मंडल मुख्यालय पौडी के इस स्कूल में छात्र ऊपर की तरफ देखकर तो मास्टर जी दरवाजे की तरफ करते है पढ़ाई, मंडल मुख्यालय के अधिकारी कैम्प आफिस देहरादून में शिफ्ट हो गए तो वोट लेकर नेताजी भी उन्हीं के अगल बगल प्लाट लेकर पलायन कर गए, जो बच
गए उनके साथ सेल्फी लेकर पलायन एक चिंतन पर बड़े बडे लेख लिखे जा रहे है।
भगवान सिंह पौडी
उत्तराखंड के दो मंडलों में से गढ़वाल मंडल मुख्यालय पौडी को पहाड़ की बीहड़ता का दंश झेलना पड़ रहा है, आला अधिकारी अपना कैम्प आफिस देहरादून में ही बनाकर राजधानी की भीड़भाड़ में अपना योगदान दे रहे है तो मजबूरी में अपने प्रार्थना पत्र का थैला कंधों पर टांगे पहाड़ के लोग भी साब से काम कराने के लिए राजधानी की सड़कों पर जाम के हालात पैदा कर रहे है। इन सब के बीच अधिकारियों और पहाड़ से पलायन कर गए नेताओ विधायको और मंत्रियों के बच्चे तो निजी स्कूलों की महंगी शिक्षा का आनंद ले रहे है तो खाली हो रहे पहाड़ के स्कूल भी खंडहर में तब्दील होकर किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे है। सरकारी तंत्र भी अंग्रेजो के जमाने में बने हुए कानून के सहारे चलता है जहाँ स्कूल में बड़ा हादसा होने के बाद एक्टिव हुई मशीनरी मुआवजे में तो करोड़ो खर्च कर सकती है किंतु हादसा रोकने में अपने हाथ बंधे होने की मजबूरी सुनाती है।
जनता इंटर कॉलेज पाली खाटली में भी यही तस्वीर दिखाई देती है। इस विद्या के भवन में छात्रों का किताबो से ज्यादा ध्यान ऊपर की तरफ रहता है, ऐसा नही है कि इन्हें भगवान पर बहुत भरोसा है, बल्कि इन्हें डर है कि स्कूल की छत कभी भी गिर सकती है, छात्रों और अध्यापकों ने क्लास रूम में दीवारों से झड़ते सीमेंट के टुकड़े दिखाए जो छात्रों की टेबल पर गिरे थे, इतना ही नही बरसात में टपक रहे इस भवन में तो छुट्टी ही करनी पड़ जाती है। गाँव के लोग अपने बच्चों को विज्ञान पढ़ाना चाहते है किन्तु जिस स्कूल में भवन नही , शिक्षक न हो वहाँ विज्ञान के चसमत्कार की अभिलाषा करना बेमानी होगा।
जिला शिक्षा अधिकारी मदन सिंह भी कानून की दुहाई देते हुए बताते है कि ये एक अशासकीय विधालय है इसमें शिक्षकों का वेतन तो सरकार दे सकती है किंतु भवन और अन्य ब्यवस्था ग्रामीनों को खुद जुटानी होगी। अब 10 से 18 वर्ष के इन किशोरों को कौन बताएगा कि नियम कानून की पड़ताल तक उनका करियर तो दांव पर लग ही गया?
बीडीसी मेम्बर कुलदीप रावत कहते है कि पत्रचार की फ़ाइल काफी मोटी हो गयी है, पर कोई सुनने वाला नजर नही आता, ऐसे में विकास के 35 विभागों को पंचायतों को सौंपने वाला पंचायत एक्ट भी नौनिहालों को उनके हाल पर छोड़ने को मजबूर दिखाई देता है।
लोकतंत्र में जब मतदाता वोट देकर अपने प्रतिनिधिनको चुनता है तो उसका सीधा सवाल होता है कि इलाके की आधारभूत सुविधाओं को जुटाकर विकास की योजनाओं को संचलिर किया जाय, अब शिक्षा शासकीय हो अथवा गैर शासकीय छात्रो को बेहतर शिक्षा सुरक्षित वातावरण में मिलनी चाहिए । इन सब मे यह शिक्षा के रहे मासूम बच्चों का क्या दोष जिनसे उनका यह मौलिक अधिकार छीना जा रहा है।
,सबसे बुरी हालत पौड़ी जनपद के दूरस्थ क्षेत्र के स्कूलों की है, जहां शिक्षकों की कमी से तो छात्र- छात्रायें दो चार हो ही रहे हैं,साथ ही जीर्ण-शीर्ण हालात में पहुंचे अशासकीय और शासकीय विद्यालय छात्र-छात्राओं में डर का माहौल भी पैदा कर रहे हैं, ये हालत पालीखाटली जनता इण्टर कॉलेज समेत कई स्कूलों के हैं,ये डर बरसात के मौसम में और बढ़ जाता है साथ ही टपकती छत उनकी पढ़ाई में भी बाधा भी उत्पन्न करती हैं,शिक्षकों के अनुसार वे सरकार को अपने विभाग के जरिये कई बार पत्राचार भी कर चुके हैं,लेकिन इस ओर कोई ध्यान दिया ही नहीं गया,जबकि पालीखाटली जनता इंटर कॉलेज समेत कई विद्यालयों की 11 वीं और 12 वीं कक्षाओं में कला वर्ग ही पिछले डेढ़ दशक संचालित है और विज्ञान वर्ग की मान्यता न मिलने से छात्र-छात्राओं की संख्या
भी विद्यालयों में लगातार घटती जा रही है।