पद्मावती के अविरल गंगा सत्याग्रह को सम्पूर्ण विश्व के सामने लाने के लिए संकल्पबद्ध तरुण भारत संघ ।

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14,15,16 जनवरी में तीन दिवसीय वैश्विक गंगा सम्मेलन तरुण भारत संघ में आयोजित किया गया। जिसमें भारत के अनेक राज्यो के प्रतिनिधियों के साथ साथ कई देशों के लोगो ने भाग लिया। इस सम्मेलन में 50 जल योद्धाओं का सम्मान किया गया।

अंकित तिवारी

ये वो लोग है जो सम्पूर्ण विश्व में अपनी अपनी कर्मभूमि पर प्रकृति के लिए कार्य करते है। इस सम्मेलन में सभी ने गंगा की निर्मलता पर हो रहे खर्चे पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक गंगा अविरल नहीं बनेगी तब तक यह गंगा नाला बन कर बहेगी।

अविरल धारा से ही गंगा का गंगत्व बचेगा। सम्मेलन में सर्वसम्मति से पद्मावती के आमरण अनशन के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में कुछ निर्णय निम्न है:- निर्माणाधीन बांधों को रुकवाना, नए बांधों पर सदा के लिए रोक लगवाना, गंगा में खनन नही हों, गंगा की सनातन शक्ति गंगत्व को बनाये रखने हेतु कानून बनवाना, कानून की पालना हेतु गंगा भक्त परिषद निर्माण कराना है। इन्ही मांग हेतु तरुण भारत संघ के उपाध्यक्ष प्रों. जी. डी. अग्रवाल ने गंगा हेतु प्राणों का बलिदान किया था। जब तक ये कार्य पूर्ण नही होगें तब तक तरुण भारत संघ का संघर्ष जारी रहेगा।
इस सम्मेलन में मातृ सदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती जी ने कहा कि पिछले 20 सालों से अपने शिष्यों और स्वयं ने गंगा हेतु 61 बार तप किया है, जिसमे 3 बलिदान भी है। अब की बार मातृ सदन की युवा साध्वी 33 दिनों से तप कर रही है, वह मात्र नीबू, शहद, नमक और पानी पर आश्रित है। अब समय आ गया है कि आंदोलन में गति लाई जाए। जिससे मां गंगा और पद्मावती के जीवन की रक्षा हो सके। मातृ सदन बलिदानों से नहीं डरता, तप बल में हमारा मां गंगा के लिए समर्पण दर्शाता है। सरकार संवेदन हीन है, और सुन नहीं रही है। हमे सारे विश्व के सामने पद्मावती के तप को लाना होगा, जिससे सरकारों को जगाया जा सके। इस सम्मेलन ने जल पुरुष श्री राजेन्द्र सिंह जी ने कहा कि हमारे पास यह अंतिम समय है, मां गंगा और युवा साध्वी पद्मावती दोनों का अस्तित्व बचाने के लिए। अगर अब भी देश और समाज को हम जाग्रत नहीं कर पाए, तो सारे बलिदान व्यर्थ हो जाएंगे। क्योंकि ये सरकार मां गंगा का सामान्य बहाव 20 प्रतिशत का आदेश जारी कर चुकी है। मगर जिन कम्पनियों पर बांधो की जिम्मेदारी है, वे मात्र 5 प्रतिशत बहाव देने को तैयार है। और अगर ये कार्य हो गया तो मां गंगा अपना वास्तविक रूप खो देगी। साथ ही गंगा की गोद में बसे 44 करोड़ लोगो को पानी नहीं मिल पाएगा। अन्य राज्यो और विदेशो से आए पर्यावरण विदों ने भी विचार रखे जिनमे
महाराष्ट्र से आए रमाकांत कुलकर्णी ने कहा कि गंगा की निर्मलता, अविरलता के बिना संभव नहीं है। महाराष्ट्र की अग्रणी नदी को पुनर्जीवित करने वाले नरेन्द्र चुग ने कहा कि गंगा जी पूरे भारत की भारतीय संस्कृति और आस्था का केंद्र है। इसकी अविरलता के बिना गंगा का गंगत्व बचेगा नहीं। गंगा के गंगत्व में ही विलक्षण प्रदूषण नाशनी शक्तियां है। यही शक्ति गंगा जी में सच्ची आस्था पैदा करने का काम करती है। यह नहीं बचेगी तो आस्था नहीं बचेगी । बंगाल से आए जयंत बासु ने कहा कि बंगाल को भी गंगाजल चाहिए। अभी इसे गंगाजल नहीं गंदा जल मिल रहा है। गंदा जल रुके और गंगा जल आऐ। यह तभी संभव होगा जब गंगा पर बड़े बांध बनने रुक जाएंगे। इसलिए गंगा पर बनने वाले बांध रुकना चाहिए। इन बांधों के कारण सुंदरवन भूमि घट रही है, व राज्य की भूमि भी घट रही है द्वीप डूब रहे है।
उड़ीसा से आए भक्त चरण दास ने कहा कि ‘अब नदियों पर संकट है, सारा देश इक्कट्ठा हो‘ गंगा और महानदी को बचाएं। कर्नाटक से आए महादेव गौंड़ा ने कहा कि गंगा हमारी भी उतनी ही है, जितनी उत्तराखंड, यूपी, बिहार, की है। अब हम भारत की सभी नदियों को बचाने के लिए एकजुट होंगे। न्यायमूर्ति श्री शंभू नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि गंगा हमारी संस्कृति का आधार है। नांदेड़ से आए प्रमोद देषमुख ने कहा कि गंगा को बचाने के लिए पूरे देश को एकजुट होना होगा, तभी गंगा बचेगी। सरकारे गंगा को नहीं बचा सकती।
पुणे के हेमंत आराध्य ने कहा कि गंगा जी के लिए स्थाई सनातन काम होना चाहिए, तभी गंगा जी की अविरल बनेगी। जालना महाराष्ट्र से आये उद्योगपति कविता, रघुनंदन, सुदर्शन ने कहा कि गंगा जी में उद्यौगिक जहरीला गंदा पानी जाने से रुकना चाहिए। नांदेड महाराष्ट से आई सुनंदा देशमुख व कविता आराध्य ने कहा कि हमारा समाज पूजा पाठ की सामग्री भी गंगाजल में डाल देता है और हमारी शारीरिक गंदगी भी डालते है, इसे मिलकर रोकना चाहिए।
मातृ सदन हरिद्वार के संत स्वामी दयानंद ने कहा कि आज गंगा जी को अविरल बनाने में संत अपनी भूमिका भूल गए हैं। वे ही अब गंगा को गंदा कर रहे हैं। पुराने जमाने में गंगा जी को निर्मल रखने का काम संत ही करते थे। संत, लालची राजा और प्रजा दोनों को अपने दंड विधान से गंगा को गंदा करने से रोकते थे।
न्यूजीलैंड की एक नदी को एक नागरिक का दर्जा दिया वैसे ही गंगा कों मां के रूप में दर्जा दिया जाना चाहिए। इस हेतु भारत व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करेगें। गंगा सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने अपने योगदान को तेज करने के लिए संकल्प लिया। इस प्रकार इस सम्मेलन में देश-दुनिया से गंगा अविरलता व निर्मलता हेतु काम करने की जरूरत है।

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