सुंदर काशी का सपना कितनी दूर?

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सुंदर काशी का फैसला किसके हाथ?
गिरीश गैरोला
प्रकृति खुद को स्वयं बैलेंस करती है,  तभी तो गंगोत्री और यमनोत्री के मायके उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में आपदा के जख्म देने के बाद प्रकृति ने  उन पर मरहम लगाने का भी भरपूर मौका दिया है । सरकार ने भी बजट देने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। अब जिले का राजनैतिक और प्रशासनिक नेतृत्व के फैसले से तय होगा कि सुंदर और स्वच्छ उत्तरकाशी के सपने अभी कितनी दूर है । सपना पूरा होता भी  है या बीच मे ही टूट जाता है। फैसला किसी का भी हो और कुछ भी हो पर हमारी आने वाली पीढियां हमसे जरूर सवाल करेंगी कि जो मौका मिला था उसका कितना सद्पयोग किया गया और आपने , अपनी कितनी जिम्मेदारी निभाई ?  गंगा भागीरथी में बाढ़ के बाद तट बन्द और सुरक्षा कार्यो के बाद निकले अतिरिक्त स्थान को सजाने अथवा बिगाड़ने का जिम्मा जिन के कंधों पर है उनका एक सही कदम उन्हें इतिहास पुरुष बना सकता है वही एक छोटी सी ढिलाई एक बड़ी चूक साबित हो सकती है।

वर्ष 2012-13 की देवी आपदा के बाद के जख्मो को भरने के लिए प्रकृति जे साथ सरकार ने भी भरपूर मौके दिए है किन्तु लगता है  सिस्टम इसे संभाल का भी रख सकने में सक्षम नही है।  गंगीत्री राजमार्ग पर ताम्बा खानी के पास सुरंग निर्माण होने के बाद पूरा ट्रैफिक सुरक्षा के लिहाज से सुरंग के अंदर से गुजर रहा है,  वहीं बाहर पुरानी सड़क पर  घरों  की मरम्मत से निकला मलवा डंप किया जा रहा है तो कहीं कबाड़ियोंं के स्टोर के रूप में प्रयोग हो रहा है।

  बताते चलें  कि  मानसून काल में ताम्बा खानी शूट से वर्षा के बाद मलवा पत्थर पहाड़ी से नीचे गिरते है जिसे भागीरथी में निकासी देने की मजबूरी तो समझ आती है किंतु इस मलवे की आड़ में घरों की मरम्मत से निकले मलवे को भी गंगा भागीरथी के हवाले करना कहाँ तक न्याय संगत है।
उत्तरकाशी नगर में वर्ष 2012-13 की बाढ़ ने खूब तबाही मचाई किन्तु कलेक्ट्रेट में व्यापार मंडल, पत्रकार संघ और नगर के अन्य संगठनों के 108 दिनों की हड़ताल के बाद आपदा पुनर्निर्माण में नदी के दोनों तरफ आरसीसी दीवार से न सिर्फ नगर सुरक्षित हुआ बल्कि एक- एक इंच की जमीन के लिए तरस रहे नगर को पर्याप्त स्थान मिल गया जिसका उपयोग पार्क, म्यूजियम , रेस्टोरेंट आदि बनाने में अब किया जाना प्रस्तावित है। जोशियाड़ा झील  के चारो तरफ सौंदर्यीकरण के साथ गंगा भागीरथी के दोनों तरफ रिंग रोड का प्रस्ताव भी लंबित है।
पूरी खेत के पास और पुलिस लाइन के पास निकले अतिरक्त स्थान जो अब पार्किंग के रूप में प्रयोग हो रहा है अगर नही होता तो इतनी सारी कार सड़क पर ही पार्क होती और आज ट्रैफिक के लिए सरदर्द बनी होती ।इतना सब तो ठीक  है पर अभी भी इस मामले में सुंदर उत्तरकाशी के सपनो को साकार करने के लिए  राजनैतिक और प्रशासनिक स्तर पर कुछ सख्त और कड़े फैसले लिए जाने की  जरूरत महसूस की जा रही है
अन्यथा खाली पड़े इन स्थानों पर जिस गति से अतिक्रमण होने लगे है उस पर जल्द लगाम नही लगी तो आने वाले समय मे ये बीमारी लाइलाज हो जाएगी और सुंदर उत्तरकाशी का एक मौका फिर से हाथ से छूट जाएगा।
केदार घाट के पास नमामि गंगे में निर्माणाधीन घाट सुंदर उत्तरकाशी के सपने की एक झलक पेश कर रहे है किन्तु इस स्थान पर अभी भी खच्चरों की आवाजाही पर प्रतिबंद लगाए जाने की जरूरत है साथ ही रिंग रोड के मार्ग में आ रही बाधा को दूर करने के लिए दूरदर्शी फैसले लिए जाने की दरकार है।
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