एक दौर था जब लोग साल भर होली के त्यौहार का इंतजार करते थे, इसके लिए लम्बे समय से तैयारिया करते थे और इस त्यौहार को हर हाल में अपने घर गाव में ही मनाने के लिए पहुचते थे | बदलते दौर में जब लोग मोबाइल कि दुनिया में सीमित हो गए तो होली भी अपने घर तक ही सिकुड़ कर कर रह गयी| आज जब लोग अकेलपन से एक बर्र फिर परेसान होने लगे तो पुराने त्योहारों को उसी अंदाज में मनाने की जरुरत महसूस होने लगी | बड़ा सवाल ये कि अब इस संस्कृति के संरक्षण में आप कितना और क्या योगदान दे सकते है ?
भगवान सिंह पौड़ी गढ़वाल|
उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी होली के संरक्षण के लिए सतपुली की ‘होली के हल्यार’ टीम विगत 8 वर्षों से प्रयास कर रही है, टीम की ओर से हर साल सतपुली के आसपास के स्थानों में जाने के साथ ही पौड़ी मुख्यालय पहुंचकर उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी होली की जानकारी दी जाती है। पौड़ी जनपद के सतपुली की ‘होली के हल्यार’टीम के सदस्य मनीष खुगशाल ने बताया कि उनकी टीम विगत 8 वर्षों से उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी होली के संरक्षण में कार्य कर रही है। वह होली से पूर्व सतपुली के समीप घूमकर प्रचार प्रसार करते हैं साथ ही पौड़ी मुख्यालय पहुंचकर उत्तराखंड की पारंपरिक खड़ी होली का प्रचार प्रसार करने के साथ इसके संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं, बताया कि हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को भी इस पारंपरिक होली से जोड़ना जरूरी है अन्यथा जो हमारी संस्कृति है वह पूरी तरह से विलुप्त हो जाएगी ।वर्तमान में पारंपरिक होली धीमे-धीमे समाप्ति की कगार पर है। लेकिन उनकी जो टीम है वह इसके संरक्षण के लिए पिछले 8 सालों से कार्य कर रही है और वह चाहते हैं कि इस पारंपरिक खड़ी होली के संरक्षण में अन्य लोग भी उनसे जुड़े और इससे परंपरा को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके।
-मनीष खुगशाल(सदस्य)