बाल संरक्षण- पोकसो एवं जेजे एक्ट की जानकारी और जागरूकता ।
बढ़ती उम्र के साथ दुनिया को खूबसूरती से जीने की इच्छा लिए बच्चों को समाज क्या देता है ? और क्या उनसे छीन लेता है , इसकी समझदारी विकसित करने के लिए कड़े कानून के साथ परिवार के लोगो और नाते रिश्तेदारी के साथ पास पड़ोस में भी बच्चों को लेकर बनाये गए कानून की जानकारी और जागरूकता बेहद जरूरी है। बचपन की घटित घटनाएं बच्चे के मानस पटल पर उम्रभर असर डालती है।
अंकित तिवारी
युवाओं द्वारा आज स्वराज भवन में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमे भोपाल व मध्यप्रदेश के अन्य जिलों से आये चयनित डेलिगेट्स ने बच्चो की सुरक्षा से जुड़े कई अहम मुद्दे समझे और उनसे निपटने के लिए मौजूदा क़ानूनों पर अपनी समझ बनाने का प्रयास किया। इस कार्यशाला में डेलिगेट्स को बाल संरक्षण से जुड़े कानून किशोर न्याय अधिनियम एवं पोकसो एक्ट से अवगत कराया गया। कार्यशाला के दौरान युवाओं के मन मे कई प्रश्न आये जिसका जवाब उन्हें मिला। सोमेश ने पूछा कि क्या बच्चों के लिए बनाए गए होम्स में ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए भी जगह होती है। वहीं अर्पिता डोंगरे ये जानकर अचंभित हुईं कि जो बच्चे विधि का उलंघन करते हैं उनके लिए अपराध शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता ना ही उनपर FIR होती है। पलराधे सोनी का कहना है कि पहले मुझे ये समझ नहीं थी कि सड़कों पर परिवारों के रूप में घूम रहे भीख मांग रहे बच्चे ऐसा भी हो सकता है उन माँ बाप के न हों, तो ऐसी स्थिति में यदि हमें कोई शक होता है तो हम सीधा चाइल्ड वेलफेयर कमिटी की सहायता ले सकते हैं। साबिर कुरैशी को इस कार्यशाला के माध्यम से आज पहली बार CWC के बारे में जानकारी मिली और उस तक पहुंचने का तरीका पता लगा। इस कार्यशाला के पूर्व जबलपुर से आये सागर गुप्ता को ये लगता था कि बाल लैंगिक शोषण केवल पुरुषों द्वारा बच्चियों के साथ किये जाने वाला कृत्य है परंतु कार्यशाला के माध्यम से उन्हें ये पता लगा बाल यौन शोषण पुरुषों या महिलाओं द्वारा बच्ची या बच्चे दोनों के साथ किया जाने वाला अपराध है।
“बच्चों के साथ बढ़ रहे बाल लैंगिक शोषण पर युवाओं के साथ बात करने की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि इस तरह के कृत्यों के हो जाने बाद बच्चे के जीवन मे दीर्घकालिक असर रह जाता है जो उनके लिए घातक साबित होता है। युवाओं के साथ इस कार्यशाला में पोकसो और जेजे एक्ट पर बातचीत हुई।”
-प्रशांत दुबे-
(चाइल्ड राइट्स एक्सपर्ट)
“इस तरह की कार्यशालाओं से युवाओं से एक संवाद बनेगा जिससे उनके मन मे बाल संरक्षण को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब दिया जा सकता है। अक्सर जब कोई नया बाल लैंगिक शोषण का केस आता है तो युवा वर्ग काफी आक्रोशित होता है लेकिन असल मे उन्हें किस दिशा में कार्य करने की ज़रूरत है उन्हें ये नहीं पता होता तो ये कार्यशाला उनकी इस विषय मे समझ बनाने के लिए हमारी एक पहल है।”
-अस्मा खान-
(कार्यशाला संयोजक एवं सामाजिक कार्यकर्ता)
पश्चिम बंगाल से मानवाधिकार कार्यकर्ती डॉ उज्जैनी हालिम की माने तो बच्चों के लिए बनाया गया कानून बेहतरीन है किंतु समाज मे जागरूकता की कमी साफ झलकती है।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन कहती है कि देर के मिलने वाले न्याय के कारण अपराधियो में कानून का खौफ समाप्त हो जाता है और आम नागरिकों को कानून पर से भरोसा उठ जाता है।