इस बार के लोक सभा चुनाव के बाद से उत्तरकाशी के सुदूरवर्ती सर बडियार के ग्रामीणों में लोकतंत्र पर आस्था और मजबूत हो गयी है। चुनाव ड्यूटी में गाँव तक पहुँचने के लिए आयोग को नदी में गिरी पड़े टूटे पेड़ो के सहारे पार करते देख ग्रामीणों को भी उम्मीद बन गयी है कि सरकार बनाने वालों ने भी उन्हीं की तरह गिरे पड़े पेड़ो की मदद से गाड़ को पार किया। अब चुनाव आयोग जरूर उनका दर्द सरकार तक पहुंचा देगा ।
गिरीश गैरोला
वर्षो से गाँव तक सड़क पहुचाने की मांग कर रहे ग्रामीणों ने इस बार सर बडियार में लोक सभा चुनाव 2019 में चुनाव बहिस्कार की घोषणा की थी, किन्तु चुनाव आयोग की सख्ती और कानून के डंडे के डर ने इसे फलीभूत नही होने दिया।
खैर चुनाव पास आये तो सुदूरवर्ती इलाको में तीन दिन पूर्व ही पोलिंग पार्टीया रवाना कर दी गयी। आखिर चुनाव आयोग ग्रामीणों को डेली होने वाली दिक्कत से वाकिफ है लिहाजा 11 अप्रैल को मतदान के लिए 8 अप्रैल की रात को ही पोलिंग पार्टीया सरनोल इंटर कॉलेज में पहुंच गई थी।
यहाँ से दो पोलिंग पार्टी को डंगाडी और सर तो दो अन्य को पौंटी और किमडार में चुनाव सम्पन्न करवाना था।
बूथ तक पहुचने के लिए मतदान कर्मियों को टूटे हुए पेड़ो के सहारे नदी को पार करते देख ग्रामीणों के दिल मे खूब ठंडक पड़ी, एक दिन के लिए ही सही चुनाव आयोग ने उनकी डेली की दिक्कत को खुद अहसास तो किया । ग्रामीणों को पता था कि 12 अप्रैल के बाद यही चुनाव आयोग के कर्मचारी अपने अपने विभागो में वापसी के बाद उनके भाग्य विधाता बनने वाले है। अब तो सरकार तक बात पहुँच ही गयी समझो, यह सोचकर ग्रामीणों को लोकतंत्र पर आस्था मजबूत हो गयी और उन्हें लगा कि वोट का बहिष्कार का कदम उचित नही था जब चुनाव कर्मी सहित सब लोग भी उसी दिक्कत से नदी पार कर गाँव पहुँचे है तो वो क्यों नही?
ये अलग बात है कि साब लोगो को आदत नही है इसलिए तीन दिन पूर्व मुख्यालय से निकलना पड़ा अब टीए डीए मिला तो क्या परेशानी भी तो झेली न।
उन्हें लगने लगा कि अब उन्हें कोई ये विकल्प नही समझायेगा कि हलटी गाड़ से 2 किमी घूमकर पुल से चलकर डिंगड़ी और सर गाँव पहुँच सकते है तो जाओ न थोड़ी देर जरूर लगेगी पर जीवन सुरक्षित तो रहेगा?☺️
अब गरीब ग्रामीणों के जीवन का भी कितना मोल हो सकता है? अच्छे मोल वाले ग्रामीण तो पहले से ही राजधानी वासी हो गए अब तो बस कुछ गरीब लोग ही तो बचे है।
अब जब चुनाव की बडी जिम्मेदारी लिए मतदान कर्मी भी केवल एक दिन के लिए दो किमी घूमकर निर्धारित पुल से गाँव जाने में समय की बर्बादी समझते है तो बेचारे ग्रामीणों से हमेशा की अपेक्षा कैसी? पोलिंग पार्टियो को तो बीमा भी सरकार ने किया है और मतदान जैसा इम्पोर्टेन्ट काम कितने प्रेशर में होता है आप समझते है न?
पौंटी और किमडार पोलिंग बूथ पर तो उस पुल से जाने की मजबूरी है पर अब सर और डंगाडी गाँव के लिए दो किमी दूर से पुल होकर गाव जाने की नसीहत कोई नही देगा , ग्रामीणों को लोकतंत्र पर उम्मीद बढ़ गयी है।
क्यों न हो अब लोकतंत्र के रक्षक ने भी उन की परेशानी को अहसान कर लिया है, अबाकी बार लोकतंत्र और मजबूत होने की उम्मीद के साथ ग्रामीण सपने में लोक तंत्र – लोकतंत्र बड़बड़ा रहे है।