स्वामी निगमानंद की 9वी पूण्य तिथि – गंगा को दिया वचन अभी भी अधूरा

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स्वामी निगमानंद सरस्वती जी की 9 वीं पुण्यतिथि पर आज तीसरे दिन मातृ सदन में विचार गोष्ठी का आयोजन कर सभा में उपस्थित लोगों से सरकार के द्वारा बृह्मचारी आत्मबोधानंद जी के 194 वें दिनों के अनशन के पश्चात दिए गए लिखित आश्वासन का अभी तक पालन नहीं करने को लेकर विचार आमंत्रित किये गए। सभा का संचालन प्रातः वंदनीय परमपूज्य श्री गुरुदेव स्वामी शिवानंद जी महाराज ने किया।

आंकित तिवारी

सफदरजंग अस्पताल दिल्ली से शशि ने कहा कि हमें कुछ समय सरकार को जागरूक करने के लिए देना चाहिए उसके बाद आवश्यकता पड़ी तो वे भी अनशन पर बैठ सकते हैं। बलिया से आये योगेंद्र सिंह ने कहा कि अनशन होना चाहिए, अनशन नहीं होने से पूर्व के तप का प्रभाव कम होता जाता है। भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय के प्रवक्ता दीपक कोठारी ने कहा कि अगर सरकार अपने लिखित आश्वासन का पालन नहीं कर रही है तो मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों से मिलकर उन्हें इसे पूरा करने के लिए कहना चाहिए।

उन्होंने अनशन में खुद भी सहयोग करने की बात कही। ब्रह्मचारिणी पद्मावती ने कहा कि स्वामी निगमानंद सरस्वती जी का बलिदान ऐसे नहीं जाएगा और उनके कार्य को आगे बढ़ाने के लिए तप करेंगे। अगर मोदी सरकार नहीं मानी तो श्री गुरुदेव जी से यही प्रार्थना करती हूं कि अगली बार अनशन पर मैं बैठूँगी। 194 वे दिनों के अनशन करने वाले बृह्मचारी आत्मबोधानंद जी ने मातृ सदन आने पर अपने अंदर की अनुभूति बताते हुए दोहराया कि यदि सरकार आश्वासन को पूरा नहीं करती है तो वे पुनः अनशन पर बैठेंगे। स्वामी निगमानंद सरस्वती जी और स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद जी ने हम युवाओं के लिए ही बलिदान दिया है इसलिए उनके संकल्पों को हम आगे बढ़ाएंगे। दिल्ली से आई 11 वर्षीय विद्या ने कहा कि स्वामी निगमानंद सरस्वती जी के जैसा सन्यासी और शिष्य कोई बन नहीं सकता। सरकार झूठे वादे कर रही है। वहीं 194 दिनों तक फलाहार पर रहने वाले पुण्यानंद जी ने कहा कि ये सरकार जो गंगा के नाम पर आई है उसने सबसे ज्यादा गंगा विरोधी कार्य किये हैं। अतः हमें स्ट्रेटजी बदलना चाहिये और जन समर्थन जुटाना चाहिए।

ब्रह्मचारी दयानन्द ने कहा कि स्वामी निगमानंद सरस्वती जी एक महामानव थे जिनकी त्याग, तपस्या और गुरूभक्ति का आदर्श पृथ्वी के रहने तक हजारों-लाखोँ युवक अपनाकर अपने को गौरवान्वित अनुभव करते रहेंगे। कुछ समय सरकार को दिए जाने की बात का समर्थन करते हुए कहा कि गंगा जी के इस कार्य हेतु आवश्यक होने पर वे अपनी आहुति देने को तत्पर हैं। सबके विचार उपरांत सभा का समापन पूर्व प्रातः वंदनीय श्री गुरुदेव जी ने कहा कि हम आशावान हैँ और आशा करते हैं कि सरकार वादा पूरा करेगी।

संत को दिए वचन से मुकरना बड़े बड़े देवताओं को भी बहुत भारी पड़ता है। जब लोग सत्ता के मद में होता है तो भूल जाता है। परिणाम सबके सामने है। सरकार ये भी भूल जाये कि वह evm की है। घनानन्द की सरकार तो इससे भी ज्यादा मजबूत थी। यही भूल घनानंद ने किया था। संत का अपना कोई स्वार्थ नहीं होता है, संत के हृदय में ब्रह्मांड रहता है और जिनके हृदय में ब्रह्मांड रहता है उससे न टकराये और अपने वचन को पूरा करे, हम कल भी विचार आमंत्रित करेंगे, कुछ लिखित विचार भी आए हैं। लेकिन एक बात तय है कि हम अपने लक्ष्य से थोड़ा भी कम पर नहीं मानेगें। कल के विचार के बात अंतिम घोषणा की जाएगी। उन्होंने कहा कि ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद 194 दिनों के अनशन के बाद आश्रम में अनशन समाप्त होने पर पूर्ण स्वस्स्थ है लेकिन स्वामी निगमानंद सरस्वती 68 दिन और स्वामी ज्ञान स्वरूप स्नानंद जी को 110 वें दिन पूर्ण स्वस्थ अवस्था में अस्पताल ले जाकर मार दिए गए। पुलिस व प्रशासन के इन कृत्यों सहित अन्य कृत्यों को हम मा उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष रखेंगे औऱ उनका निर्देश प्राप्त करेंगे कि क्या ये सब
संविधान सम्मत है? यदि नहीं तो इन लोगों से निपटने के लिए आखिर हमारे सामने क्या रास्ता बचा है? इस बीच सरकारी एजेंसी सतर्कता विभाग का दुरुपयोग कर हमारा लोकेशन लेकर षड्यंत्र कर मारने तक का प्रयास किया जाता है।

