परीक्षा किसकी ? प्रत्यासी की या मतदाताओं की?
जैसे बजेगा ढोल वैसे ही नाचेंगे जनप्रतिनिधि।
किसे चुने मतदाता? सोच समझ कर करे मतदान ।
गिरीश गैरोला
और भाई साब क्या चल रहा है, चुनावी मौसम में आजकल सभी दूसरे को टटोलकर हवा का रुख जानने के प्रयास करने में लगे है जबकि खुद के पत्ते खोलने को कोई तैयार नही।
उत्तरकाशी नगर पालिका चुनाव जीतने के लिए चक्र व्यू के सात द्वार पर सात चुनाव के महारथी (प्रत्याशी) अस्त्र शस्त्र के साथ खड़े है। पालिका की कुर्सी तक पहुँचने के लिए इन सातों महारथियों के हथियारों की काट आपके पास होनी जरूरी है।
सात द्वारा पर चार श चर्चा में है किंतु हिंदी वर्णमाला में तीन ही (स, श ष) को मान्यता दी गयी है। तीन अन्य महारथी भी लंबे समय से अपने हथियारों को धार देने में लगे हुए थे।
एक तरफ चुनाव में आगे रहने की हव्वा पैदा की जा रही है ताकि माहौल अनुकूल हो सके। वही एक पक्ष ऐसा भी है जो पिछले अनुभव के बाद शांति से चुपचाप अंडर करेंट पर विश्वास करता है , चुनाव में कुछ बादल सिर्फ गरजने वाले दिख रहे है और बरसने वाले घरों में मौन बैठे है।
जातिवाद , क्षेत्रवाद, पीने पिलाने वालो के सामने पिछले चुनाव के परिणाम से सीख लेने की जरूरत है, पिछले चुनावों में नदिया के पार में हुए चुनावो में ऊपर की हवा और अंदर की हवा को भांपने में राजनीति
पंडित चूक गए थे। जब खाने पीने के बाद मतदान किसी और ही पक्ष में होता नजर आया था।
रास्ट्रीय दलो में बीजेपी और काँग्रेश दोनों भाई गंगोत्री के पुरोहित है। एक इस समय सत्ता से जुड़ा है दूसरा पूर्व में सत्ता सुख ले चुका है। राज्य सरकार ने 2019 की तैयारी की होगी और जनता उनसे खुस होगी तो परिणाम उसी अनुरूप होंगे यदि सत्ता से नाराजी हुई तो इस वोट बैंक में सेंध लगाने को काँग्रेश के साथ निर्दलीय भी मुंह खोले बैठे है। बीजेपी के हरीश सेमवाल पालिका के विकास में सत्ता से जुड़ाव को बेहद जरूरी मानकर चल रहे है। यदि सत्ता से नाराजी दिखी तो
नाराज वोट विपक्ष को जाएगा या निर्दल को? और निर्दल भी हो तो किसे?
https://youtu.be/6GiG2DTqEkA
एक तरफ उत्तरप्रदेश के समय आज से आकर में काफी बड़ी उत्तरकाशी विधान सभा मे बीजेपी के जिला अध्यक्ष रह चुके महेश पंवार, व्यापार मंडल होटल एससोशशन के साथ पत्रिकारिता का भी अनुभव समेटे हुए है। इतना ही नही विधान सभा का चुनाव लड़ चुके दो दिग्गज भी इस बार इनके ऊपर अपना आशीर्वाद बनाये हुए है। साथ ही पिछले दो चुनावों में पालिका चेयरमैन की सीट तक लक्ष्य भेदने में सफल टोर्च भी इस बार महेश के पक्ष में है, गौरतलब है कि पूर्व में भुप्पी चौहान और फिर अगली बार उनके समर्थित उम्मीदवार ज्येन्द्री राणा भी टोर्च की रोशनी में ही पालिका की गद्दी तक पहुँचे थे। महेश के जितने भी वोटर है वे साइलेंट मोड़ में है कोई शोर शराबा नही।
पूर्व पालिका अध्यक्ष भुप्पी भाई पिछली बार चुप्पी चुप्पी सबके गणित को बिगाड़ कर जीत के द्वार तक पहुचे थे इस बार भुप्पी के जितने भी वोटर है वे खूब उत्साहित है और हवा को अपने पक्ष में बहने का दावा कर रहे है। हालांकि इस बार जीत के लिए परिस्थितियां कुछ अलग है। भुप्पी को उनके ही गढ़ में घेरने के लिए अच्छी व्यू रचना की गई है। जिला पंचायत के वर्तमान सदस्य कुलदीप बिष्ट और भूत पूर्व सदस्य दिनेश नौटियाल भी ज्ञानसू से मैदान में है। इसके अलावा गंगोरी वार्ड में भूपी को घेरने के लिए भी दोनों राजनैतिक बड़े दलो ने अच्छी घेरा बंदी की है। यहाँ समर्थक अपनी सीट बचाये या किसी अन्य का प्रचार करे इस मुश्किल में है। भुप्पी इस धोबी पछाड़ के दाव से बचने के लिए लंबे समय से कसरत कर रहे थे, उनके पास इसके लिए कोई अमोघ अस्त्र आया या नही ये आने वाले समय मे पता चलेगा।
विकास को लेकर निर्दलीयों के पास भी एक से बढ़कर एक योजनाएं है पर बड़ा सवाल ये कि क्या चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाएगा या फिर……
नगर पालिका के घोटालों को सामने लाकर चर्चित हुए अमरिकन पूरी भी जीरो टॉलरेन्स के दावे के साथ उम्मीद बांधे है, हालांकि घोटाले जगजाहिर होने के बाद भी सत्ता की मलाई के हिस्सेदारों पर अभी कार्यवाही अपेक्षित है।
हकीकत ये है कि इस बार चुनाव के परिणाम के बाद प्रत्यासी से ज्यादा परख मतदाता जनता की होने वाली है कि वे कैसा निर्णय लेते है।
मतदान जरूर करे ये आपका अधिकार है।
