काल गणना सृष्टि संवत से न करके ईस्वी सन से करना गुलामी है, मूर्खता है।
Dr Sunil Arya Delhi
कहां हमारा सृष्टि संवत जो एक अरब छियानवें करोड आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ इक्कीस वर्षों से है और कहां ये ईसवी संवत जो मात्र दो हजार वर्ष पुराना है।
ये ईसवी संवत अवैज्ञानिक, निकृष्ट, राक्षसों और अनपढ लोगो के द्वारा चलाया गया जिसमे वर्ष के बीच मे ही नये साल की कल्पना कर डाली…..
अरे इस भरी सर्दी मे नया वर्ष कहां से आ गया??????
नया वर्ष तब आता है,जब इस ठिठुरन भरी सर्दी के बाद , ऋतु परिवर्तन होता है। पतझड के बाद बसन्त ऋतु मे वृक्षों पर नये पत्ते, सुन्दर पुष्प और सभी जीव जन्तुओं व वनस्पतियों में नव ऊर्जा का संचार होता है।
अर्थात चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को…..
आओ! हम अपनी अरबों वर्ष पुरानी सत्य सनातन परम्परा की ओर लौटें और इस गुलामी की परम्परा से आजादी पाएं।
इस ईसाइयों के झूठे, अवैदिक, अवैज्ञानिक और कल्पित नये साल को न मनायें, बल्कि प्रतीक्षा करें अपने नव वर्ष की ….
तब मनाना धूमधाम से अपना नव वर्ष……
आपका शुभेच्छु,
डॉ॰ सुनील आर्य
आर्य्यावर्त्त पंचगव्य चिकित्सा केन्द्र
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