*”वह पत्र जो स्वामी निगमानंदजी ने न्यायाधीश को लिखा था ।”*
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*सेवा में,*
*माननीय मुख्य न्यायाधीश,*
*सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली ।*
*माननीय मुख्य न्यायाधीश,* *उत्तराखंड उच्च न्यायालय,* *नैनीताल ।*

*विषय : माननीय उच्चतर न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों की संवेदनहीनता के संबंध में ।*

*माननीय महोदय,*

*मातृ सदन एक दिव्य संगठन है जो पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण तथा भ्रष्टाचार के निवारण के लिए कार्य करती है ।* आज ब्रह्मचारी यजनानंद के अविछिन्न अनशन रूपी सत्याग्रह का २३ वाँ दिन है (२८ जनवरी, २०११ से) जो न्यायपालिका की गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए मातृ सदन के पवित्र प्रांगण में किया जा रहा है । हाल की घटनाएँ यह दर्शाती है कि अन्धकार इतना गहन है कि एक ओर नियम और कानून को ताक पर रखकर हर चीज की जा रही है और दूसरी ओर कुछ लोग हैं जो सत्य के सम्मान और महत्व को समझ रहे हैं ।

जैसा कि हमने आप दोनों महानुभावों को अपने *पत्रांक MS/2K11/Hdr/33 दिनांक 14/02/2011* के द्वारा लिखा था कि जब एक अधिवक्ता न्यायाधीश बनते हैं तब उन्हें सत्याग्रही होना चाहिये न कि पक्षग्राही । यहाँ तक कि सत्याग्रह के समय न्यायाधीश जिनके विरूद्ध हमने शिकायत की है मुकदमों की सुनवाई कर रहे हैं और उसका निपटारा कर रहे हैं । न्यायालय को बदलने के आवेदन पत्र को सुनवाई की तिथि के पहले स्वीकार नहीं किया जाता है । फैक्स किये गये आवेदन पत्रों पर समुचित रूप से विचार नहीं किया जाता है और उसे कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है, यहाँ तक कि हमारे आवेदन पत्र को न्यायालय कक्ष में भी सुना नहीं जाता है । ये घटनाएँ यह दर्शाती है कि हमारे सम्मानित न्यायिक तन्त्र में कितनी संवेदनहीनता है ।

विशेष याचिकाएँ दी जाती है किन्तु विशेष याचिकाओं के सिद्धांत का अनुसरण नहीं किया जाता है बल्कि यह अन्धकार के द्वारा ढक दिया जाता है । संवेदनहीनता इतनी हो गई है कि सत्याग्रह के बावजूद कोई प्रत्यक्ष वार्ता नहीं की जाती है बल्कि अप्रत्यक्ष वार्ता की जाती है और सम्मानित और जिम्मेदार व्यक्ति अपने वचनों से मुकर जाते हैं ।

प्रत्येक जगह सत्यमेव जयते लिखा रहता है किन्तु सत्य का सम्पूर्ण अभाव है । न्यायालय कक्ष के अन्दर और बाहर प्रत्येक जगह महात्मा गाँधी की प्रतिमा जो यह दर्शाता है कि मैंने सत्य का अनुसरण किया और आपको भी सत्य का अनुसरण करना चाहिए ।

चूँकि अन्धकार इतना गहन है और वेद और श्रुति ऐसे अन्धकारमय परिस्थिति से मुक्त होने के लिए तप का उपदेश देते हैं इसलिए *मैं स्वामी निगमानंद सरस्वती जो समस्त सन्यासी शिष्यों में वरिष्ठ हूँ, ब्रह्मचारी यजनानंद से यह अनुरोध करता हूँ कि वे अपने अविछिन्न अनशन को जो २८.०१.२०११ से चल रहा है समाप्त कर दें और मुझको सत्याग्रह करने और न्यायपालिका की पवित्रता और सम्मान और उच्च गरिमा को पुनर्स्थापित करने और भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए सत्याग्रह करने और पवित्र बलिदान करने का अवसर प्रदान करें ।*

*कुछ व्यक्तियों जिनमें कुछ न्यायाधीश भी सम्मिलित हैं ने कहना शुरू कर दिया है कि युवा सन्यासियों से अविछिन्न अनशन कराया जाता है । इन वक्तव्यों के विरूद्ध मैं जो सन्यासियों में सबसे वरिष्ठ हूँ जब बलिदान का अवसर आया है तो अपने आप को सबसे आगे प्रस्तुत कर रहा हूँ ।*

सरकार की कार्यकारी शाखा के विरूद्ध भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं और न्यायपालिका भी इसका अपवाद नहीं है । अतः एक पवित्र बलिदान की आवश्यकता है । मैं स्वामी निगमानंद सरस्वती उक्त पवित्र प्रयोजन हेतु अपने आप को प्रस्तुत कर रहा हूँ और मैं आज *दिनांक १९.०२.२०११ की अपरान्ह से अविछिन्न अनशन रूपी सत्याग्रह की शुरूआत कर रहा हूँ ।*

*सम्मान सहित,*
*स्वामी निगमानंद ।*

 

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