गौ को ऐसे ही माँ का दर्जा नहीं दिया गया है | पुराण कहते है कि गाय मे हिन्दू 33 करोड़ देवता निवास करते है | गौ के शरीर के एक एक अंग मे देवता का वास माना गया है | गाय कि उपयोगिता इसी बात से समझी जा सकती है कि इसका मूत्र और गोबर भी बेकार नहीं जाता है, बल्कि दवा के रूप मे आयुर्वेद मे उपयोग होता रहा है | अब दीपवाली के मौके पर गौ के गोबर के दीपक बाजार मे उतार कर गौवंस के संरक्षण को नयी परिभाषा देने का काम कर रहे है उत्तरकाशी के अजय बड़ोला
देश भर मे गौवंस के संरक्षण के लिए चल रहे अभियान के बीच गौमूत्र और गाय के गोबर को एक बार फिर से इंसानी जिंदगी मे सामिल करने कि पहल को रोजगार से जोड़ने का प्रयास सुरू हो गया है | शिव नागरी उत्तरकाशी के सामाजिक करायकर्ता अजय बड़ोला ने इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए सूक्ष्म लघु एवं मध्यम मंत्रालय भारत सरकार मे पंजीकरण कर इसे रोजगार से जोड़ने की मुहिम सुरू कर दी है | इसके लिए महिला समूह को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है | गोबर की खुसबु अपने आप मे वातावरण को पवित्र करने के लिए पर्याप्त है |
3 माह पहले पहले खाली समय में मोबाइल पर गूगल और यू ट्यूब पर गाय के गोबर और गोमूत्र से बनी दैनिक वस्तुओं का प्रचलन देखने के बाद कानपुर के स्वानंद गोविज्ञान केंद्र एवं शांतिकुंज हरिद्वार के मार्गदर्शन से सबसे पहले धूपबत्ती बनाने का प्रयास किया गया | इस सफलता के बाद रक्षा बंधन के मौके पर गोबर से राखी भी बनाई गई और अब दीपावली में गाय के गोबर से दीपक और धूपबत्ती स्टैंड, मोमबत्ती स्टैंड बनाए जा रहे हैं | विभिन्न गांवों में भी लोग भी गौ गोबर से दीपक बना रहे हैं | धनारी गांव की रेशमा मुरारी एवं अर्चना मुरारी ने इसका विधिवत प्रशिक्षण लेने के बाद ऐसे दीपक बनाकर बाजार मे उतारे है |
गौ संरक्षण के साथ घर गाँव के लोगो को भी खाली समय मे रोजगार से जोड़कर धार्मिक भावना के साथ इसे आजीविका से जोड़ने की कड़ी का लोगो ने जमकर स्वागत किया है |