हरुनता बुग्याल से है इंद्रावती नदी का उद्गम।
हरिमहाराज का निवास स्थल है हरुनता बुग्याल।
गणेश भगवान के भाई कार्तिकेय को हरि महाराज के रूप में होती है पूजा ।
गिरीश गैरोला
उत्तरकाशी में भागीरथी गंगा के साथ संगम करने वाली इंद्रावती नदी को लेकर पुराणों में बहुत कथाएं वर्णित है। इंद्रावती के उद्गम पर देवताओं के साथ ग्रामीण पहुँचते है, देवो का दूध से स्नान होता है। इलाके में वर्षा न होने पर लोग हरिमहाराज और खंड द्वारी देवी की ही शरण मे जाते है।
गाँव से ही मिली एक रिपोर्ट
बाडागडडी ईष्ट देव भागवान हरिमहाराज हुणेस्वर नाग बुद्ध मां खणद्वारी की पौराणिक शैल शुरू होती है ग्राम कुरोली के हुणेशवर प्रगण से मां खण्डदॣरी के प्रांगण
मे समस्त बाडागडडी के जनप्रतिनिधि जनमानस एकत्रित हो कर ग्राम कंकराडी ग्राम किशनपुर मे काफी वर्ष पुराना खडग का पेड है जहा पर सभी देव व समस्त बाडागडडी के विश्राम करते हुए पांच किलोमीटर की खड़ी चढाई पर जुकाणी नामक स्थान पर पंहुच कर भागवान हरिमहाराज हुणेस्वर नाग बुद्ध का वहा के मोव्हार जोकि अपने मवेशी के साथ रहते है उनके द्वारा दूप दूपणू मक्खन दूध से भगवान हरिमहाराज का स्वागत व उनको आशिर्वाद देते हुए अंतिम पड़ाव हारूनता पहुंच ते है वहा पर रात्रि विश्राम व भोजन की व्यवस्था वहा पल रहने वाले मोहवर द्वारा की दूसरे दिन सुबह इन्द्रवती नदी के उदगम पवित्र स्थल पर भगवान हरिमहाराज व हुणदेवता नाग बुद्ध देवताऔ को दूध मक्खन दही से स्नान कराया जाता है
वहा पर नयी झण्डी सभी के घर से लयी गयी दौफारी को चढाई जाती वहा से वापिस जुकाणी मे भी भगवान हरिमहाराज व हुणदेवता स्नान कर वहा के मोव्हार को आशीर्वाद व रासो नृत्य लगया जाता है उसके बाद वाहा से प्रस्थान कर अपने घर को चल देते है साल भर मे आने वाली भागवान हरिमहाराज हुणेस्वर नाग बुद्ध की यात्रा व पौराणिक प्रथा को जीवित रखने के लिए समस्त बाडागडडी के जनप्रतिनिधि जनमानस से पर्थना है कि आप ज्यादा ज्यादा सहयोग करे