“परेड ग्राउंड पर दोहरा मापदंड? कांग्रेस का सवाल — खड़गे की सभा मना, ABVP अधिवेशन को मंजूरी क्यों!”

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📍सबहेडिंग (Subheading):
कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का तीखा वार — “देहरादून प्रशासन और सरकार बताए, नियम सबके लिए अलग-अलग क्यों?”


🔥 ओपनिंग पैराग्राफ (Opening Paragraph):
देहरादून का परेड ग्राउंड एक बार फिर राजनीति के तूफान में है।
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस ने राज्य सरकार और जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए सवाल उठाया है — “जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा के लिए मैदान नहीं दिया गया, तो अब ABVP को तीन दिन का अधिवेशन करने की अनुमति कैसे?”


💬 मुख्य भाग (Body – short, punchy paragraphs):
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने आज प्रेस वार्ता में कहा —
“एक साल पहले प्रशासन ने यह कहते हुए अनुमति नहीं दी कि परेड ग्राउंड राजनीतिक आयोजनों के लिए नहीं है। अब अचानक वही ग्राउंड तीन दिन के अधिवेशन के लिए कैसे खुल गया?”

धस्माना ने इसे “राजनीतिक पक्षपात” बताते हुए कहा कि लोकतंत्र में यह प्रशासनिक निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है।
उन्होंने तीखा तंज कसते हुए कहा —
“क्या अब परेड ग्राउंड भी सत्ता के इशारों पर तय करेगा कि कौन बोले और कौन नहीं?”


🟠 नामकरण विवाद से सियासत गरमाई:
धस्माना ने एक और मुद्दा उठाया — ABVP के अधिवेशन स्थल का नाम “भगवान बिरसा मुंडा नगर” रखा जाना।
उन्होंने कहा —
“हम भगवान बिरसा मुंडा का सम्मान करते हैं, लेकिन उत्तराखंड की धरती पर जब आयोजन हो रहा है, तो नाम हमारे अपने महापुरुषों के नाम पर होना चाहिए।”

उन्होंने सवाल किया —
“क्या उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, श्रीदेव सुमन, तीलू रौतेली, या हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे नाम नहीं हैं जिनसे हम प्रेरणा ले सकें?”

धस्माना ने कहा कि इससे बाहर से आने वाले प्रतिनिधियों में भ्रम फैलेगा कि “भगवान बिरसा मुंडा” उत्तराखंड के थे या झारखंड के।


🎯 भावनात्मक टच (Emotional Touch):
प्रेस वार्ता में धस्माना के चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी।
उन्होंने कहा — “यह सिर्फ कांग्रेस का नहीं, उत्तराखंड की अस्मिता का सवाल है। हमारे राज्य के नायकों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”


💡 क्लोजिंग लाइन (Closing Line):
राजनीतिक अनुमतियों के इस “दोहरे खेल” पर अब पूरा उत्तराखंड देख रहा है —
क्या परेड ग्राउंड सत्ता का अखाड़ा बन चुका है, या लोकतंत्र की आवाज़ अब अनुमति की मोहताज है?

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