आपदा पूर्व तैयारी।
धाम पर तीसरी आंख से नजर।
गिरीश गैरोला।
डिजास्टर मैनेजमेंट में तीन बातों का मुख्य रूप से ध्यान में रखा जाता है, जिनमे आपदा से पूर्व, आपदा के समय और आपदा घटित होने के बाद कि जानी वाली तैयारियो पर फ़ोकस किया जाता है।
इनमें से महत्वपूर्ण आपदा से पूर्व तैयारी की बात करें तो आपदा परिचालन केंद्र जिसे आपदा कन्ट्रोल रूम भी कह सकते है का आधुनिक होना जरूरी है, और इसी दिशा में कार्य भी हो रहे है।
उत्तरकाशी जनपद आपदा के लिहाज से जोन 4 और 5 में आता है। भूकम्प और भूस्खलन के साथ यहाँ सड़क हादसे भी बहुतायत होते ही रहते है। गंगोत्री औए यमनोत्री दो धाम इसी जनपद में है लिहाजा जिले की जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है।
विगत कुछ वर्षों से गंगोत्री राजमार्ग पर सड़क हादसों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। आपदा प्रबंधन के दौरान कभी एम्बुलेंस की कमी तो कभी डॉक्टर न होना अथवा अस्पताल में सुविधाओं का अभाव होना पाया गया है।
घायलों को उपचार के लिए ऋषिकेश एम्स , जौलीग्रांट अथवा देहरादून के बड़े अस्पताल का रुख करना होता है जो काफी दूर है और ज्यादातर घायल अस्पताल तक पहुँचने से पूर्व रास्ते मे ही दम तोड़ देते है।
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https://youtu.be/79cGRCim7NI
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ऐसे में चार धाम यात्रा के दौरान यात्रियो के मन मे भरोसा कायम रखना बड़ी चुनोती है , और उसके लिए टीम भावना से काम करने की जरूरत महसूस की जा रही है।
आपदा प्रबंधन में स्वच्छ आइकॉनिक प्लेस योजना से यमनोत्री धाम की पैदल यात्रा मार्ग पर जानकी चट्टी से लेकर यमनोत्री धाम तक कैमरे लगाए गए है जिनकी मोनिटरिंग जिला मुख्यालय के आपदा परिचालन केंद्र में होती है, ये अलग बात है कि कैमरे को चलाने के लिए पावर और इंटरनेट की जरूरर होती है और आपदा होने पर सबसे पहले बिजली और इंटरनेट ही गायब हो जाते है। इसके बाद भी हादसा होने से पूर्व जो भी इमपुट मिलते है वो प्रबंधन में महत्व पूर्ण साबित होते है। कंट्रोल रूम में अतिरिक्त कक्ष बनाये जा रहे है और उसे आधुनिक सुविधाओं से सज्जित किया जा रहा है।
अब गंगोत्री धाम में भी इसी तरह की तीसरी आंख से नजर रखने की जरूरत महसूस की जा रही है।