सड़क से मंच तक बिखरी पहाड़ की संस्कृति।
मंगसीर की बग्वाल।
गिरीश गैरोला
कार्तिक महीने की पारंपरिक दीपावली के एक महीने बाद राज्य के कुछ हिस्से में मंगसीर महोने में दीपावली मनाई जाती है। कुछ लोग इसे टिहरी राजशाही के सेनापति वीर माधो सिंह भंडारी से जोड़ते है।
मान्यता है कि कार्तिक दीपावली के समय सेना के युद्ध मे जाने के कारण राज्य में दीवाली नही मनाई गई औए एक महीने बाद युद्ध जीत कर लौट माधो सिंह भंडारी के स्वागत में इस मंगसीर दीवाली जिसे स्थानीय लोग बग्वाल कहते है कि सूरूवात हुई।
कुछ भी हो पहाड़ की ऐसी ही संस्कृति और परंपराओं को पर्यटन से जोड़ने की जरूरत महसूस की जा रही है ताकि संस्कति का संरक्षण भी हो और रोजगार भी मिले।
सड़क से रामलीला मंच तक पहाड़ की संस्कृति बिखरी दिखाई देती है। पारंपरिक वेश भूषा , बाध्य यंत्रों पर थिरकते पांडव , लोक संस्कृति से ओतप्रोत कलाकार आपको दिल थामकर टकटकी लगाने को मजबूर करते है।
अंत मे मैदान के बीच मे जलती लकड़ियों के चारो तरफ भैलो घुमाया जाता है।
मंगसीर की इस दीवाली को लोग सामूहिक रूप से मनाते हौ। वीडियो देखें।