दो वोटर के लिए दो पद कर दिए आरक्षित।
50 वर्ष पूर्व ही दे दिया एडवांस आरक्षण।
नेता तो नेता अधिकारी भी सुभान अल्लाह।
बीडीओ की जांच रिपोर्ट से विभाग में मचा हड़कंप
नेता और मंत्री तो यू ही बदनाम है , यहाँ तो अधिकारी कम नाम वाले नही है जिन्होंने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपने चहेते दो मतदाताओं के लिए ग्राम प्रधान के साथ बीडीसी मेम्बर का पद आरक्षित कर दिया। अब सारा काम आसान हो गया , न हाथ जोडने की जरूरत और न चुनाव प्रचार की, और राजगद्दी का सुख ।
एक ही गाँव के दो मतदाताओं में एक ग्राम प्रधान बन जाएगा तो दूसरा बीडीसी मेंबर।
गिरीश गैरोला।
मामला उत्तरकाशीं जिले के भटवाड़ी विकास खंड का है जहाँ पूरे मतदाताओं में से मल्ला गाँव मे व्याह कर आई दो महिलाएं ही जनजाति से है किन्तु फिर भी ग्राम प्रधान का पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। मल्ला से लगे हुए अन्य गाँव पाही और द्वारी मिलकर बीडीसी सदस्य का चुनाव करते है किंतु पाही और द्वारी दोनों गाँव मे एक भी जनजाति का वोटर नही है फिर भी इन तीन गाँवो से मिलकर बने बीडीसी मेम्बर का पद भी एसटी के लिए आरक्षित कर दिया गया।
हुआ ये कि वर्ष 2011 की जन गणना में 667 मतदाताओं वाली मल्ला ग्राम सभा मे गलती से 114 जनजाति के मतदाता दिखाये गए थे। वर्ष 2014 के पंचायत चुनाव में मल्ला में प्रधान पद जनजाति एसटी पुरुष के लिए तो बीडीसी सामान्य पुरुष के लिये आरक्षित किया गया था। ग्रामीणों ने आपत्ति जताई और शिकायत कर बताया कि गाँव मे 114 एसटी मतदाता नही है बल्कि केवल दो एसटी मतदाता है। जिस पर तत्कालीन डीएम ने जांच बैठाई और जांच के बाद शिकायत सही पाए जाने पर आरक्षण क्रम बदल कर प्रधान का पद सामान्य पुरुष के लिए तो बीडीसी सामान्य महिला के लिए कर दिया । वर्ष 2019 के पंचायत चुनाव सामने आए तो फिर से वही गलती दोहराई गयी। प्रधान और बीडीसी के दो पद इन्ही दो मतदाताओं के लिए आरक्षित कर दिए गए। राजवीर रावत के नेतृत्व में ग्रामीणों ने 28 अगस्त को डीएम उत्तरकाशी को तर्कों और प्रमाण के साथ अपनी आपत्ति दर्ज करवाई , किंतु इस पर न तों कोइ सुनवाई हुई और न कोई जांच।
3 सितंबर को सैकड़ो ग्रामीण सीडीओ उत्तरकाशी कार्यलय में जमा हुए और उन्होंने फिर से अपनी बात रखी । भीड़ के दबाव के सीडीओ प्रशांत आर्य ने बीडीओ भटवाड़ी को उसी दिन 3 सितम्बर को ही आख्या रिपोर्ट देने के निर्देश दिए। बीडीओ भटवाड़ी ने अपनी जांच आख्या में ग्रामीणों की आपत्ति पर मुहर लगाते हुए लिखा कि परिवार रजिस्टर के अभिलेख में मल्ला गाँव मे कोई एक व्यक्ति भी एसटी से नही है जबकि आंगनवाड़ी और ग्रामीणों से संपर्क करने पर केवल दो महिलाओं सचिना पत्नी जितेंद्र सिंह और शैलेन्द्री पत्नी चंद्र शेखर एसटी वोटर बताए गए है । ये दोनों महिलाएं भी एसटी परिवार से ब्याह कर गाँव की मतदाता बनी है। हालांकि बीडीओ ने लिखा कि इसके भी कोई पुष्ट प्रमाण नही है।
इस अपवाद के अलावा गाँव मे कोई भी मतदाता एसटी नही है। पूर्व प्रधान राजवीर रावत ने बताया कि अपनी नौकरी खतरे में देख अब पंचायती राज विभाग ने इसी गांव की पिछली जांच रिपोर्ट गायब कर दी है। किंतु चुनाव से जुड़े बड़े सवालों ने फिर भी उनका पीछा नही छोड़ा।
सवाल ये है कि यदि जांच नही हुई तो वर्ष 2014 में इन्ही गाँवो में आरक्षण की स्थिति बाद में क्यों बदलनी पड़ी? और यदि अधिकारी बदलाव की बात से भी पलटी मार दे तो भी सवाल ये है कि गाँव मे दिखाई गई एसटी वोटर की संख्या 114 के अनुरूप उस वर्ष आरक्षण क्यों नही मिला जबकि 63 एससी वोटर वाले मुखवा , और 92 एससी वोट वेक धराली को एससी आरक्षण का लाभ मिल गया था। बीडीओ भटवाड़ी की लिखित रिपोर्ट मिलने के बाद मल्ला गाँव मे दो वोटर जिनका प्रतिशत 0.5 से भी कम है को कम से कम 10 पंचायत चुनाव के बाद अर्थात 50 वर्ष बाद जो चक्रीय आरक्षण मिलना था वो आज ही इन अधिकारियों की बदौलत मिल गया।
गौरतलब है कि गणेश पुर, झाला, सालंग, गोरसाली, अठाली दिलसौड़ , संग्राली और डांग समेत दर्जनों गाँव के बाद ही मल्ला गाँव को चक्रीय एसटी आरक्षण मिलना है। उक्त तीन गाँवो में अपने खास दो महिलाओं को बिना चुनाव प्रचार किये ही प्रधान और बीडीसी बनाने की जोर अजमाइस को लेकर उत्तरकाशी का डीपीआरओ कार्यालय आजकल चर्चाओं में है।
मल्ला द्वारी और पाही के ग्रामीणों ने कहा कि डीएम आशीष चौहान अभी अवकाश पर है उन्हें उम्मीद है कि उनके आते ही न्याय जरूर मिलेगा यदि फिर भी उन्हें डीएम स्तर से न्याय नही मिला तो वे हाई कोर्ट की शरण मे जाएंगे।