विजय दिवस पर बड़ा बयानकांग्रेस का वार – कांग्रेस मुख्यालय में गूंजा ‘1971 का विजय दिवस

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इंदिरा गांधी की इच्छाशक्ति ने बदला इतिहास

“पाकिस्तान के दो टुकड़े, यह था भारत का पराक्रम” — गणेश गोदियाल

देहरादून
जब देश आज विजय दिवस की गाथा को याद कर रहा है, तब उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय इतिहास, भावनाओं और सियासी तीखे संदेशों का केंद्र बन गया। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की याद में आयोजित विजय दिवस समारोह में मंच से सीधे इतिहास और वर्तमान की तुलना की गई—और केंद्र में रहीं इंदिरा गांधी की राजनीतिक इच्छाशक्ति और भारतीय सेना का अदम्य साहस


\🔥 “इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के कर दिए दो टुकड़े”

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने मंच से कहा—

“जब पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा था, तब इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी का साथ दिया। यह निर्णय केवल युद्ध नहीं, मानवता की जीत था।”

उन्होंने याद दिलाया कि कैसे अमेरिका के सातवें बेड़े की धमकी के बावजूद भारत झुका नहीं—

“वह राजनीतिक इच्छाशक्ति आज भी पूरी दुनिया मानती है।”


⚔️ अग्निपथ पर हमला, केंद्र सरकार पर तीखा वार

गणेश गोदियाल ने अग्निपथ योजना को लेकर केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा—

“इस योजना ने भारतीय सेना को कमजोर किया है, और इसका सबसे बड़ा नुकसान उत्तराखंड को हुआ है।”

उन्होंने कहा कि जहां उत्तराखंड सैन्य परंपरा वाला राज्य है, वहीं आज युवाओं का जोश इस योजना से टूट रहा है।


🪖 हरिश रावत का भावुक संबोधन

पूर्व मुख्यमंत्री हरिश रावत ने कहा—

“1971 में जब उत्तराखंड अलग राज्य नहीं था, तब भी इस पहाड़ी क्षेत्र के 250 से अधिक जवानों ने बलिदान दिया।”

उन्होंने गढ़वाल, कुमाऊं और गोरखा रेजिमेंट को उत्तराखंड की शान बताते हुए पूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए ठोस नीति की जरूरत पर जोर दिया।


🚨 “अग्निवीर भर्ती विनाशकारी साबित होगी”

पूर्व सैनिक विभाग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कैप्टन प्रवीण डाबर ने चेताया—

“सेना को मजबूत करने की जरूरत है, लेकिन मौजूदा नीतियां इसके उलट जा रही हैं।”


🎖️ पूर्व सैनिकों का सम्मान, कांग्रेस का संदेश

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पूर्व सैनिकों को वेटरन कैप पहनाकर, माल्यार्पण कर और कांग्रेस पटका पहनाकर सम्मानित किया गया
यह सिर्फ सम्मान नहीं था—यह संदेश था कि सेना और सैनिक परिवार कांग्रेस की राजनीति के केंद्र में हैं


🕊️ अंतिम पंक्तियाँ

1971 की विजय सिर्फ इतिहास नहीं—वह याद दिलाती है कि साहस, इच्छाशक्ति और बलिदान से राष्ट्र बनता है।
जब तक भारत है, तब तक उसके शहीदों की गाथा और विजय दिवस का गौरव अमर रहेगा।
जय हिंद

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