ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज का दिन अनेक सुयोग लेकर आया है। आज पूरा विश्व विश्व नदी दिवस, विश्व बेटी दिवस और विश्व पर्यटन दिवस मना रहा है। उन्होने कहा कि नदियाँ धरती की जलवाहिकायें हैं। जिस प्रकार मानव शरीर रूधिर वाहिकाओं के बिना जिन्दा नहीं रह सकता उसी प्रकार जल वाहिकाओं के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। भारत सहित विश्व की अनेक संस्कृतियों की जननी हमारी नदियां ही हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है, जिसमें इसे विशाल तथा सदानीरा कहा गया है। हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1000 से अधिक पुरातात्त्विक केंद्र आधुनिक घघ्घर नदी के सूखे हुए किनारों पर पाए गए हैं। ऐसे अनेक प्रमाण हंै कि नदियों के तटों पर विश्व की अनेक संस्कृतियों का उद्भव हुआ।
स्वामी जी ने कहा कि भारत सहित विश्व की कई नदियां अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी हैं और कुछ तो लुप्त होने की कगार पर हैं। ऐसे में नदियों का सरंक्षण करना अति आवश्यक हो गया है इसलिये हर वर्ष सितंबर के आखिरी सप्ताह के रविवार को विश्व नदी दिवस मनाया जाता है, ताकि नदियांे के प्रति जन जागरूकता बढ़े, जन समुदाय एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग न करे और सीवेज और कल-कारखानों का प्रदूषित जल नदियों न प्रवाहित किया जाये। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर कहा कि उत्तराखंड पर्यटन का मुख्य केन्द्र गंगा और अन्य सदानीरा नदियां है जो कि हिमालय की गोद से निकलती हैं। उन्होने कहा कि भारत का पर्यटन केवल मनोरंजन का केन्द्र नहीं है बल्कि यह आध्यात्मिकता, योग, ध्यान और दिव्यता से युक्त पर्यटन है। उत्तराखंड तो धरती पर जन्नत के समान है यहां पर हरियाली और स्वच्छ जल का अपार भण्डार है। हमारा जीवन रक्षक और ऑक्सीजन का भण्डार हिमालय उत्तराखंड के पास है। यहां की नदियां जीवन और जीविका देने वाली हैंय जंगल के रूप में धरती के फेफड़े यहां पर मौजूद हैं, इसलिये इस दिव्य क्षेत्र में हरित तीर्थाटन और हरित पर्यटन होय स्वच्छ तीर्थ और हरित तीर्थ हैं। उत्तराखंड में सिंगल यूज प्लास्टिक पूर्ण रूप से बंद हो और यह केवल पेपर पर नहीं बल्कि प्रेक्टीकल रूप से हो।
स्वामी जी ने कहा कि वहीं तीर्थ और मेले सार्थक हंै जो समाज को नई दिशा देते हैं। अतः यहां आने पर लोग एक नई चेतना लेकर जाये। यहां के दिव्य स्थलों पर गंदगी न हो, उत्तराखंड को आकर्षक, दिव्य और भव्य पर्यटन के रूप में विकसित करने के लिये स्थानीय सहयोग जरूरी है। साथ ही हमें सुरक्षित पर्यटन को भी बढ़ावा देना होगा, हमें पर्यटन की दूरगामी नीतियों का अनुसरण करना होगा तथा अपने राज्य के पर्यटन का आधारभूत ढांचा तैयार करना होगा। यहां पर आवागमन के संसाधनों की पर्याप्त सुविधायें हो, पर्यटकों के विश्रामस्थलों, हैरिटेज होटल के साथ सड़कों पर भी विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही उत्तराखंड के युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये स्थानीय उत्पादों, जड़ी बूटियों और यहां के भोजन को वैश्विक पहचान देने हेतु प्रयास करना नितांत आवश्यक है। स्वामी जी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर पर्यटन एक बड़ा उद्योग है। यह कई क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सृजित करता है साथ ही अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने में मदद करता है। कोविड-19 के दौरान अनेक लोगों को अपने रोजगार और व्यवसाय को खोना पड़ा ऐसे में स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन करना ही बेहतर विकल्प है।
स्वामी जी ने कहा कि आज इंटरनेट सर्च इंजन गूगल का जन्मदिवस मनाया जाता है, लेकिन लगता है कि इंटरनेट सर्च तो रोज है परन्तु रोज भीतर-भीतर हम इनरनेट से सर्च करे अपने आप को सर्च करे। इटरनेट से समाज को सर्च करे और संसार को सर्च करे परन्तु इनरनेट से अपने आप को सर्च करे। वर्ष 1998 में इंटरनेट सर्च इंजन गूगल की स्थापना हुई थी। यह कम्पनी स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. के दो छात्र लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन द्वारा स्थापित की गयी थी। स्वामी जी ने कहा कि डिजिटलीकरण के दौर में इंटरनेट संचार और सूचना प्राप्ति का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण जरिया बन गया है। आज से कुछ दशक पूर्व इंटरनेट तक पहुँच को विलासिता का सूचक माना जाता था, परंतु वर्तमान में इंटरनेट सभी की जरूरत बन गया है। कोविड – 19 के दौरान शिक्षा जगत में एक विलक्षण क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। छोटे-छोटे बच्चे और उच्चशिक्षा प्राप्त कर रहे युवा सभी डिजिटली शिक्षा ग्रहण कर रहे है, डिजिटली परीक्षा और साक्षात्कार लिया जा रहा है। मुझे तो लगता है यह समय कोरोना से कोडिंग (प्रोग्रामिंग) की ओर बढ़घ्ने का है।