इस वर्दी को क्यों नही मिलता सम्मान?

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ड्यूटी पर तैनात विजिलेंस के सिपाही ने खुद को गोली मारकर की आत्महत्या।
यहाँ वर्दी को भी नही मिलता सम्मान।
गिरीश गैरोला
वर्दी धारी पुलिस के जवान को लेकर समाज में सम्मान का वो भाव नही दिखता जिसका वो हकदार है। आखिर वर्दी तो वर्दी ही होती है देश की सीमा पर दुश्मन तो सामने होता है गोली लगी तो इस तरफ या उस तरफ किसी एक को तो शहीद होना ही है। नागरिक पुलिस में ड्यूटी के दौरान सम्मानित गणमान्य लोगों के बीच से शरारती तत्वों को खोज निकलना ही मुश्किल काम है उसपर सफेद कालर पर हाथ डालना में अपनी नौकरी से हाथ धोने का खतरा बराबर बना रहता है । बड़े लोगो पर हाथ डाल नही सकते छोटे लोगो पर ही रौब दिखाने की मजबरी है तो अखिर इस व्यवस्था का जिम्मेदार है कौन ?  पुलिस विभाग में कोई भी उत्कृष्ट कार्य हो तो अधिकारी को सम्मान मिल जाता है और गलती होने पर सिपाही को सस्पेंड कर दिया जाता है। 24 घंटे की ड्यूटी , छुट्टी का लफ़ड़ा, ऐसे कई मानसिक तनाव है जिसके चलते पढ़े लिखे स्नातक इस सेवा में रोजगार के लिए तो आ रहे है किंतु उनमें जॉब सेटिस्फेक्शन नही दिखाई देता है। बीमार होने पर अथवा मौत होने पर पुलिस जवान को एक सामान्य नागरिक की सुविधा भी मुश्किल से मिल पाती है।
देहरादून ।     देहरादून में विजिलेंस के एक सिपाही ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या की वजह तनाव बताई जा रही है। फिलहाल, पुलिस ने आत्महत्या की वजह की जांच शुरू कर दी है। जानकारी के मुताबिक, बाई पास रोड स्थित कारगी के पास विजलेंस के कार्यालय में पौड़ी निवासी चंद्रवीर सिंह (28 वर्ष) सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात था। देर रात उसने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। सरकारी रायफल से चलाई गई गोली उसके सीने को भेदती हुई पीठ से बाहर निकल गई। बताया जा रहा है कि सिपाही के दो साथियों ने छह माह पूर्व हरिद्वार में आत्महत्या की थी। उसके बाद से वह तनाव में था। हाल ही में पांच फरवरी को पुलिस लाइन से उसे गार्ड ड्यूटी में तैनात किया गया था।
वर्तमान में वह परिवार के साथ डोईवाला में रह रहा था। घटना की सूचना पर पटेलनगर पुलिस ने शव को कब्जे मे लेकर जांच शुरू कर दी है। सूचना मिलते ही मौके पर एसएसपी निवेदिता कुकरेती, एसपी सिटी श्वेता चौबे, एसएसपी विजिलेंस सेंथिल अबुदई भी मौके पर पहुँचे।
बेहद दुर्भाग्य की बात है कि पुलिस विभाग में आकर ही कोई इतने तनाव में आखिर क्यों आ जाता है कि उसे मौत (आत्महत्या) के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिखता, एक के बाद एक न जाने कितनों ने अपनी जान इसी तरह गंवा दी लेकिन हालात जस के तस हैं, हां पुलिसकर्मियों के वेलफेयर और आधुनिकीकरण के नाम पर अधिकारियों को नयी लग्जरी गाड़ियां जरूर मिल जाती हैं और सिपाही बेचारा आज भी सालों पुराने ट्रकों में भरकर ड्यूटी बजाने को मजबूर है… और तो और मरने के बाद भी बेचारे उस सिपाही को इतना सम्मान  न मिल सका कि कोई एम्बुलेंस उसे उसके अंतिम ठिकाने तक छोड़ दे, छोटे हाथी में मानों कोई लावारिस शव ले जाया जा रहा हो????…
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