फ्रॉड के तरीके से हैरान पुलिस, हरेला में भी चपत?

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हरेला में भी फ्रॉड।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से जुड़े गाँवो में हरेला से जुड़ा फ्रॉड सामने आया है। ठगों ने आने वाले दिनों में सरकारी योजना के फायदे गिना कर ग्रामीणों को 25-25 हजार के चंदन के पेड़ थमा दिए, पांच वर्ष तक देखभाल के बाद पालने और लकड़ी को सरकार द्वारा खरीदे जाने की बात कही गयी, प्रलोभन में आकर पढ़े लिखे लोग भी झांसे में आ गए। बोंगा भैलुडा गाँव के ग्रामीणों द्वारा कोतवाली में तहरीर डियव जाने के बाद ठगी का नए तरह के ये मामला सामने आया है।

गिरीश गैरोला

सावधान, बेरोजगारी इस दौर में लूटने के इतने अधिक प्रभावशाली तरीके ईजाद हो रहे है कि पुलिस महकमा भी सोचने को मजबूर हो गया है कि आखिर इस अपराध पर आईपीसी की कौन सी धारा लगाई जाए ? वही ग्रामीण भी जल्दबाजी में फ्रॉड स्कीम को सरकारी योजना समझ कर अडोसी पड़ोसी को पता चलने से पहले जल्दी लाभान्वित होने के चक्कर मे लूट जाता है।ताजा मामला उत्तरकाशी जिले से जुड़ा है जहाँ मुख्यालय केआसपास के गाँव मे  बोंगा भैलुडा में अतुल भारतीय बायो प्लांट बुलंद शहर उत्तरप्रदेश  नाम से कुछ ठगों ने गांव के कई लोगो को 25 हजार के चंदन के पेड़ थमा दिए , ग्रामीण शक्ति प्रसाद, कुलदीप और गणेश ने थाना कोतवाली उत्तरकाशी में तहरीर देकर मामला दर्ज कराया है। पीड़ितों ने बताया कि उन्हें सरकारी स्कीम बताकर लूट की गई है। उन्हें बताया गया कि पांच वर्ष तक पेड़ की देखभाल करने और बाद में पेड़ की लकड़ी खरीदने की उनकी जिम्मेदारी होगी काश्तकारों को इसका पूरा भुगतान मिलेगा।

जांच अधिकारी मनीषा नेगी ने इसकी पुष्टि की है, उनहोने कहा कि मामले की जांच सुरु कर दी गयी है।इस संबंध में डीएफओ उत्तरकाशी संदीप कुमार ने बताया कि उनके पास कोई ऐसी स्कीम नही है , जिसमे ऊंचाई वाले इलाको में चंदन लगाया जा सके।

मुख्य उद्यान अधिकारी प्रभाकर सिंह ने भी इसे विभागीय स्कीम होने से इनकार कर दिया।सवाल ये है कि चंदन इस पहाड़ी ऊँचाई पर उगना संभव ही नही उसे तो नमी वाली नदी के किनारे की जगह चाहिए,  अब पुलिस विभाग भी हैरान है कि लूट  फ्रॉड तो हुई है किंतु आईपीसी की किस धारा का उलंघन हुआ? पहली बात ये कि जो पेड़ दिए गए है वे चंदन है या नही अगर पेड़ चंदन के ही निकले तो मामला क्या बनेगा ? पेड़ सस्ता महंगा बेचना कौन सा अपराध होगा? ऐसे ही कुछ सवाल है जो पुलिस को परेशान किये हुए है यदि पेड़ खरीदने से पूर्व ग्रामीण पुलिस से जांच कर लेते तो उनके 25 -25 हजार तो बचते ही पुलिस का समय भी बचता, और पेपर का कागज भी।

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