अंडयूडी उत्सव बन गया दयारा बटर फेस्टिवल

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कहते है कि हमारे देश में दूध और दही की नदियां बहती थी इस सत्य को जानने के लिए आपको लिए चलते है उत्तरकाशी के दयारा बटर फेस्टिवल में जहां दूध- मट्ठा और माखन के साथ इलाके की समृद्ध संस्कृति के भी दर्शन होते है।
दुनिया के शोर शराबे से दूर सीमांत जनपद उत्तरकाशी के 10 हजार फीट की ऊंचाई पर मट्ठा माखन की होली बटर फेस्टिवल अब देश मे एक पर्यटक मेले के रूप में अपनी पहिचान बना चुका है।
किसी जमाने मे गोबर की होली से सुरु हुआ अंडयूडी उत्सव अब आधुनिक रूप में बटर फेस्टीवल बन चुका है किंतु पर्यटन प्रदेश उत्तराखंड ने दयारा की खूबसूरत मखमली बुग्यालों और बर्फ से ढके मैदानों के लिए प्लान तो बहुत बनाये किन्तु उन्हें धरातल पर आजतक नही उतारा जा सका है। शर्दी सुरु होने पर स्थानीय पशुपालक नीचे उतरने से पहले अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण को प्रशन्न करने के लिए मक्खन मट्ठा की होली खेलते है हर घर से मख्खन का भोग श्री कृष्ण और नागराज देवता को लगाया जाता है।

देहरादून से वाया सुवाखोली होते हुए उत्तरकाशी 140 किलोमीटर जबकि ऋषिकेश से 160 किमी मोटर मार्ग से चलने के बाद उत्तरकाशी जिला मुख्यालय पहुँचा जा सकता है। उत्तरकाशी से 28 किमी भटवाडी और वहाँ से 10 किमी ब्रांच रोड पर रैथल गाँव तक वाहन से पहुचा जा सकता है।

रैथल गाँव से 7 किमी का पैदल ट्रैक से दयारा पहुचना होता है। अगर आप पैदल चल सकते है तो ठीक नही तो घोड़े खच्चर की सवारी भी ले सकते है।
रैथल गाँव से कुछ दूर चलने के बाद गोई नामक स्थान पर थोड़ा विश्राम के लिए रुकते है। अंडयूडी उत्सव के लिए स्थानीय पशुपालक सभी आने वाले लोगो को निशुल्क दही मठ्ठा और खीर पूड़ी खिलाते है। जैव विविधता से भरे इस ट्रैक का आनंद लेते हुए आप पहुँचते है दयारा बुग्याल।
 दयारा बुग्याल 28 बर्ग किमी में फैला मखमली घास का मैदान है। 10 हजार फीट की ऊंचाई पर इतने लंबे चौड़े घास के मैदान देखकर आप रोमांचित हो उठेंगे। स्थनीय पशु पालकों के साथ वन गुजर भी अपने पशुओ के साथ इन बुग्यालों में निवास करते है।
गर्मी का सीजन सुरु होते ही रैथल और आसपास के ग्रामीण अपने पशुओ के साथ दयारा बुग्याल में पहुँच जाते है यहाँ इनकी अस्थायी झोपड़ीया है। बुग्यालों में घास के साथ कई प्रकार की जड़ी बूटियां भी मौजूद होती है। जिनके सेवन से पशु हष्ट पुष्ट होते है । शर्दी सुरु होने पर पशुपालक नीचे उतरने की तैयारियों में लग जाते है। शर्दियों में ये घास के मैदान बर्फ से ढक जाते है। बर्फ के इन मैदानों में विंटर गेम्स स्की के लिए बेहद मुफीद है। यहाँ हवा का रुख और ढाल भी अंतर रास्ट्रीय स्तर के है। इसके बाद भी दयारा का पर्यटन की दृष्टि से विकास नही हो पाया। इसके लिए अधिकारियों के अपने अपने तर्क है।
उत्सव सुरु होने से पूर्व वन देवी की पूजा की जाती है स्थानीय लोगो की माने तो देवी की सहायक इन अछरियो और मातृकाओं की पूजा करने से देवी प्रशन्न होती है।
बुग्याल में मौजूद पशुपालक श्री कृष्ण को भी गौपालक मानते हुए अपना आराध्य मानते है  इसलिए नीचे उतरने से पहले दूध मट्ठा और मख्खन की होली खेलते है।
राधा और कृष्ण के रूप धारण कर ग्वाले ऊंचाई पर टंगी दही की हांडी तोड़ते है और इसके साथ ही सुरु होता है अंडयूडी उत्सव बटर फेस्टिवल।
लोग एक दूसरे को मख्खन लगाते है और मठ्ठा की होली खेलते है इस दौरान श्री कृष्ण और राधा के रूप में ग्वालो को हर घर से माखन खिलाया जाता है। बुग्याल में सामूहिक तांदी नृत्य होता है और इलाके और पशुओ की  खुशहाली की कामना के साथ उत्सव समाप्त होता है।
किसी जमाने मे गोबर की होली से सुरु होने वाला अंडयूडी उत्सव अब बटर फेस्टिवल बन गया है। कुछ नौजवानों ने इस त्योहार को पर्यटन से जोडने का बीड़ा उठाया है और वे अपने इस मकसद कुछ हद तक कामयाब भी हुए है।
हर वर्ष दयारा बुग्याल में अब वाले लोगो की तादाद बढ़ती जा रही है किंतु सरकारी स्तर पर इसे पर्यटन से जोड़ने की दिशा में कोई पहल अब तक कामयाब नही हो पाई है। दयारा बुग्याल की खूबसूरती कांग्रेस के राहुल गांधी को भी यहाँ खींच लाई थी। आज भी कई प्रकृति प्रेमी दयारा बुग्याल में टेंट लगाकर प्रकृति का आनंद लेते देखे जा सकते है। वही शर्दियों में यहाँ बर्फ में स्की का आनंद भी लिया जाता है किंतु स्की लिफ्ट और स्की चेयर न होने से इसे अंतरराष्ट्रीय पहिचान नही मिल सकी है। 18 वर्ष के हो चुके पृथक पर्यटन प्रदेश उत्तराखंड के राजनेताओं से इसके विकास को लेकर कई सवाल अभी भी अनउत्तरित है।
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