कही खुसी तो कही गम।
बर्फवारी से सेब उत्पादकों के खिले चेहरे तो कही बिजली।पानी बंद।
गिरीश गैरोला।
नए साल के आगाज के साथ हुई बर्फवारी से चाय की चुस्कियों के साथ गली मोहल्लों में चुनावी चर्चा के साथ मौसम के बदलाव पर भी खूब अटकलें लगाई जा रही है। कोई कहता है हिम युग आने वाला है तो कोई वनों के सुरक्षित होने से अच्छी बर्फवारी को कारण मांन रहे है तो कोई पृथिवी का ही तापमान बढ़ने की भविष्यवाणी कर रहा है।बरहाल चारो तरफ बर्फ गिरी हों aur गप्पे हाँकने के अलावा कोइ काम न सूझे तो चाय के साथ इन चुटीली बातों का चस्का लेने में कोई गुरेज नही है।
सच कहें तो अगर आप पहाड़ो में है तो आपके पास जोई चारा भी नही है।
अब आप केदारनाथ धाम को ही ले लो। चारो तरफ सफेद चांदनी दिखाई दे रही है बिजली पानी ठप्प मोबाइल बंद तो बर्फ ही खाओ और पिघला कर पियो भी। इस वक्त भी केदारनाथ में धाम निर्माण कार्य मे करीब 70 लोग माइनस 15 डिग्री तापमान पर काम कर रहे है। छतों में बर्फ का लोड न बढ़े इसलिए समय समय पर बर्फ गिराने का काम भी करना पड़ता है।
प्रकृति की इस सुंदर छटा को लोग इसलिए आनंद नही उठा पा रहे कि वहाँ सड़क मार्ग भी बंद हो गए है जहाँ खुले है वहाँ पाले की फिसलन का खतरा है। कुदरत की इस नियामत को समेटने के लिए सरकारी इतजाम नाकाफी है। पर्यटन विभाग के पास योजना होती तो ये सफेद बर्फ की चांदनी राजस्व जुटा रही होती किन्तु दायरा बुग्याल में सरकारी इच्छा शक्ति के अभाव में स्की लिफ्ट और स्की चेयर नही लग सकी। हर्सिल के पास मौसम खुशनुमा बना हुआ है पर वहाँ गढवाल मंडल विकास निगम के अलावा कोई होटल नही है । खाने का सामान शब्जी आदि भी 75 किमी दूर उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से ले जाना पड़ता है। चौरंगी बर्फवारी से बंद है तो राड़ी का डंडा भी बर्फवारी के दिनों गंगा घाटी को यमुना घाटी से अलग कर पृथक जिले की मांग का खुला समर्थन कर देतां है।
लोग स्थानीय हो या पर्यटक पास से देखना चाहते है कि आखिर नल में पानी कैसे जमता है और कैसे पहाड़ी से गिरते झरने एकाएक थम जाते है एक सीसे की रॉड बनकर जम जाते है। किंतु चार धाम के अलावा पर्यटन विभाग को विंटर टूरिज्म में कोई स्कोप नजर नही आता है।