मैती की मिला मुकाम – पद्म श्री से मिला सम्मान।

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कुमांऊ एंव गढ़वाल की मध्यस्थली ग्वालदम में जन्में “मैती आंदोलन” को इस वर्ष एक मुकाम हासिल हो गया हैं। यहं मुकाम इस आंदोलन के जन्मदाता कल्याण सिंह रावत को पद्मम श्री पुरुस्कार के रूप में हासिल हुआ हैं।

सुभाष पिमोली चमोली।


दरसअल 1995 में मैती आंदोलन का जन्म ग्वालदम की भूमि पर ही हुआ था उस समय कल्याण सिंह रावत “मैती” राइका ग्वालदम में बतौर जीव विज्ञान विषय में प्रवक्ता के पद् पर कार्यरत थे।उसी दौर मे गढ़वाल व कुमाऊं की संस्कृति के तानेबाने को जानने , देखने,सुनने एंव यहां की प्रकृतिक सुंदरता को देखते हुए इसे हमेशा के लिए कायम रखने का विचार उनके मन में आया। जब उन्होने देखा की पर्यावरण संरक्षण पर प्रति वर्ष लाखो करोड़ो रूपयें सरकार खर्च कर रही है, बावजूद इस के धरातल पर परिणाम लगभग नही के बराबर मिल रहे हैं। तो वे इससे खाशे चिन्तित हो उठे।

तब चित्रकार,बन्य प्राणी प्रेमी रावत ने अपने तत्काली मित्रों,रचनात्मक छात्रो खिलाप शाह,गुलाब रावत,जगत मर्तोलियां,हरेंद्र बिष्ट, वन निगम के हरीश चंद्र सती सहित कई अन्य से पर्यावरण संरक्षण में आम लोगो की भावनात्मक प्रति भाग विषय पर व्यापक विचार विमर्श के बाद तैय किया कि पेड़ पौधों का संरक्षण तब तक पूरी तरह संभव नही है। जब तक पेड़ पौधों के प्रति लोगों में भावनात्मक लगाव उत्तपन्न नही किया जाता हैं। विचार के बाद रावत ने मैती की परिकल्पना सामने रखी तो सभी ने उन की अनोखी थींम को हाथो हाथ लिया और एक विशुद् गैर राजनीतिक आंदोलन मैती का 1995 में जन्म हो गया।

कल्याण रावत की परिकल्पना के तहत विवाह समारोह के दौरान दूल्हा व दुल्हन के हाथो मैती अर्थात दुल्हन का “मांयका” की बहिनों के सहयोग से मैत में ससुराल जाने से पहले दूल्हे,दुल्हन के हाथो रोपे पौधे को लड़की की आखरी याद मान कर उसके माता,पिता,भाई, बहिनो,अन्य कुट्म जनों के साथ ही मैती बहिनों में पौधे के प्रति जो भावनात्मक लगाव जागृत होगा वह रोपे गये पौधे को किसी भी हाल में मरने नही देगें।उसे अपनी बेटी की तरह प्यार व दुलार मिलेगा।तो रोपीत पौधे का तेजी के साथ विकास भी होगा। थींम को धरातल पर उतरते ही उसे ग्वालदम सहित उससे लगें तमाम क्षेत्रों में मैती आंदोलन को आम लोगो विशेष तह लड़कियों ने हाथो हाथ लिया ।इससे उत्साहित रावत व उनकी छोटी सी टीम ने इस का व्यापक प्रचार किया।एक दो वर्षो में ही छोटे से कस्बे ग्वालदम से जन्मा आंदोलन तेजी के साथ देश के तमाम राज्यों में तेजी के साथ बड़ने लगा।उस दौर मे मीडिया ने भी अपनी रचनात्मक भूमिका निभाते आंदोलन का अपने स्तर व्यापक प्रचार किया जिससे भावनात्मक इस आंदोलन को देश ही नही विदेशी धरती में भी चर्चा होने लगी अब तक मैती नेपाल,ब्रिटेन,कनाड़ा,इंडोनेशिया आदि देशो में भी मैती जड़ जमा चुका हैं। इंडोनेशिया ने तो इसी थींम पर चलते हुए अपने देश में कानून बना लिया हैं। कि शादी से पहले युवक,युवती को एक पौधा लगाना आवश्यक हैं। इस के अलावा आज कई अन्य देशों भी इसी थींम को अपनातें हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे बड़ रहे हैं। यही नही देश के कई प्रतिष्ठित हसंतीयों के साथ ही कई बड़े-बड़े प्रतिष्ठान भी मान चुके हैं। कि बिन भावनात्मक लगाव के पौधा रोपण व संरक्षण का कोई लाभ नही है। चाहें इसके लिए कोई भी कठोर से कठोर कानून बना लिया जाय। इसी को मानते हुए एफआरआई देहरादून ने 2006में अपने शताब्दी समारोह में राज्यों के तकरीबन 12 लाख छात्र,छात्राओं को मैती पौध लगाने व उसके संरक्षण का संकल्प दिलाया था।इसके अलावा 2000 की श्री नंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान नंदा मैती वन बनाने के साथ ही कई मेलो का आयोजन भी शुरू हो चुके हैं।

यही नही पिछले कई वर्षो से मैती आंदोलन को आगे बड़ाने वाले लोगों को “मैती सम्मान” से सम्मानित किया जाने लगा हैं। हालांकि इस आंदोलन के वृहद् उद्देशयों को देखते हुए इस आंदोलन को कई पुरूषकारों से नवाजा जाता रहा हैं। किंतु इस वर्ष इसी आंदोलन के कारण चर्चाओं में आयें कल्याण सिंह रावत को पद्मम श्री सम्मान से नवाजे जाने पर माना जा रहा हैं। कि मैती ने अपना एक और मुकाम हासिल कर लिया हैं। जो की स्वस्फूत मैती आंदोलन के लिए एक शुभ संकेत ही माना जा सकता हैं।

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