आईआईटी रुड़की के शोधकर्ता प्लास्टिक और ई-वेस्ट निपटान की स्थायी तकनीक कर रहे विकसित

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रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) के शोधकर्ता प्लास्टिक और ई-वेस्ट निपटान की स्थायी तकनीकों का विकास कर रहे हैं। प्लास्टिक वेस्ट और इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (ई-वेस्ट) का अंबार लगना चिंता की बात है। इससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है और जीवों पर इसका खतरनाक प्रभाव पड़ता है। आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. के.के. पंत (पहले आईआईटी दिल्ली में कार्यरत) मार्गदर्शन में एक शोध समूह प्लास्टिक कचरे और ई-वेस्ट के लगातार बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सस्टेनेबल टेक्नोलाॅजी का विकास कर रहा है। साथ ही, जीरो-वेस्ट डिस्चार्ज की परिकल्पना के माध्यम से आर्थिक लाभ भी प्राप्त कर रहा है।
शोधकर्ताओं ने जीरो-वेस्ट की परिकल्पना करते हुए भारतीय ‘स्मार्ट सिटीज’ और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ जैसे अहम् प्रयासों को ध्यान में रखते हुए ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग प्रक्रियाएं विकसित की है। उन्होंने जो प्रक्रियाएं लागू की है उन्हें दो चरणों में विभाजित किया गया हैै। क्लोज्ड-लूप रीसाइक्लिंग की प्रस्तावित प्रक्रिया व्यापक स्तर पर लागू करने योग्य है और एसिड-लीचिंग की प्रचलित पर काफी खतरनाक तकनीकों के बजाय पर्यावरण के लिए सुरक्षित विकल्प के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है। इस तरह के अनुसंधान की अहमियत बताते हुए प्रो. के के पंत ने कहा, “भारत में प्लास्टिक और ई-वेस्ट का अंबार लग रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग बढ़ने से इसकी मात्रा बहुत तेजी से बढ़ रही है। इसलिए प्लास्टिक और ई-वेस्ट निपटान की सस्टेनेबल प्रक्रियाओं का विकास करना बहुत जरूरी है। इस तरह की प्रक्रियाएं जल्द से जल्द विकसित नहीं किए जाने और साथ ही, पूरे देश में लागू नहीं किए जाने पर ई-वेस्ट लंबी अवधि के लिए हमारी पारिस्थितिक और पर्यावरण को भारी नुकसान पहंुचाएगा।’’
प्रोफेसर के के पंत ने यह भी कहा, ‘‘आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने क्लोज्ड-लूप रीसाइक्लिंग की जिस प्रक्रिया का प्रस्ताव दिया है उसे व्यापक स्तर पर लागू किया जा सकता है और यह एसिड-लीचिंग की प्रचलित पर काफी खतरनाक तकनीकों के बजाय पर्यावरण के लिए सुरक्षित विकल्प के रूप में उपयोगी है।’’ प्रो. के.के. पंत का शोध समूह ‘सर्कुलर इकनोमी’ अर्थात् उत्पादन और उपभोग मॉडल की कई पहलों पर कार्यरत है। इसमें उपलब्ध सामग्रियों और उत्पादों का जहां तक संभव हो लंबे समय तक उपयोग और पुनर्चक्रण करना शामिल है। इन पहलों को कई प्रमुख सरकारी संगठनों का सहयोग मिल रहा है।

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