मंगसीर की बग्वाल- पहाड़ की संस्कृति

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पहाड़ की दीवाली -मंगसीर की बग्वाल।
लोक संस्कृति के हुए दर्शन।

सफेद घोड़ी में निकली माधो सिंह भंडारी की सवारी।

गढ़वाल में मनाई गई बग्वाल।
कार्तिक महीने की दीपावली के एक महीने बाद मनाई जाती है पहाड़ो में मंगसीर कई दीवाली ,’बग्वाल’।
केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा और रास्ट्रीय सनुसूचित जाति आयोग की सदस्य स्वराज विद्धवान भी बग्वाल में सामिल होने पहुँची उत्तरकाशी।
गिरीश गैरोला।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी वीर भड़ माधो सिंह भंडारी की सवारी निकलने के साथ ही लोगो ने मंगसीर की बग्वाल का आनंद लिया। महिलाओ ने गढ़ भोज के लिए पकोड़े पकवान बनाये तो नौजवान महिलाये और पुरुष पारंपरिक वेश भूसा के साथ सड़को पर झूमते गाते नजर आए।
रामलीला मैदान में जलावन की लकड़ी के चारो ओर बग्वाल के लिए  भैलो की व्यवस्था की गई थी।
काशी के भूम्याल कंडार देवता के चौक में पारंपरिक पहनावे के साथ महिलाये और पुरुष एकत्र हुए । क्या अधिकारी और क्या ग्रामीण सभी बग्वाल के रंग में नजर आए। महिलाये जहाँ पारंपरिक  पागड़ा और पंखी पहने  नजर आयी तो पुरुष बंद गले के कोट और टोपी में।
उप शिक्षा अधिकारी हर्षा रावत और वरिष्ठ सर्जन डॉ सुरेंद्र सकलानी भी खुद पहाड़ी भेष भूसा में नजर आयी उन्होंने बताया कि इससे समाज मे एक अच्छा संदेश जाएगा।
सेवा निवृत्त मेजर जमनाल , माधव जोशी, रुडोला मैडम, काँग्रेश नेत्री प्रभावती गौड़ ने भी इस सांस्कृतिक मेले को पर्यटन से जोड़ने की वकालत की ताकि देश दुनिया के लोग भी पहाड़ की इस समृद्ध संस्कृति के दर्शन कर सके।
राजधानी देहरादून से सिनर्जी अस्पताल के जनरल मैनेजर राहुल डोरा और सरबजीत भी स्वास्थ्य सेवाओं पर सुर्वे के लिए उत्तरकाशी आये थे उन्होंने जब इस विशेष वेश भूसा में लोगो को देखा तो इस बग्वाल को देखने की उत्सुकता इतनी बड़ी कि दो दिन नगर में ही रुक गए।
कंडार देवता मंदिर से ही लोक नृत्य सुरु होकर नगर की मुख्य सड़कों से होते हुए रामलीला मैदान में पहुँचा। इस दौरान लोगो ने सड़को पर सामूहिक नृत्य कर बग्वाल का त्योहार मनाया।
केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा और रास्ट्रीय अनुसूचित जाती आयोग की सदस्य स्वराज विद्धवान भी विशेष रूप में इस बग्वाल में सामिल होने के लिए उत्तरकाशी पहुँची।
pp
स्थानीय लोगो के साथ अतिथियों ने भी स्वीकार किया कि अब पहाड़ की समृद्ध संस्कृति को पर्यटन से जोड़े जाने की सख्त जरूरत है।
आधुनिक कार्तिक दीपावली और  बिलुप्त हो रही मंगसीर की बग्वाल के साथ लुप्त हो रहे स्थानीय पहनावे  और पकवान को फिर से घर आंगन की शोभा बढ़ाने के लिए सभी ने बग्वाल आयोजको का स्वागत किया किन्तु कार्यक्रम के बीच में सांस्कृतिक मंच को राजनैतिक भाषण के लिए उपयोग किये जाने से बाहर से आये संस्कृति प्रेमी और कलाकार खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए देखे गए।
सामाजिक कार्यकर्ता पृथ्वी नैथानी की माने तो बग्वाल लोक संस्कृति से जुड़ा हुआ त्योहार है इसमें जो भी मुख्य अतिथि आये वे केवल बग्वाल मनाने के लिए ही सामिल होने चाहिए अन्यथा मेले में आये संस्कृति प्रेमी और  कलाकार बोर होते है और खुद को उपेक्षित महसूस करते है।
उन्होंने विगत वर्षों का उदाहरण देते हुए बताया कि वीर माधो सिंह भंडारी के पात्र को मंच पर चल रहे भाषण के चलते मैदान में एक कोने पर घंटो  इंतजार करना पड़ा था। मेकअप के चलते वो न तो मैदान छोड़ सकता था और न मंच पर ही जा सकता था जबकि रोड शो के दौरान वही आकर्षण का मुख्य केंद्र था।
https://youtu.be/ik-qiOFAcGo

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