भारतीय रागों में रंग से गये विदेशी

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ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में अन्तर्राष्ट्रीय कीर्तन बैंड के सदस्य पहंुचे। इस बैंड में विश्व के 7 से भी अधिक देश यथा भारत, इंग्लैड, यूएसए, स्काॅटलैंड, कोस्टारिका, फिनलैण्ड और क्यूबा के सदस्य शामिल है। इस दल के सदस्य परमार्थ निकेतन आकर माँ गंगा के तट पर प्रभु के कीर्तन की प्रस्तुति देते है। साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव में भी कीर्तनकर्ता अपने कीर्तन से सभी को मंत्रमुग्ध करते है। विदेश से आये कीर्तनियाँ पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति में रंगे हुये है, उन्होने अपने नाम भी भारतीय रख लिये है, भारतीय भाषा में बात करते है, वे श्रद्धाभाव के साथ संकीर्तन करते है। जब वे कीर्तन करते है तो लोग झूमने लगते है भाव विभोर होने लगते है।  स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भक्तिमार्ग पर चलने का सहज माध्यम है प्रभु के नाम का स्मरण करना अर्थात कीर्तन करना। गुरू नानक देव जी ने कहा है कि ’होठ खुले सो कीर्तन हो’ और बिना भजन बन्दगी कोई तेरा नहीं। ये कीर्तनियां विश्व के अनेक देशों में जाकर कीर्तन के माध्यम से प्रभु का संदेश प्रसारित करते है। स्वामी जी ने कीर्तन के माध्यम से जल एवं नदियों के संरक्षण का संदेश देते हुये कीर्तनियों से कहा कि जल के बिना दुनिया में शान्ति की कामना नहीं की जा सकती। उन्होने कहा कि जल विशेषज्ञों के अनुसार आगे आने वाला समय ऐसा भी हो सकता है कि लोग जल के लिये युद्ध करें तथा विश्व में सबसे ज्यादा जल शरणार्थी भी हो सकते है। उन्होने कहा कि हमें जल की महत्ता को समझना होगा, जल केवल मानव जाति के लिये ही जरूरी नहीं है बल्कि पृथ्वी पर जो भी कुछ हम देख रहे है वह जल के बिना असम्भव है। अतः कीर्तन के माध्यम से जल जागरण करना तथा जल संरक्षण का संदेश सभी तक पहुंचाना आवश्यक है। उन्होने कहा कि कीर्तन और भजन भारत की अमूर्त आध्यात्मिक विरासत है और इस गौरवशाली संस्कृति और संास्कृतिक इतिहास में माँ गंगा एवं अन्य नदियों का महत्वपूर्ण स्थान है। ंिसंधु और गंगा नदियों के तटों पर ही हमारी सभ्यतायें विकसित हुई थी और आज भी हो रही है। विविधता में एकता की संस्कृति को गंगा ने ही जीवंत बना रखा है जो भी माँ गंगा के तट पर आता है वह एक दिव्य शान्ति को आत्मसात करता है। स्वामी जी ने कहा कि हमारी नदियों को जीवंत बनायें रखने के लिये मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। विदेश से आये प्रमुख कीर्तनियां विजय कृष्ण के मार्गदर्शन में दल के सभी सदस्यों ने परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर आशीर्वाद लिया। स्वामी जी ने उन्हें कीर्तन के माध्यम से नदियों के संरक्षण का संदेश प्रसारित करने हेतु प्रेरित किया। विजय कृष्ण के कहा कि हम इसके लिये तैयार है, हम जहां पर भी जायेंगे योग का उत्सव और नदियों के संरक्षण का स्वामी जी का संदेश कीर्तन के माध्यम से प्रसारित करेंगे। विजय कृष्ण ने कहा कि हम अपने देश से जब भी परमार्थ निकेतन आते है यहां पर हमें हमेशा की तरह आत्मीयता, अपनत्व और आध्यात्मिक ऊँचाईयों पर बढ़ने का संदेश प्राप्त होता है। माँ गंगा के तट पर कीर्तन करने के पश्चात हमें आध्यत्मिक तृप्ति का अनुभव होता है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में कीर्तनियों के दल के सदस्य विजय कृष्ण, रसिका दासी, सीता देवी, नटेश्वरी योगिनी और दल के अन्य सदस्यों ने विश्व स्तर पर जल की आपूर्ति हेतु विश्व ग्लोब का जलाभिषेक किया तथा जल संरक्षण का संकल्प लिया।

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