**🌲 “मैं गौरा हूँ” — चिपको आंदोलन की गूँज मंच पर फिर से जिंदा!
रुड़की–हरिद्वार में आयोजित राज्य स्तरीय कला उत्सव में उस क्षण तालियों की गड़गड़ाहट ने हॉल को भर दिया… जब उत्तरकाशी के कंडारी, नौगांव के छात्रों ने मंच पर आवाज़ बुलंद की—
“पेड़ हमारे संस्कार हैं… इन्हें काटने नहीं देंगे!”
और इसी दमदार प्रस्तुति के साथ राजकीय इंटर कॉलेज कंडारी के दल का नाटक “मैं गौरा हूँ” ने तृतीय स्थान अपने नाम किया।

🌼 गौरा देवी की याद में…
नाटक निर्देशक एवं कला शिक्षक सुरक्षा रावत का कहना है—
“यह प्रस्तुति चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी को समर्पित है। पर्यावरण और जल संरक्षण की उनकी लड़ाई आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।”
गौरा देवी की जन्म शताब्दी के अवसर पर प्रस्तुत यह नाटक दर्शकों को उस दौर में ले गया, जब पहाड़ की महिलाओं ने अपने शरीरों को पेड़ों से लगाकर जंगल बचाए थे।
⭐ छात्रों का दमदार अभिनय
कु. रिया, कु. कनिका, कु. मानसी और ऋषभ ने अपने अभिनय से मंच को जज़्बातों से भर दिया।
दर्शकों ने कई बार तालियाँ बजाकर छात्रों का हौसला बढ़ाया—
उनके संवाद, उनकी आवाज़, और प्रकृति के लिए उठाया गया दर्द… सब कुछ दिल में उतर गया।
🎭 टीमवर्क की मिसाल
नाटक के संचालन और सफलता में प्रधानाचार्य नरेश रावत, साथ ही रमेश लाल, प्रकाश भंडारी, अरविंद पश्चिमी, कुसुम रावत और समग्र शिक्षा विभाग का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रस्तुति को पद्मश्री डॉ. शेखर पाठक की कृति “हरी भरी उम्मीद” से विशेष प्रेरणा मिली।
डॉ. सुवर्ण रावत और चित्रकार मुकुल बडोनी ने भी नाटक को कलात्मक रूप देने में अहम भूमिका निभाई।
🌿 पेड़ों को बचाने की पुकार
इस नाट्य मंचन ने एक बार फिर याद दिलाया—
पर्यावरण के लिए खड़ी की गई एक आवाज़ पूरे समाज को बदल सकती है।
“मैं गौरा हूँ” केवल एक नाटक नहीं… प्रकृति को बचाने का संदेश है।
🌲 क्या आज हमें फिर से गौरा देवी की तरह पेड़ों को बचाने के लिए खड़े होने की जरूरत नहीं?
