देहरादून। राजधानी में ताबड़तोड़ बढ़ रहे अपराधों से यह साफ हो गया है कि बदमाशों में मित्र पुलिस का कोई खौफ नहीं है और वह पुलिस को खुली चुनौती दे रहे है। सवाल यह है कि क्या सूबे की मित्र पुलिस को यूपी की तर्ज पर काम करने की जरूरत है। जहाँ एनकाउंटर के डर से बदमाश जान बचाने के लिए इधर उधर भागते फिर रहे है।
गिरीश गैरोला
राजधानी दून की पुलिस जितनी तत्परता से आपराधिक मामलों के खुलासे कर रही है तथा अपराधियों को जेल भेज रही है उतनी ही तेजी से अपराधों का ग्राफ भी बढ़ रहा है। इसका सीधा मतलब है कि अपराधियों में पुलिस का कोई खौफ नहीं है। राजधानी में बढ़ते अपराधों के कारण आम आदमी भी भयभीत है। राजपुर रोड़ स्थित दून विहार म जिस तरह दिन दहाड़े घर में घुसकर सेवानिवृत्त महिला अधिकारी की हत्या की गयी और लाखों का माल लूट लिया गया वह इन अपराधियों के बुलंद हौसलों की ताजा मिसाल है।
इससे पूर्व राजपुर थाना क्षेत्र में ही बदमाशों द्वारा एक एटीएम को काटकर 20 लाख की नकदी पर हाथ साफ कर दिया गया था। वहीं इसी क्षेत्र में अभिमन्यु क्रिकेट अकादमी के मालिक के घर सरेआम करोडोें की लूट की घटना को अंजाम दिया गया था। बीते चार रोज पूर्व प्रेमनगर क्षेत्र में एक दूध व्यापारी पर गोलियां चलाकर उसे लूटने का प्रयास किया गया था इससे कुछ ही दिन पूर्व इसी क्षेत्र में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग में एक युवती की हत्या किये जाने का मामला भी प्रकाश में आया था।
अभी चंद दिन पूर्व ही दिन दहाडे एक आढ़तिये के मुंशी से बदमाशों ने एक लाख रूपये लूट लिये थे। यह चंद वारदातें इस बात का सबूत है कि राजधानी दून में इन दिनों अपराधोें की जैसे बाढ़ सी आ गयी है। पुलिस भले ही अपराधियों की धरपकड़ और मामलों के खुलासों में कितनी भी तत्परता क्यों न दिखा रही हो लेकिन अपराधियों को वारदात करने से रोकने में दून पुलिस पूरी तरह से नाकाम साबित हो रही हैै। जिसका मुख्य कारण है बदमाशों में पुलिस का कोई खौफ न होना, यही वजह है कि वह जब चाहे जहाँ चाहे अपराधिक वारदातों को अंजाम देने में सफल हो रहे है दून विहार में दिन दहाडे एक महिला की हत्या कर लूटपाट की घटना ने एक बार फिर दून में सीनियर सिटीजनों की सुरक्षा पर सवाल खडे कर दिये है।
इस घटना को लेकर वह सभी लोग चिंतित और परेशान है जिनके घर अकेले है और वहाँ उनके वृद्ध परिजन रहते हैै। कुछ साल पहले दून पुलिस द्वारा इन वयोवृद्ध नागरिकों की सुरक्षा के लिए बीट पुलिसिंग व्यवस्था शुरू की गयी जिसकी जिम्मेदारी हर थाने के सिपाहियों को सौंपा गयी थी। वह रोज नियमित रूप से जाकर इन सीनियर सीटिजनों की खैर खबर लेते थे तथा किसी भी आपत्ति के समय उन्हें क्या करना है? जिससे उन्हें तुरंत सहायता पहुचाई जा सके। यह सुनिश्चित किया जाता था लेकिन अब यह बीट पुलिसिंग व्यवस्था ढप पड़ी है जिसे फिर से दुरूस्त करने की जरूरत है। पुलिस जब तक अपने क्षेत्र की जनता से सीधे सपंर्क में नहीं रहेगी तब तक इस तरह के अपराधों को नहीं रोका जा सकता है।