देहरादून। उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के सेवा सम्बन्धी मामलों का निर्णय करने वाले विशेष न्यायालय (ट्रिब्युनल) की नैनीताल पीठ ने एस.एस.पी. उधमसिंह नगर तथा आई.जी कुमाऊं नैनीताल के पुलिस कांस्टेबिल विनोद खाती के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही में किये गये दण्ड आदेशों को निरस्त कर दिया। ट्रिब्युनल वाइस चेयरमैन (ज्यूडिशियल) राजेन्द्र सिंह की बंेच ने कांस्टेबिल विनोद खाती की याचिका पर एस.एस.पी. के आदेश को सहायक पुलिस अधीक्षक/ पुलिस क्षेत्राधिकारी काशीपुर की द्वेष पूर्ण व गलत जांच पर आधारित तथा विधिविरूद्ध मानते हुये तथा आई.जी. के अपील आदेश को विवेक के इस्तेमाल किये बिना मानते हुये निरस्त किया है।
उधमसिंह नगर में तैनात कांस्टेबिल विनोद खाती की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन एडवोकेट ने उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण की नैनीताल पीठ में याचिका संख्या 18 सन 2023 दायर की थी। इसमें कहा गया था कि जब 2020 में वह पुलिस चैकी पतरामपुर थाना जसपुर में तैनात था तो दिनांक 07-09-2020 को गुरदीप सिंह के घर जंगली जानवर का मांस होने की सूचना मिलने पर याची द्वारा अपने कर्तव्यों का पूर्ण ईमानदारी व कर्मठता से पालन करते हुये उसके घर दबिश दी गयी परन्तु कोई वस्तु बरामद न होने पर इसकी सूचना अपने उच्च अधिकारी को दी गयी। इस प्रकरण में प्रारंभिक जांच सहायक पुलिस अधीक्षक/क्षेत्राधिकारी काशीपुर से करायी गयी जिन्होंने अपनी जांच आख्या में बिना स्वतंत्र साक्ष्यों तथा याची के पक्ष को विचार में लिये, बिना स्वतंत्र गवाहों तथा साक्ष्यों के याची द्वारा कोई वैधानिक कार्यवाही न करते हुये गुरदीप सिंह से रिश्वत प्राप्त कर छोड़ने का निष्कर्ष दे दिया। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने इस जांच आख्या को आधार बनाते हुये अपने आदेश दिनांक 22-10-2021 से कांस्टेबिल की वर्ष 2021 की चरित्र पंजिका में परिनिन्दा प्रविष्टि अंकित करने का आदेश दे दिया। कांस्टेबिल द्वारा इसकी अपील आई.जी. कुमाऊं परिक्षेत्र नैनीताल को की गयी लेकिन उन्होंने भी अपील पर निष्पक्ष रूप से विचार किये बगैर अपील आदेश दिनांक 14 दिसम्बर 2022 से अपील को निरस्त कर दिया। इस पर कांस्टेबिल विनोद खाती द्वारा अपने अधिवक्ता नदीम उद्दीन के माध्यम से उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण की नैनीताल पीठ में दावा याचिका दायर की। याचिका में विभागीय दण्ड के आदेश व अपील आदेश को निरस्त करके तथा उसके आधार पर रूके सेवा लाभों को दिलाने का निवेदन किया गया।
याचिकाकर्ता की ओर से नदीम उद्दीन ने विभागीय जांच, दण्ड आदेश व अपील आदेश को अवैध, निराधार तथा प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर निरस्त होने योग्य बताया। अधिकरण के उपाध्यक्ष (न्यायिक) राजेन्द्र सिंह की पीठ ने श्री नदीम के तर्कों से सहमत होते हुये सहायक पुलिस अधीक्षक/पुलिस क्षेत्राधिकारी की जांच को द्वेष पूर्ण तथा गलत माना तथा इसके आधार पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उधमसिंह नगर द्वारा दिये गये दण्ड आदेश को विधि विरूद्ध मानते हुये निरस्त कर दिया तथा आई.जी. कुमाऊं के अपील आदेश को विवेक का इस्तेमाल किये बिना मानते हुये निरस्त कर दिया। इसके साथ ही एस.एस.पी. तथा आई.जी.को आदेश दिया कि वह याची की चरित्र पंजिका व अन्य अभिलेखों मेें दर्ज परिनिन्दा प्रविष्टि को 30 दिन के अन्दर विलुप्त करें।
उपाध्यक्ष (न्यायिक) राजेन्द्र सिंह ने अपने फैसले में स्पष्ट लिखा है कि जांच में स्पष्ट है कि पुलिस टीम के सभी गवाहान, प्रभारी निरीक्षक व कानि0 क्लर्क के बयानों से यह स्पष्ट है कि गुरदीप सिंह को चैकी पतरामपुर पर उक्त दिनांक को नहीं लाया गया और न ही रिश्वत ली गयी। केवल गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर याचिकाकर्ता को दोषसिद्ध करना अपने आप में पूरी तरह विधि विरूद्ध है और यदि गुरदीप सिंह के बयान पर विश्वास किया गया था तो उस दशा में गुरदीप सिंह व पांच अन्य लोगों के विरूद्ध वन्य जीव संरक्षण अधिनियम तथा गुरदीप सिंह के विरूद्ध रिश्वत देने का मुकदमा पंजीकृत किया जाना चाहिये था तथा सोशल मीडिया पर किसके द्वारा व कहां से कथित मैसेज प्रसारित हुआ, के सम्बन्ध में भी कोई जांच नहीं की गयी। जिससे स्पष्ट है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक द्वारा जांच अधिकारी के द्वेषपूर्ण जांच के आधार पर याचिकाकर्ता को उसके उत्तर पर विचार किये बिना विधि विरूद्ध दण्डादेश पारित किया गया है और जिसके विरूद्ध अपील करने पर आई.जी. द्वारा भी विवेक का इस्तेमाल किये बिना ही अपील आदेश पारित किया गया। अतः उपरोक्त दण्डादेश विधि विरूद्ध होने के कारण अपास्त होने योग्य है।