देहरादून। भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री संगठन से जुड़ी आशाओं ने आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने अपनी 21 सूत्रीय मांगों को लेकर सचिवालय कूच किया, लेकिन पुलिस ने सचिवालय से पहले ही उन्हें बैरिकेडिंग लगाकर रोक लिया। इस पर आशा कार्यकर्त्ता वहीं धरने पर बैठ गईं।संगठन की महामंत्री ललितेश विश्वकर्मा ने कहा कि 23 जुलाई को बीएमएस के स्थापना दिवस पर स्वास्थ्य मंत्री डा. धन सिंह रावत ने आश्वासन दिया था कि 31 जुलाई तक मुख्यमंत्री से विचार विमर्श कर उनकी मांगों पर सकारात्मक निर्णय लिया जाएगा, लेकिन यह आश्वासन झूठा साबित हुआ। इससे आशाओं में रोष व्याप्त है।उन्होंने बताया कि आशा को प्रतिमाह न्यूनतम 18 हजार रुपये मानदेय, राज्य कर्मचारी का दर्जा,पांच लाख का निःशुल्क बीमा, वेज बोर्ड का गठन, पीएम श्रम-योगी मानधन योजना में अधिकतम आयु सीमा 60 साल, आशा को प्रत्येक कार्य का नियमित भुगतना, रिटायरमेंट बेनिफिट के रूप में एकमुश्त पांच लाख रुपये का भुगतान, शैक्षिक योग्यताधारी आशा को एएनएम का प्रशिक्षण देकर पदोन्नति उनकी मांगें हैं।इसके अलावा साल में दो बार पोषाक आदि का तीन हजार रुपये भत्ता, वाहन प्रतिपूर्ति भत्ता, मृत्यु होने पर प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा व प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा का लाभ, कोरोनाकाल में ड्यूटी के लिए पांच हजार रुपये प्रोत्साहन राशि, डेंगू सर्वे का दो हजार रुपये भुगतान, काम के दौरान दुर्घटना होने पर पांच लाख और मृत्यु पर दस लाख रुपये का मुआवजा, जिला व ब्लाक स्तर पर सामुदायिक केंद्रों में आशा घर का निर्माण, आश्रितों को राजकीय चिकित्सालयों में निश्शुल्क उपचार और पल्स पोलियो अभियान के तहत होने वाले भुगतान में पांच गुणा वृद्धि उनकी प्रमुख मांग हैं।