सेम नागराज जहाँ श्रीकृष्ण की नाग रूप में होती है पूजा।
संसार की माया में रमे अपने भक्त गंगू रमोला का दूर किया था अहंकार।
जब दो हाथ जमीन भी देने से गंगू ने किया था इनकार।
गिरीश गैरोला
देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जनपद में रामोली पट्टी के मुखेम गाँव के पास घनघोर जंगल के बीच सेमनागराज मंदिर में श्रीकृष्ण की आज भी नागराज के रूप में पूजा होती है। यमनोत्री और गंगीत्री के दर्शन के बाद चार धाम यात्री केदारनाथ बाय पास मार्ग पर धौंत्री के पास कौडार से होते हुए सेम नागराज मंदिर तक पहुँचते है। नागराज कक पूजा से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है.
उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के दृष्टि से सेम नागराज मंदिर को पांचवे धाम के रूप मे माना जाता है।
यमनोत्री और गंगोत्री के दर्शन के बाद यात्री जब चौरंगी खाल होते हुए केदारनाथ की तरफ निकलते है तब धौंत्री कस्बे के बाद कौडार नामक स्थान से सेम नागराज मंदिर के लिए सड़क मड़ बागी सौड़ तक जाती है। मड़ बागी से दो किमी की पैदल चढ़ाई चढ़ने के बाद सेमनागराज मंदिर तक पहुचा जा सकता है।
मान्यता है कि द्वापर में महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्रीकृष्ण शांति की तलाश में सुदूर उत्तराखंड के रामोल गढ़ी में चले आये थे और यहाँ सेमनागराज के रूप में स्थापित हो गए। आज भी जन्मपत्री में कल सर्प योग से पीड़ित व्यक्ति इस स्थान पर आकर पूजा अर्चना के बाद दोष मुक्त हो जाता है। मान्यता ये भी है कि मंदिर के गर्भ गृह से निकलने वाले सिधवा धारे के जल से स्नान करने के बाद कुष्ठ रोग फर हो जाते है।
नागराज के रूप में श्री कृष्ण के उत्तराखंड आने की कहानी की पटकथा श्रीकृष्ण के बालक रूप में यमुना किनारे खेलते हुए सुरु होती है। जब ग्वाल बालो के साथ खेलते हुए गेंद यमुना के प्रवाह में गिर जाती है। कालिया नाग के बिष के प्रभाव से विषैली हो चुकी यमुना में अपनी गेंद वापस लेने श्री कृष्ण कूद जाते है।
यमुना के जल सागर में कालिया नाग से भयंकर युद्ध होता है और अंत मे कालिया की हार होती है तब श्री कृष्ण उसे उत्तराखंड के रामोल गढ़ी में जाने का सुझाव देते है साथ ही कालिया के अनुरोध पर उसे रामोल गढ़ी में ही आकर दर्शन देने का वचन देते है। इस कथा का खूबसूरत मंचन भी संवेदना समूह द्वारा किया गया है वीडियो देखें।
ब्राह्मण के रूप में रामोल गढ़ी के गढ़पति गंगू रमोला से दो हाथ जमीन दान के रूप में मांगते है किंतु गंगा इनकार कर देता है। बाद में अपना राजपाट और संपत्ति खोने के बाद गंगा को अपनी भूल का अहसास होता है तो वह स्वयं श्रीकृष्ण का मंदिर बनाने को राजी हो जाता है। किंतु 6 स्थानों पर मंदिर बनकर टूट जाता है जब गंगू का अहंकार समाप्त होता है तो भगवान गंगू को प्रकटा सेम में मंदिर निर्माण का आदेश देते है।
तब से श्रीकृष्ण की यहाँ नागराज के रूप में पूजा की जाती है। उत्तरकाशी की यमुना घाटी और पौड़ी जनपद के लोग इसे अपना ईस्ट मानते हुए हर तीसरे वर्ष सेमनागराज की जात्रा देते है।
मंदिर में श्रीकृष्ण की पूजा के साथ गंगू रमोला की भी पूजा होती है। जन्म पत्रिका में जब राहु और केतु ग्रह के बीच सभी ग्रह आ जाते है तो काल सर्प योग बनता है जिसका इसी स्थान पर पूजन किया जाता है।