्सुक दिखे तो घराट स्वामी तब तक अपनी इस पिछली दुनिया से काफी दूर निकल चुके थे।
ऐसे में सीमांत जिले उत्तरकाशी के नौजवान विजयेश्वर प्रसाद डंगवाल ने कुछ यूआओ के साथ मिलकर नाकुरी गाड़ और रानू की गाड़ पर घराटों की एक चेन सुरु की , घराट में नई विकसित तकनीकी का प्रयोग कर इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर इसे रोजगार परक बना दिया है।
गिरीश गैरोला,
जिसका सार्थक परिणाम सामने आया पहले एक दिन में 20 से 40 किलो गेंहू पीसने वाले घराट अब प्रतिदिन 3 से 4 कुंतल गेंहू पीसने लगे है।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक समाज भी अब डॉक्टर और दवा पर खर्च करने की बजाय प्राकृतिक और जैविक तत्वों की सेवन की तरफ झुका है। घराटों की इस श्रखला में चंद्र शेखर चमोली, मगन लाल, रामचंद्र जगूड़ी, रमेश लाल जुड़े है जो पानी की एक ही धारा का अलग अलग स्थानों पर सद्पयोग कर रहे है।
देहरादून(यूपीईएस) और यूनाइटेड किंगडम की नॉर्थम्ब्रिया यूनिवर्सिटी की ओर से शनिवार को उत्तरकाशी में ‘घराट के माध्यम से आय एवं रोजगार’ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।कार्यशाला में विशेषज्ञों ने स्थानीय ग्रामीणों को घराटों के महत्व एवं संरक्षण के बारे में जानकारी दी।
जिला मुख्यालय शिवलिंगा होटल में आयोजित कार्यशाला में नॉर्थम्ब्रिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर संजय भौमिक ने बताया कि सीमित संसाधनों के इस युग में प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोतों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में सदियों से संचालित होने वाले घराटों का महत्व अब पहले से भी अधिक बढ़ गया है।लेकिन देखरेख की कमी,आय के सीमित साधन एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव में जल ऊर्जा को यांत्रिक व विद्युत ऊर्जा में बदलने घराटों की संख्या धीरे धीरे घट रही है
कार्यशाला यूपीईएस के डॉ.प्रसूम द्विवेदी ने बताया कि इंग्लैंड के पर्वतीय इलाकों में भी सहकारिता के आधार पर घराटों का संचालन किया जाता है।जिससे वहां के ग्रामीण अपनी घरेलू जरूरत की बिजली हासिल करने के साथ ही कई अन्य रोजगार कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं
घराटों की श्रखला के साथ तकनीकी ज्ञान जुड़ने के बाद उत्पादकता भी बढ़ गयी है। पूर्व में परनालों के रूप में लकड़ी का प्रयोग होता था जिसमे लकड़ी का नुकसान तो होता ही था पानी की बरबादी भी होती थी इसके स्थान पर अब प्लास्टिक के पाइप घटते व्यास में प्रयोग किये जाते है जिससे पानी का प्रेसर भी बढ़ जाता है साथ ही लकड़ी की टरबाइन को भी अब लोहे से बदल दिया गया है, गेंहू पीसने के साथ बिजली भी पैदा हो रही हों तो ऊर्जा का संरक्षण भी खुद ब खुद हो रहा है।
इसके बाद भी अभी घराटो को पुनर्जीवित करने के लिए अभी और प्रयास किये जाने बाकी है, ताकि लोग उसे रोजगार के रूप में जुड़ सके । घराट के साथ मत्स्य पालन और मुर्गी पालन एक दूसरे से जुड़े व्यवसाय है किंतु सरकारी मदद जब तक बाबू राज सड़ बाहर नही निकलेगी तब तक धरातल पर इसका असर देखने को नही मिलेगा।
।कार्यशाला में घराट संचालक विजयेश्वर डंगवाल को नई दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड वॉटर समिट में घराट विषय पर जानकारी साझा करने के लिए सम्मानित किया गया।इस मौके पर सहायक निदेशक मत्स्य प्रमोद शुक्ला,उरेडा की परियोजना अधिकारी वंदना, शिवम जोशी,चंद्रशेखर चमोली,बचन लाल,बुद्धि लाल,मगन लाल,मंगल सिंह कुमाईं आदि अनेक लोग मौजूद रहे।