अनिल बलूनी की दिल्ली साधना से डरे उत्तराखंड के देवराज इंद्र ( त्रिवेंद्र) अब देवगुरु बृहस्पति से मशवरा लेने की बजाय दैत्यगुरु शुक्राचार्य के चक्कर काटने में लगें है, लंबे समय तक वनवास काटने के बाद निष्कंटक राज नीति की अभिलाषा लिए कभी निशंक का शंख बजाने में लगे थे तो उनके केंद्र के जाने के बाद बलूनी के प्रदेश प्रेम पर शक का बीज बोने की तैयारी चल रही है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का आधे से अधिक कार्यकाल खत्म हो चुका है। आगे के 2 महीने पंचायत चुनाव में निकल जाएंगे और आखिरी 6 महीने कोई विकास कार्य होते नहीं, वह चुनाव की तैयारियों में निकल जाते हैं।
एक तरह से प्रचंड बहुमत के बावजूद भाजपा आलाकमान ने एक सर्वथा अयोग्य, दो बार विधानसभा चुनाव हारे हुए अयोग्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना कर उत्तराखंड की जनता के भाग्य में 5 साल नाकामियों की पटकथा लिख डाली है।
अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत विक्टिम कार्ड के भरोसे अपनी नाकामियों को छुपाने में लगे हुए हैं। मुख्यमंत्री बनते ही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए यह राग अलापना शुरू कर दिया था कि उनके खिलाफ षड्यंत्र किया जा रहा है और उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा है।
100 दिन में ही लोकायुक्त बनाने का वादा करके सत्ता में आई त्रिवेंद्र सरकार पहले डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के माथे पर षडयंत्र करने का ठीकरा फोड़ती रही।
अब उनके केंद्र सरकार में कद्दावर मानव संसाधन विकास मंत्री बनने के बाद अब षडयंत्रों का ठीकरा राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के सर फोड़ा जाने लगा है। यहां तक कि अनिल बलूनी के द्वारा कराए जा रहे कार्यो को भी रोका जाने लगा है।
विगत कुछ समय से मुख्यमंत्री कार्यालय के एक कोटर्मिनस अधिकारी तथा सूचना विभाग के एक अधिकारी के द्वारा यह खबरें प्लांट कराई जा रही है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ षड्यंत्र किया जा रहा है।
किंतु इन अधिकारियों को सिर्फ त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने अपने नंबर बढ़ाने से मतलब है, क्योंकि विक्टिम कार्ड खेलने की भी एक टाइमिंग होती है और त्रिवेंद्र सिंह रावत की टाइमिंग सही नहीं है।
उदाहरण के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत तो खुद को सीबीआई द्वारा जबरन फंसाए जाने को लेकर विक्टिम कार्ड बखूबी खेल सकते हैं, क्योंकि यह उनके लिए विक्टिम कार्ड खेलने की सही टाइमिंग है और वह बखूबी जनता की सहानुभूति भी बटोर रहे हैं।
इसके उलट त्रिवेंद्र सिंह रावत से लोग सवाल करने लगे हैं कि “आखिर आप कैसे सीएम हो जो आप ढाई साल से यही कह रहे हो कि आप के खिलाफ षड्यंत्र हो रहा है ! और आपको काम नहीं करने दिया जा रहा।”
मुख्यमंत्री का विक्टिम कार्ड इसलिए भी काम नहीं कर रहा क्योंकि विक्टिम कार्ड के निशाने बदलते जा रहे हैं। पहले निशंक को निशाना बनाकर विक्टिम कार्ड खेला जा रहा था और अब यह कार्ड बलूनी को सामने रखकर खेला जा रहा है।
गौरतलब है कि सबसे पहले मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार केएस पंवार के एक कर्मचारी ने सोशल मीडिया पर इस बात का प्रचार प्रसार किया था कि राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी मुख्यमंत्री को काम नहीं करने दे रहे। उसके बाद इसी खेमे के एक और पत्रकार ने भी इस पर बाकायदा पोस्ट प्रकाशित की थी कि अनिल बलूनी काम नहीं करने दे रहे।
अब मुख्यमंत्री से अपने उल्टे सीधे काम कराने वाले पत्रकार भी मुख्यमंत्री कार्यालय और सूचना विभाग के अधिकारियों के इशारे और संरक्षण में बाकायदा अनिल बलूनी को सीधे-सीधे टारगेट करने लगे हैं। ये वही लोग हैं जिनके खिलाफ देहरादून मे ही ब्लैकमेलिंग के कई मुकदमे दर्ज हैं। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत से लेकर अधिशासी अभियंताओं ने भी इनके खिलाफ ब्लैकमेल करने के मुकदमे दर्ज कराए हैं। अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इन्ही ब्लैकमेलरों को अपने दरबार मे खुली एंट्री देकर संरक्षण प्रदान कर दिया है। इसी संरक्षण मे ये लोग सांसद बलूनी को निशाना बना रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन सब हरकतों से भले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को खुश करके वह अपने उल्टे सीधे काम करा ले जाएं लेकिन भाजपा हाईकमान के सम्मुख यह बातें आने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को नुकसान होना तय है।