देवभूमि उत्तराखंड में इंसानों ने देवताओं को भी मानवीय रिश्तों में बांध कर रखा हुआ है। इंसानों की खुसी और गम में देवता भी शरीक होते है। शिव पुत्र भगवान कार्तिकेय को यहाँ हरि महाराज के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में स्त्रियों का प्रवेश पूर्णतया वर्जित है। आखिर क्यों नाराज है भगवान नारी समाज से?
दिवाकर भट्ट
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से सटे भटवाड़ी ब्लॉक का बाड़ागड्डी पट्टी क्षेत्र के करीब 14 गांवों के आराध्य देव हरि महाराज हैं। इनका पौराणिक मंदिर कुरोली गांव से करीब दो किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई के बाद एरावत पर्वत श्रृंखला और हरि गिरी पर्वत के बीच कुंज्जनपुर नामक स्थान पर स्थित है। यहां ग्रामीण श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ के पुत्र कार्तिकेय महाराज को हरिमहाराज के रूप में पूजते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान गणेश और कार्तिकेय को पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए कहा गया तो गणेश जी ने माता-पिता को पृथ्वी एवं आकाश मानकर उनकी परिक्रमा की थी, लेकिन कार्तिकेय महाराज अपने वाहन हंस पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चल दिए थे। लेकिन जब वह लौटे तो गणेश को विजेता घोषित किया गया। इसी बात से नाराज होकर कार्तिकेय महाराज अपने माता-पिता शिव पार्वती से रूठ कर चले गए और उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई। यही कारण है कि उनके मंदिर में महिलाओं को जाना वर्जित माना गया है।
सीटी से प्रसन्न होते हैं हरि महाराज
मान्यता है कि बिना सीटी बजाने पर हरि महाराज प्रसन्न नहीं होते। ग्रामीण जब भी हरि महाराज से अपनी समस्या लेकर जाते है तो वह बिना सीटी बजाया इनका आवाह्न नहीं करते। कहा जाता है कि हरि महाराज के दोस्त हुणेश्वर महाराज थे, जिनका मंदिर कुरोली के हुणेश्वर तोक पर स्थित है। हरिगिरी पर्वत से हरि महाराज और जब हुणेश्वर से वार्ता करते थे, तो वह आपस में सीटी के माध्यम से ही एक दूसरे से वार्तालाप करते थे। तब से लेकर यह परंपरा आज भी जीवित है।
साभार :अपुणू उतराखंड की वाल से।।।