यात्रा मार्ग पर नही पेयजल और शौचालय

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यात्रा में नही है जरूरी इंतज़ाम ।

निजी सहयोग से चल रही कांवड़ यात्रा।
मार्ग में नही शौचालय और पेयजल।
गिरीश गैरोला
सावन के महोने में बदहाल सड़क मार्ग के चलते ठप्प पड़ी चार धाम यात्रा मार्ग की वीरानी को तोड़ते बम बोल के घोष के साथ निकलते कांवड़ियों ने सड़क मार्ग पर शौचालय और पेयजल की  व्यवस्था  न होने को लेकर भारत स्वच्छता अभियान के साथ चार धाम यात्रा तैयारियो को लेकर जिला प्रशासन पर सवाल उठाए है। उन्होंने कहा कि भोले पर आस्था रखने वाले कुछ दान दाताओं के भरोसे यह यात्रा चल रही है जिसमे उन्हें प्रसासन का कोई भी सहयोग नही मिलता है।

सावन के महीने में शिवालय में गंगोत्री गौमुख का पवित्र जल चढ़ाने की अभिलाषा लिए हजारों -लाखो कांवड़िये पैदल यात्रा कर गंगाजल लेकर शिव लिंग पर चढ़ाकर अपने आराध्य को प्रशन्न करते है। इसमें से ज्यादातर हरिद्वार से जल भरते है जबकि कुछ कांवड़िये गंगा के उद्गम गौमुख से ही जल भरने का संकल्प लेकर आते है। बरसात के महीने में चलने वाली कावड़ यात्रा से सड़क मार्ग को हर हाल में खुला रखने का जिला प्रशासन पर दबाव रहता है।
ज्यादातर चार धाम यात्री वर्षा काल मे सड़क में भूस्खलन की संभावना के चलते अपनी यात्रा स्थगित कर देते है तो सड़को पर भगवा भेष धारी कांवड़िये ही वीरान सड़को की चुप्पी तोड़ते है। कावड़ यात्रा जुड़ा हुआ एक पूरा बाजार है जो इनके लिए ड्रेस, डंडे ,कावड़ आदि तैयार करता है इसके अलावा फल और शब्जी मार्किट भी इस यात्रा से प्रभावित होता है। उत्तराखंड की देवी आपदा से पूर्व बडी तादाद में कांवड़िये बोल बम के घोष के साथ  निकलते थे।  यह संख्या अब धीरे -धीरे बढ़ रही है। कावड़ियों को निशुल्क भोजन और रहने की लंगर  व्यवस्था में भी कई लोग जुड़े हुए है।
विगत 20 वर्षों से कावड़ियों के लिए मातली के पास लंगर चला रहे नोएडा निवासी मनोज शर्मा कहते है कि कावड़ यात्रा को लेकर प्रशासन के कोई भी इंतज़ाम नही है , पूरी यात्रा में सेवा के लिए लंगर लगा रहे कौड़ियों को भी बेवजह परेसान किया जाता है। मार्ग में न तो टॉयलेट्स की और न पेयजल की व्यवस्था की गई है।  उन्होंने बताया कि स्वच्छता अभियान की सफलता के लिए  करीब 20 से 25 किमी दूरी पर पेयजल और शौचालय बनाये जाने चाहिए।
दरअसल चार धाम यात्रा सुरु होते समय जिला प्रशासन टाट पट्टी के अस्थायी शौचालय निर्माण करवाता है जिसमे पानी की कोई व्यवस्था नही होती है , जिसके चलते ये सिंगल यूज़ आइटम बनकर रह जाते है और ज्यादातर टाट पटिया बरसात में बेकार हो  जाती है।
उन्होंने बताया कि कावड़ यात्रा पूरी तरह निजी सहयोग से संचालित होती है इसमें प्रसासन का कोई सहयोग नही मिलता है।
शब्जी व्यवसायी तस्दीक खान कहते है कि कावड़ियों की तादाद पहले से अभी कम है उन्होंने बताया कि कावड़ यात्रा चलने से शब्जी और फल का व्यवसाय खूब चलता है किंतु कावड़ियों की तादाद कम होने से सेवा लंगरों की संख्या भी घटने लगी है जिसके कारण ये व्ययवस्य भी  कम हुआ है।
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