रोटी और बेटी के रिश्ते में बढ़ गयी दूरी।
18 वर्ष से नही बन सका गाँव को जोड़ने वाला पुल।
सड़क मार्ग से 18 किमी पैदल चलकर पहुँचते है पिलंग गाँव।
पुल के दोनों ठेकेदार अब बन चुके है विधायक।
गिरीश गैरोला।
दैवी आपदा के बाद टूटे संपर्क मार्ग ने दो गांवो के बीच रोटी और बेटी के रिश्ते में भी दूरी बना दी है। लोक निर्माण विभाग के वर्ड बैंक ने दोनों गाँव के लिए पुल की स्वीकृति तो दे दी है किंतु विभाग के इंजीनियर भी 18 कमी दूर पैदल गाँव तक पहुँचने से पूर्व ही हिम्मत हार कर वापस लौट गए।
गंगोत्री राजमार्ग पर मल्ला के पास से सिलपडी, सिल्ला जौडाऊ होते हुए खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद करीब 18 कमी का सफर 10 से 12 घंटे में तय होता है। सड़क से दूरी के चलते कोई इस गांव में रिश्ते नही करना चाहता है। ऐसे में जब कोई अधिकारी ही गाँव मे जाने से कतराते हो तो विकास कैसे पहुँच सकता है। ग्रामीणों की मजबरी है तो पिलंग गाँव और जौड़ाउ गाँव के लोग आपस मे भी बेटी बहनों का रिश्ता करते है।
पिलंग और जौड़ाउ गाव के बीच संपर्क का एकमात्र साधन 90 मीटर स्पान का पैदल झूला पुल वर्ष 2005 में बह गया था। गौर करने वाली बात ये है कि ये पुल उस वक्त दो दोस्तों द्वारा बनाया गया था जो अब बारी बारी से गंगोत्री विधान सभा से विधायक है और एक दूसरे के राजनैतिक शत्रु भी है।
पैदल पुल बह जाने के बाद यहाँ 110 मीटर स्पान की ट्रॉली लगाई गई तो फिर से गाँव के बीच संपर्क सुरु हुआ। वर्ष 2013 की आपदा में ये ट्रॉली भी बह गई। तब से लेकर दोनों गाँव के बीच संपर्क न होने से दूरियां बढ़ गयी है। नए रिश्ते नही हो पा रहे है और पुराने भी निभ नही पा रहे है।
दैवी आपदा में बहे ऐसे स्थलों में संपर्क फिर से बन सके इसके लिए वर्ड बैंक ने पिलंग में 11.5 करोड़ और जौड़ाउ में 1.5 करोड़ की लागत से पुल स्वीकृत किया है।
पूर्व में बने 90 मीटर स्पान के स्थान पर अब प्रस्तावित 120 मीटर स्पान को कम करने की उम्मीद तलास करने के लिए वर्ड बैंक के निदेशक अमित नेगी ने मौके पर जाकर रिपोर्ट करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए।
जिसके बाद वर्ड बैंक लोक निर्माण शाखा उत्तरकाशी से सहायक अभियंता अभिषेक तिवाड़ी और अवर अभियंता सीएल भारती मौके के लिए रवाना तो हुए किन्तु पिलंग पहुँचने से पहले ही वापस मुड़ गए।
अवर अभियंता सीएल भारती ने बताया कि सिल्ला से जौड़ाउ तक जंगलों से होते है अंदाज से आगे बढ़ना होता है और जौड़ाउ से आगे तो मार्ग पर चलना ही संभव नही है। कुछ दूर जानवरो की तरह हाथ पैर से चलने के बाद उनकी भी हिम्मत जबाब दे गई । उन्होंने कहा कि फिलहाल इन स्थानों पर खच्चर के चलने लायक पैदल मार्ग भी नही है। लिहाजा पुल निर्माण से पूर्व समान और इंसानों के चलने लायक पैदल मार्ग बनाना जरूरी होगा।
सीमा के आखिरी इस गाँव के एक तरफ से चीन को जोड़ने वाला निलोंग बॉर्डर दिखाई देता है। शर्दियों में यहाँ करीब 3 फ़ीट बर्फ पड़ती है लिहाजा वर्ष भर में कुछ महीने ही काम करने लायक मौसम मिल सकेगा।