बंदरो ने थामी कूड़ा निस्तारण की जिम्मेदारी

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कूड़ा निस्तारण की जिम्मेदारी किसकी?

पालिका और जिला प्रशासन एक दूसरे पर थोप रहे जिम्मेदारी।
बंदरो ने संभाली कूड़ा निस्तारण की जिम्मेदारी

बिजली नही बदबू दे रहा कूड़ा, चुनावी घोषणाये हवा।

गिरीश गैरोला

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में कुड़े के डंपिंग को लेकर हाई कोर्ट के दखल के बाद भले ही तेखला खड्ड से होते हुए गंगा नदी में कुड़े के जाने पर रोक लग गयी हो किन्तु अब ये कूड़ा रास्ट्रीय राजमार्ग के मुख्य चौराहो पर बीच सड़क में पड़ा सड़ रहा है। जिम्मेदार विभाग की तरफ से कोई पहल न देख बंदरो ने कुड़े को जैविक अजैविक अलग अलग करने की जिम्मेदारी सी थाम ली है। सभी जगहों पर कुड़े के पास बंदर सकुटुम्ब देखे जा सकते है।
जिसे देखकर पुरानी फ़िल्म का वो नगमा याद आ गया – घुंगरू की तरह बजता ही रहा हु मैं ,…. कभी इस पग में कभी उस पग में बजता ही रहा हु……..
उत्तरकाशी शिव नगरी में भी कुड़े के यही हाल है कभी तेखला खड्ड में तो कभी रामलीला मैदान में कभी जियो ग्रिड दीवार के पीछे तो कभी कंसेन गाँव के पास गिरता ही रहा है।
उत्तरकाशी में 14 जनवरी से सुरु होने वाला पौराणिक माघ मेला तो किसी तरह निबट ही गया, रामलीला मैदान का कूड़ा पुलिस फ़ोर्स के साथ कंसेन गाँव के पास जल विधुत निगम की भूमि के पास डाल दोय गया किन्तु अब उस स्थान पर भी हाई कोर्ट ने स्थगन आदेश दे दिया है जिसके बाद पालिका प्रशासन ने वहाँ कूड़ा डालने पर रोक लगा दी है। अब यह कूड़ा सड़को पर ही सजा पड़ा है
अभी कड़ाके की शर्दी है तो कुछ लोग कूड़ा जलाकर ही गर्मी ले रहे है किंतु जल्द ही गर्मियों के समय आने वाला है जिसके बाद तुरंत चार धाम यात्रा सुरु होगी तो प्रशासन की गर्मी निकाल देगी। कूड़ा निस्तारण को लेकर जिले में कोई ठोस योजना नही है। पालिका  चुनाव से पूर्व सभी दावेदार कुड़े की समस्या को चुटकी बजाते ही दूर करने का भरोसा दे रहे थे अब समझ नही आ रहा कि वो चुटकी आखिर बज क्यों नही रही है?
अध्यक्ष नगर पालिका रमेश सेमवाल कूड़ा निस्तारण के लिए प्रशासन पर जमीन उपलब्ध कराने की बात कह रहे है तो प्रशासन कहता है कि उन्होंने कंसेन के पास जमीन उपलव्ध कराई थी और पुलिस फ़ोर्स की मौजूदगी में कूड़ा भी डंप करवा दिया था अब वहां भी तेखला के बाद कोर्ट ने रोक लगा दी तो कोर्ट में जबाब ही दिया जा सकता है।
आखिर सड़क पर कूड़ा पड़े पड़े सड़ता रहे ये न्यायलय की भावनाओ का सम्मान तो कतई  नहीं है। कुछ समय से तो देश और प्रदेश में हर कामअब कोर्ट के आदेश पर ही होने की परंपरा सी चल पड़ी है, सोचने की बात है कि आखिर ऐसी स्थिति क्यों पैदा हो रही है?
समाधान की तरफ कोई नही बढ़ रहा है तो बंदरो ने इसकी जिम्मेदारी ले ली है, कुड़े से जैविक कूड़ा भोजन के रूप में ग्रहण कर एक तरह से वे इसे अजैविक कुड़े से अलग करने का काम तो कर रहे है किंतु बासी और कूड़ा मिले हुए भोजन से जो बंदरो में बीमारी फैली या उन्होंने कोई उत्पात मचाया तो कुड़े से बड़ी दूसरी समस्या पैदा हो जाएगी। जिसके समाधान की अभी से तैयारी की जरूरत है।

https://youtu.be/wA5vVOQmouo

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