एक जमाने मे पिछड़ेपन से जुड़ा मानकर जिस बोली भाषा से लोग दूर होते जा रहे थे आज विदेशों में बसे उत्तराखंडी भी अपनी आने वाली पीढ़ी को अपनी बोली भाषा की क्लास देने लगे है। इस अनूठी पहल की सुरुवात राजधानी दिल्ली और एनसीआर में हुई थी जिसका अंकुर अब वट बृक्ष बनकर विदेशों तक जा पहुचा है।

हरीश असवाल दिल्ली
*उत्तराखंडी बोली भाषा पर गर्व देश बिदेश तक लगा चस्का दिल्ली एन सी आर प्रवासी व देश विदेश में पढ़ाई जा रही है ग्रीष्म क़ालीन गढ़वाली , कुमाऊँनी कक्षाए अलग- अलग संस्थान में इस बार ख़ूब दिखी बोली भाषा का चस्का दिल्ली में ही नहीं बल्कि सात समुन्दर पार मलेशिया, जापान , टर्की जैसे विदेश उत्तराखंडी प्रवासीयो ने भी गढ़वाली कुमाऊँनी लोक भाषा की कक्षाए इस वर्ष से पढ़ाई है और कहा कि लोक बोली ही हमारा परिचय होगा ये बहुत ही गर्व की बात है कुछ वर्ष पूर्वांत दिल्ली प्रवासी अपनी लोक बोली पर शर्म महसूस किया करते थे ख़ास तौर पर महिला अपने बच्चों को लोक भाषा बोलने से समझने से इनकार करती थी लेकिन आज का दौर महिलायें ही सबसे आगे लोक बोली भाषा का बोल चाल करती है और कक्षाए में बच्चों को भेजने में बड़ा योगदान करती है जिसके कारण दिल्ली में अलग अलग संस्थान में ग़ैर उत्तराखंडी बच्चों ने गढ़वाली कुमाऊँनी बोली भाषा सीखने के लिये कक्षाए की है जिस पर उत्तराखंड़ के लोगों को गर्व महसूस होता है । दिल्ली में गढ़वाली कुमाऊँनी बोली भाषा विगत 3 वर्ष से ड़ी०पी०ऐम०ई० निदेशक डॉ विनोद बछेटि ने बोली भाषा की कक्षाए अपनी संस्थान न्यू अशोक नगर से शुरुआत की और अन्य संस्थानो पर विगत 2 वर्ष से बोली भाषा की 38 स्थानो पर अलग अलग संस्थाएँ ने कक्षाए पढ़ाई है जिसमें उत्तराखंड साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों, संस्थाओं, का निशुल्क पढ़ाई तथा अभ्यास बुक पेन , पेंसिल , बैग, बच्चों के लिये जलपान की ब्यवस्था की गयी और बच्चों को ग्रीष्म क़ालीन सत्र का प्रमाण पत्र भी हर वर्ष की तरह वितरण किया जाता है ।