छोटा बड़दा (बड़वानी) | “नर्मदा चुनौती सत्याग्रह” के तहत जारी सुश्री मेधा पाटकर का अनशन आज पांचवें दिन भी जारी रहा। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सुश्री पाटकर से अनशन समाप्त करने का आग्रह किया जिसे प्रभावितों के पुनर्वास की ठोस योजना के अभाव में ससम्मान अस्वीकार कर दिया गया। जारी संघर्ष को कड़ा करते हुए आज भवती, बिजासन, गणपुर, छोटा बड़दा, राजघाट और गांगली के 10 प्रभावितों ने भी अनिश्चितकालीन अनशन प्रारंभ कर दिया है।
अंकित तिवारी , छोटा बड़दा (बड़वानी) मध्य प्रदेश
उल्लेखनीय है कि बिना पुनर्वास गैरकानूनी डूब के खिलाफ बड़वानी जिले के छोटा बड़दा में 25 अगस्त 2019 से अनिश्चितकालीन सत्याग्रह जारी है। केन्द्र और गुजरात सरकार की हठधर्मी के कारण मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में हजारों परिवार नीतिगत पुनर्वास के बिना डूब का सामना करने को मजबूर हैं। केन्द्र सरकार की एजेंसी नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) जलस्तर बढ़ाने के आदेश से जानबूझकर किसान-आदिवासी, केवट-कहार, पशुपालक, कुम्हार, भूमिहीन मजदूरों को बिना पुनर्वास उजाड़ने का प्रयास कर रही है।
इस समय केवल मध्यप्रदेश में ही 32 हजार प्रभावितों का नीति अनुसार पुनर्वास शेष है। महाराष्ट्र और गुजरात के भी सैकड़ों परिवारों का पुनर्वास बाकि है। इस तरह डूब क्षेत्र में निवासरत लाखों लोगों का जीवन जोखिम में डालना अस्वीकार्य है।
हालांकि मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने आंदोलन के साथ संवाद की प्रक्रिया प्रारंभ की है लेकिन जलस्तर बढ़ाने वाली गुजरात सरकार और जलस्तर बढ़ाने का आदेश देने वाली एनसीए ने इस सुनियोजित तरीके से की जा रही व्यापक जनहत्या के प्रयास पर कोई प्रतिकिया नहीं दी है।
कल प्रदेश के गृहमंत्री श्री बाला बच्चन ने छोटा बड़दा पहुँच कर सुश्री पाटकर से अपना अनशन समाप्त करने का आग्रह करते हुए सत्याग्रहियों की मांगों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया था। इसके बाद देर शाम मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने स्वयं सुश्री पाटकर से फोन पर बात कर अनशन समाप्त करने का निवेदन किया। सुश्री पाटकर ने दोनों आग्रहों को ससम्मान अस्वीकार कर दिया क्योंकि दोनों नेताओं ने जलस्तर एक निश्चित स्तर पर नियंत्रित करने की ठोस बात नहीं कही ताकि प्रभावित परिवार पुनर्वास होने तक अपने गांवों में सुरक्षित निवास कर सकें।
मेधा ताई के नाम से पहिचान बना चुकी मेधा पाटकर ने 28 मार्च 2006 से सरदार सरोबर बांध पतियोजना की ऊंचाई बढ़ाने के खिलाफ़ 20 दिनों तक आमरण अनशन किया था और तब तक आंदोलन चलाया जब तक सुप्रीम कोर्ट ने विस्थापन और पुनर्वास अपनी देखरेख में चलाने का आदेश जारी नही कर दिया इस पूरे प्रकरण में 20 दिन का समय लग गया था। इस घटना के बाद मेधा ताई विश्व मे पर्यवरण विद और सामाजिक कार्यकत्री के रूप में जानी जाने लगी। 32 वर्षो से पर्यावरण के लिए काम करते हुए उन्हें राइट लाइव हुड एवार्ड से सन्मानित किया गया , मेधा पाटकर विश्व बैंक में भी सलाहकार हैं और नेशनल एलायंस ऑफ पीपुलस मूवमेंट नाम से संगठन चला रही है।
इसी बीच मध्यप्रदेश के अधिकारियों ने बचाव अभियान के बारे झूठ फैलाना जारी रखा है। कुक्षी के एसडीएम श्री क्लेश ने तो प्रभावितों की कुल संख्या से भी ज्यादा संख्या में लोगों को बचाने का दावा कर दिया है। हालांकि अधिकारी बचाव अभियान के नाम पर प्रभावितों को गांवों से बिना पुनर्वास जबरन खदेड़ रहे हैं।
केन्द्र और गुजरात सरकार का इस मानवीय त्रासदी पर मौन रहना असंवेदनशीलता की हद है। लेकिन प्रधानमंत्री ने इस हद को भी पार कर दिया। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर सरदार सरोवर का जलस्तर 134 मीटर पर पहुँचने का जश्न मानया और देशवासियों से भी इस मनोहारी दृश्य का आनंद लेने को कहा। प्रधानमंत्री का यह ट्वीट बिना पुनर्वास डुबोए जा रहे नर्मदा घाटी के 32 हजार परिवारों के जख्म पर नमक छिड़कने के समान है। देश के प्रधानमंत्री से ऐसे गैरजिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा नहीं थी।
आंदोलन की मांग है कि –
· जब तक समस्त 32 हजार प्रभावितों का नीति अनुसार पुनर्वास पूर्ण न हो जाए तब तक सरदार सरोवर का जलस्तर 122 मीटर पर स्थिर रखा जाए।
· एनसीए द्वारा बांध को पूर्ण जलाशय स्तर 138.68 मीटर तक भरने की दी गई अनुमति को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक समस्त प्रभावितों का पुनर्वास न हो जाए।
· मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के प्रभातिवों का संपूर्ण नागरिक सुविधाओं और आजीविका के साधन उपलब्ध करवा कर डूब के पहले पुनर्वास किया जाए।
· पुनर्वास से संबंधित सभी आंकड़ों और दस्तावेजों को वेबसाईट पर सार्वजनिक किया जाए ताकि नए भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सके।
· गुजरात सरकार से पुनर्वास, पर्यावरण संरक्षण तथा अन्य खर्चों की वसूली की जाए।
सत्याग्रहियों ने संकल्प व्यक्त किया कि सरकार ने यदि नर्मदा का जलस्तर बढ़ाना जारी रखा तो संघर्ष और कड़ा किया जाएगा।