वन वे एंट्री वाले इस गाँव की दास्तां

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इस गाँव से कोई पशु लौट कर नही आता।
वन वे एंट्री वाला गाव।
गिरीश गैरोला
जिला मुख्यालय से लगा हुआ स्युना गाँव कम से कम पशुओंके लिए तो वन वे सिस्टम ही बन कर रह गया है जहाँ एक बार कोई पशु गलती से चला जाता है तो फिर वापस लौट कर नही आता।

5 दिन बाद भी गाव तक नही पहुँच सकी गाय।

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से लगे स्युना गाँव मे संपर्क मार्ग न होने से लोगो की दिनचर्या पहाड़ सी मुस्किल हो गयी है। गाँव के राजेश सजवाण में बताया कि उनके गांव के कुशला प्रसाद उनियाल ने अपने बच्चों को दूध पिलाने के उद्देश्य से तेखला कैंटीन के पास से लगे हुए गाँव से एक गाय खरीदी । किन्तु गाय को गाँव तक पहुचाना मुस्किल हो गया है। ग्रामीणों ने बताया कि रास्ते न होने से  5 दिन बाद भी गाँव तक नही पहुँच सकी है और अब गाय इतनी चोटिल हो चुकी है कि उसे तेखला पुल के पास मांडो गाँव के किसी परिचित की छानी में ही कुछ दिन रोकना पड़ा उम्मीद है तीन से चार दिन बाद जब गाय की चोट ठीक हो जाय तभी वह आगे का सफर तय कर अपनी मंजिल तक पहुँच सकेगी।
ग्रामीणों ने बताया कि गंगोरी के पास से भागीरथी के पास बनाई गई अस्थायी पुलिया  भी डैम से छोड़े गए अतिरिक्त पानी के कारण बह गयी है। अब तो इंसानो को भी तेखला पुल के पास से नदी के किनारे अतिरिक्त तीन किमी उबड़ खाबड़ पहाड़ी उतराई  चढ़ कर गाँव तक पहुंचना पड़ रहा है आलम ये है कि एक माचिस के लिए भी मुख्यालय की दौड़ लगानी है और दस बार सोचना पड़ रहा है।
पशुओं के लिए तो पहले से ही रास्ता नही है। ये तय जानिए कि एक बार जो  पशु गाँव मे आ गया वो कभी बिक कर अन्य गाँव नही जा सकता क्योंकि वापसी का रास्ता ही नही है। ये गाव मुख्यालय के पास होते हुए भी one वे सिस्टम वाला गाँव बन गया है। गाँव मे पशु को लाने के लिए भी कम से कम 6 लोगो कक जरूरत पड़ती है रस्सों से बांध कर पूंछ पकड़ कर खींचने से पशु चोटिल हो जाता है। किंतु जिम्मेदार प्रसासन और नेताओ के पास इस विषय पर बात करने लिए समय ही नही है।
एक गाय को 5 दिन बाद भी गाव तक नही पहुचाया जा सका तो गाँव की मुश्किलें खुद समझी जा सकती है।
ग्रामीण वर्षो से एक अदद संपर्क मार्ग मांग कर रहे है जिसके बदले में उन्हें बस कोरे आश्वासन ही मिल रहे है।
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